twitter
    For Quick Alerts
    ALLOW NOTIFICATIONS  
    For Daily Alerts

    'शाबाश मिथु' फिल्म रिव्यू- 'वुमेन इन ब्लू' मिताली राज की कहानी के साथ न्याय करती हैं तापसी पन्नू

    |

    Rating:
    3.0/5

    निर्देशक- सृजित मुखर्जी
    कलाकार- तापसी पन्नू, विजय राज, इनायत वर्मा, बृजेंद्र काला

    "ये मैदान देख रही हो ना, यहां सारे दर्द छोटे हैं, सिर्फ खेलना बड़ा है.. खेलो." नेशनल टीम में चुनाव के लिए खेले जाने वाले मैच से पहले कोच संपत (विजय राज) अपने बगल बैठी मिताली राज (तापसी पन्नू) से कहते हैं। निजी जिंदगी में कुछ कारणों से टूटी मिताली मैदान में उतरती है और चौके- छक्कों की बारिश कर देती है। अक्सर बायोपिक में व्यक्ति के निजी संघर्षों पर, उनके उतार- चढ़ाव और जीत पर ज्यादा फोकस करते देखा गया है, लेकिन यहां संघर्ष क्रिकेट संबंधित परिस्थितियों और मानसिकता से है। जेंटलमेन्स गेम की दुनिया में 'वुमेन इन ब्लू' की पहचान बनाने की लड़ाई है।

    shabaash-mithu-review-taapsee-pannu-as-mithali-raj-does-justice-to-the-biopic-despite-few-hiccups

    [INTERVIEW: शाबाश मिथु, बॉक्स ऑफिस और फिल्मों में संघर्ष पर तापसी पन्नू]

    'शाबाश मिथु' में मिताली राज के बचपन से लेकर 2017 महिला क्रिकेट विश्व कप के फाइनल में भारत की अगुवाई करने तक के सफर को दिखाया गया है। तापसी पन्नू ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि ये कोई क्रिकेट फिल्म नहीं है, बल्कि एक लड़की की कहानी है जो क्रिकेट खेलती है। फिल्म देखकर उनकी बात सही लगती है। यहां आप क्रिकेट मैच का रोमांच शायद अनुभव ना कर पाएं, लेकिन एक मजबूत इरादे वाली लड़की की लड़ाई दिखेगी।

    कहानी

    कहानी

    शुरुआत होती है साल 1990 से, जब भरतनाट्यम की क्लास में मिताली की दोस्ती नूरी से होती है। नूरी ही वो होती है, जो मिताली की प्रतिभा को सबसे पहले जांचती है, पहचानती है और प्रोत्साहित भी करती है। एक दिन दोनों लड़कियों पर क्रिकेट कोच संपत सर की नजर पड़ती है और वो दोनों को अपने अंडर ट्रेनिंग के लिए रख लेते हैं। जहां मिताली एक खुले विचार वाले घर में पल पढ़ रही होती है, वहीं नूरी 7 सालों तक घर में झूठ बोलकर क्रिकेट की कोचिंग जारी रखती है। समय गुजरता है और दिन आता है नेशनल टीम में सेलेक्ट होने का। कोच को दोनों लड़कियों की प्रतिभा पर पूरा भरोसा होता है। लेकिन ऐन मौके पर नूरी की शादी हो जाती है और मिताली पहुंच जाती है भारतीय महिला क्रिकेट टीम में। यहां से उसके अलग सफर की शुरुआत होती है। अच्छे प्रदर्शन के बावजूद महिला टीम को लगातार क्रिकेट बोर्ड का असहयोग और पब्लिक की उपेक्षा झेलनी पड़ती है। लेकिन मिताली लड़ती है.. बराबरी के लिए। वह जेंटलमेन्स की दुनिया में वुमेन्स टीम को वही इज्जत दिलाने की लड़ाई लड़ती है। वह अपने बल्ले से शतक पर शतक जमाकर सबको जवाब देती है और एक समय आता है कि जब शानदार नेतृत्व से भारत को विश्वकप के फाइनल तक पहुंचा देती है।

    अभिनय

    अभिनय

    तापसी पन्नू भावनात्मक स्तर पर मिताली राज के किरदार को अपनाने की अच्छी कोशिश करती है। वह मिताली की नकल नहीं करती हैं, बल्कि अपने तरीके से उनकी भावनाओं को दिखाने की कोशिश करती हैं, जो मिताली ने अपनी जिंदगी के उस मोड़ पर महसूस की होंगी। खास बात है कि बल्ले के साथ तापसी सहज दिखती हैं। लेकिन जितनी तारीफ तापसी की करनी होगी, उतनी ही बाल कलाकार इनायत वर्मा की भी करनी होगी, जिन्होंने मिताली के बचपन का किरदार निभाया है। मिताली की दोस्ती नूरी के रोल में कस्तूरी जगनम बेहतरीन लगती हैं। मिताली के कोच संपत के किरदार में विजय राज दिल में जगह छोड़ जाते हैं।

    निर्देशन

    निर्देशन

    बॉलीवुड में खिलाड़ियों पर कई बायोपिक फिल्में बन चुकी हैं। कहीं ना कहीं हर किसी की कहानी किसी सिरे से एक जैसी ही लगती है। ऐसे में निर्देशक सृजित मुखर्जी 'शाबाश मिथु' को खास बनाने के लिए क्या कर सकते थे? उन्होंने फिल्म का दृष्टिकोण ऐसा रखा कि कहानी किसी एक मैच पर या क्लाईमैक्स पर नहीं टिकी है, बल्कि यह एक सफर है जिसे वास्तव में देखा जाना चाहिए। लेकिन सृजित मुखर्जी 2 घंटे 40 मिनट लंबी इस कहानी को जरूरत भर रोमांचक बनाने में चूक गए हैं। कहानी इतनी धीमी गति से आगे बढ़ती है कि किरदारों में उत्साह की कमी दिखती है। वहीं, क्लाईमैक्स में मिताली द्वारा दिया गया मोनोलॉग चक दे इंडिया की याद दिलाता है।

    तकनीकी पक्ष

    तकनीकी पक्ष

    फिल्म का संगीत ध्यान भटकाता है। गाने औसत हैं और फिल्म की रनटाइम बढ़ाने का काम करते हैं। सिरसा रे की सिनेमेटोग्राफी अच्छी है। खासकर बल्ले के साथ तापसी पन्नू की कोरियोग्राफी काफी अच्छी की गई है। ए श्रीकर प्रसाद एडिटिंग में फिल्म को थोड़ा बांध सकते हैं, लेकिन वो यहां सफल नहीं रहे। देखा जाए तो फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष इसके कलाकार हैं।

    क्या अच्छा क्या बुरा

    क्या अच्छा क्या बुरा

    लगभग 2 घंटे 40 मिनट लंबी इस फिल्म की शुरुआत दिलचस्प है। मिथु और उसकी दोस्त नूरी के बीच का तालमेल बेहद खूबसूरत और मनोरंजक है। वहीं, क्रिकेट के प्रति उनका आकर्षण और कोच संपत के साथ उनकी ट्रेनिंग देखना अच्छा लगता है। लेकिन इंटरवल के बाद से फिल्म की गति आपका ध्यान भटकाने लगती है। यहि वजह है कि शाबाश मिथु रोमांच पैदा करने में पीछे छूटती है। क्रिकेट का मैच हो, या मिताली की जिंदगी की कोई घटना.. कहानी में वो रोमांच नजर नहीं आता कि आपके रोंगटे खड़े हो जाएं या आंखें भर आए।

    रेटिंग

    रेटिंग

    मिताली राज की जिंदगी पर बनी ये कहानी आपको कुछ अलग करने की हिम्मत और अपनी प्रतिभा के बल पर आत्म विश्वास से भरपूर रहने की बात कहती है। हिम्मत और आत्म विश्वास हो तो मुश्किल से मुश्किल जंग भी लड़ी जा सकती है। हालांकि फिल्म के कंटेंट को थोड़ा और रोमांचक बनाने पर काम किया जा सकता था। फिल्मीबीट की ओर से तापसी पन्नू अभिनीत 'शाबाश मिथु' को 3 स्टार।

    English summary
    Taapsee Pannu starrer Mithali Raj's biopic Shabaash Mithu is right in it's intent but fails to engage throughout due to it's long runtime.
    तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
    Enable
    x
    Notification Settings X
    Time Settings
    Done
    Clear Notification X
    Do you want to clear all the notifications from your inbox?
    Settings X
    X