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INTERVIEW: साउथ vs बॉलीवुड और हिंदी विवाद पर बोले आयुष्मान खुराना- "भाषा एक नहीं, दिल एक होना चाहिए"
अपनी हर फिल्म, हर किरदार के साथ दर्शकों के दिल में खास जगह बनाने वाले अभिनेता आयुष्मान खुराना 27 मई को फिल्म 'अनेक' के साथ सिनेमाघरों में आ रहे हैं। अनुभव सिन्हा के निर्देशन में बनी इस एक्शन- थ्रिलर फिल्म में आयुष्मान एक अंडरकवर कॉप की भूमिका निभा रहे हैं।
अपने किरदार के बारे में बात करते हुए आयुष्मान कहते हैं, "इस फिल्म के लिए मुझे अपने फिजिकल अपीयरेंस पर ज्यादा काम करना था। साथ ही आज तक मैंने जो किरदार निभाए हैं, वो कहीं ना कहीं vulnerable होते हैं, लेकिन ये थोड़ा स्ट्रांग है। यहां मेरे किरदार में एक ठहराव है।"
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'अनेक' के विषय पर बात करते हुए आयुष्मान ने कहा, "विविधता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत भी है और सबसे बड़ी कमजोरी भी। चंडीगढ़ में रहने के दौरान मैंने भेदभाव को नजदीक से देखा है। जब मैं कॉलेज में था.. तो मेरा एक बैंड मेंबर था, वो मणिपुर से था और मुझे मयांग (mayang) बुलाता था। मयांग का मतलब होता है आउटसाइडर। तो मैंने एक बार पूछा था कि मुझे आउटसाइडर क्यों बोलते हो? तो उसने जवाब दिया था कि तुम सब लोग हमें आउटसाइडर समझते हो तो आप भी हमारे लिए आउटसाइडर ही हुए ना.."
देश की विविधता पर बात करते हुए आयुष्मान ने आगे कहा, "मुझे लगता है कि स्पोर्ट्स और एंटरटेनमेंट से ज्यादा inclusive जगह और कुछ नहीं है.. क्योंकि यहां सिर्फ टैलेंट सामने आता है। चाहे वो बाइचुंग भूटिया हों, मैरी कॉम हो, या डांस रिएलिटी शोज में कंटेस्टेंट हों, जो भी उस जगह से टैलेंट आ रहा है जो पूरे हिंदुस्तान को जोड़ने का काम कर रहा है। लेकिन इस फिल्म के अंदर बहुत बड़ा सवाल है कि उनको बाकी भारत से जुड़ने के लिए अपना टैलेंट और अपना जज्बा दिखाना पड़ेगा? जो नहीं दिखा पा रहे हैं, उनका क्या?"
'अनेक' की रिलीज से पहले आयुष्मान खुराना ने मीडिया से खास बातचीत की, जहां उन्होंने फिल्म में अपने किरदार से लेकर साउथ वर्सेज बॉलीवुड विवाद, भाषा विवाद और बॉलीवुड में अपने 10 साल पूरे होने को लेकर खुलकर बातें कीं।
यहां पढ़ें इंटरव्यू से कुछ प्रमुख अंश-
फिल्म की कास्टिंग में कई उत्तर पूर्वी कलाकारों को शामिल किया गया है। जिसकी तारीफ भी हो रही है। इसे एक पॉजिटिव बदलाव के तौर देखते हैं?
मेरे ख्याल से यह फिल्म इस मामले में ऐतिहासिक हो सकती है कि पहली बार फिल्मों में उत्तर- पूर्वी लोगों का रिप्रजे़न्टेशन बिल्कुल सही है। एंड्रिया फिल्म में कोई कैरेक्टर एक्टर नहीं है। वो फिल्म की लीड एक्ट्रेस हैं। उनका रोल मेरे बराबर है। हम चाहते थे कि उनकी कहानी है तो उन्हें ही बतानी चाहिए। फिल्म की 70 से 80 प्रतिशत कास्ट नार्थ ईस्ट से ही है।
'अनेक' की शूटिंग का अनुभव कैसा रहा?
फिल्म की शूटिंग हमने असम और मेघालय में की है। असम में काजीरंगा नेशनल पार्क के आस पास शूट किया है। वहां हर रोज मैं सफारी पर चला जाता था। कोई भी फिल्म होती है, वहां मैं एक हफ्ते पहले ही चला जाता हूं, क्योंकि मैं उस जगह से और वहां के लोगों से जुड़ाव महसूस करना चाहता हूं। मैं वहां के लोगों के साथ क्रिकेट खेलता था, उनसे बातें करता था, उनके परिवार के बारे में पूछता था। मुझे लगता है कि खुद को किरदार के लिए तैयार करने के लिए ये मेरा मेथड है।
फिल्म के ट्रेलर में भाषा को लेकर एक डायलॉग है, जो काफी चर्चा में है। मौजूदा समय में फिल्म इंडस्ट्री में भी हिंदी और साउथ को लेकर काफी विवाद देखा गया। इस पर आपके क्या विचार हैं?
मैं फिर से वही कहूंगा कि.. हमारे देश की सबसे बड़ी ताकत और कमजोरी दोनों ही यहां की 'विवधता' रही है। ये वो देश नहीं है जहां एक ही भाषा को हम ऊपर रख सकते हैं। हम ये कर ही नहीं सकते। यहां हर भाषा महत्व रखती है। हर किसी को अपनी संस्कृति से प्यार है। मुझे लगता है कि भाषा एक नहीं होनी चाहिए, दिल एक होने चाहिए। जिन्होंने बचपन से लेकर आज तक कभी हिंदी नहीं बोली, अचानक उनको बोला जाए कि हिंदी सीख लो.. तो ये संभव नहीं है। यदि हमने साउथ की फिल्मों को अपना लिया है, इसका यही मतलब है कि हमने साउथ की भाषा को भी अपना लिया है।
बॉलीवुड और साउथ सिनेमा की बॉक्स ऑफिस को लेकर भी काफी हंगामा मचा है। इस बारे में आप क्या सोचते हैं?
मैं यही कहूंगा कि साउथ की सिनेमा को अपनी मार्केट खूब पता है। वो दर्शकों की नब्ज पहचानते हैं। यह महज संयोग की बात है कि इस वक्त हमारी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर लैंड नहीं कर पा रही हैं। ताजा देखें तो भूल भूलैया 2 चल गई, कहीं न कहीं इस फिल्म ने लोगों से कनेक्ट किया है। कमर्शियल सिनेमा की ग्रामर अलग होती है। कई बार हमारी फिल्म ज्यादा इंटेलिजेंट होती है या फिर कुछ ज्यादा ही massy हो जाती है। यहां हमें इन दोनों के बीच का रास्ता बनाने की जरूरत है। नॉर्थ और साउथ की कोई डिबेट ही नहीं है। यहां बस दर्शकों के कनेक्शन की बात है। यदि आपको कहानी पसंद आएगी, तो आप देखेंगे ही.. चाहे वो हिंदी फिल्म हो या साउथ की।
आज के समय में आपके लिए बतौर कलाकार अपने पॉलिटिकल व्यूज व्यक्त करना कितना आसान या मुश्किल है?
एक एक्टर के तौर पर मैं अपना नजरिया सिर्फ अपनी फिल्मों के जरीए दिखाना चाहता हूं। मैं कभी ट्विट के जरीए या अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कभी कुछ बोलता नहीं हूं। मुझे लगता है कि एक कलाकार के तौर पर आपका काम है एक्टिंग करना। लोग आपको सराहते हैं क्योंकि आप अच्छी एक्टिंग करते हैं, अच्छे विषय चुनते हैं.. ना कि आपकी राजनीतिक सोच क्या हैं? तो जो भी मैं बोलना चाहता हूं, अपनी फिल्मों के जरीए बोलना चाहता हूं।
इस साल फिल्म इंडस्ट्री में आपने 10 साल पूरे कर लिये हैं। इन 10 सालों की सबसे बड़ी सीख क्या रही?
हां, 10 साल पूरे हो गए। सच कहूं तो, साल 2012 बहुत ही खास साल रहा था.. मैंने, अर्जुन, सिद्धार्थ, वरुण, आलिया.. हम सबने एक ही साल में डेब्यू किया था और सबकी फिल्में चल गई थीं। ऐसा शायद ही पहले कभी हुआ होगा। ये बैच मुझे आज भी बहुत स्पेशल लगती है। हम सबके बीच एक बॉण्डिंग थी, जो आज तक बरकरार है। जहां तक सीखने की बात है.. तो इन 10 सालों में मैंने यही सीखा है कि कुछ भी स्थायी (permanent) नहीं है। ना सफलता हमेशा के लिए है, ना असफलता। दोनों ही आते जाते रहेंगे, लेकिन आपको सिर्फ आगे बढ़ते रहना है।
इन सालों में इंडस्ट्री में कभी आपको भेदभाव का सामना करना पड़ा है?
नहीं, कभी भेदभाव तो नहीं हुआ है। शायद इसीलिए भी क्योंकि मैंने ज्यादातर नए डायरेक्टर्स के साथ ही काम किया है। हो सकता है कि यदि मैं आउटसाइडर नहीं होता तो मेरी पहली फिल्म के बाद मुझे और बड़े प्रोडक्शन हाउस और बड़े डायरेक्टर के साथ काम करने का मौका मिलता.. लेकिन जितनी मेरी हिट फिल्में रही हैं, सारी नए डायरेक्टर्स के साथ हैं और उन प्रोड्यूर्स के साथ हैं, जो फिल्म फैमिली से नहीं हैं। तो हमने एक दूसरे को सपोर्ट किया है। आज के समय में मुझे लगता है सिर्फ टैलेंट टिक पाता है। चाहे कोई फिल्म फैमिली से हो या ना हों, जो लोग काम कर रहे हैं वो टैलेंटेड हैं। हां, मैं इस मामले में सौभाग्यशाली रहा हूं कि मुझे अच्छे राइटर्स और डायरेक्टर्स मिले हैं।
लॉकडाउन के बाद फिल्मों के बॉक्स ऑफिस नंबर्स को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहे हैं?
'अनेक' की बात करूं तो इस फिल्म को हम कमर्शियल एंगल से नहीं देख सकते। यह एक महत्वपूर्ण फिल्म है, हम चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचे। लेकिन इसके बॉक्स ऑफिस नंबर्स को लेकर मैं नहीं सोच रहा। कभी कभी आप मेनस्ट्रीन की विचारधारा से बिल्कुल विपरीत चलते हैं। वो बस उतना विपरीत नहीं होना चाहिए कि लोग उससे रिलेट ही ना कर पाएं। इसीलिए हमेशा एक बीच का रास्ता अपनाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर एलजीबीटी विषय पर बनी फिल्म ने हमारी इंडस्ट्री में आज तक कभी कमर्शियल सक्सेस देख ही नहीं पाई है। बॉक्स ऑफिस पर हिट करने के लिए आपको वही दिखाना पड़ेगा, जो पब्लिक को पसंद है। लेकिन मेरी सोच थोड़ी अलग है, तो मैं वैसी ही फिल्में करता रहूंगा, जैसी करता आया हूं।