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रानी मुखर्जी की फिल्म हिचकी के 3 साल पूरे, टॉरेट सिंड्रोम पर आधारित फिल्म ने विश्वभर में कमाए थे 250 करोड़
रानी मुखर्जी की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित ब्लॉकबस्टर फिल्म 'हिचकी' ने पूरी दुनिया का दिल जीत लिया था। 'हिचकी' ने विश्व भर में 250 करोड़ रुपए से ज्यादा कमाए थे और कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में शीर्ष एवार्ड जीते थे। इस दिल को छू लेने वाली और प्रेरणादायक फिल्म में स्टीरियोटाइप ध्वस्त करने का एक प्रगतिशील संदेश छिपा था।
फिल्म में रानी को दृढ़ निश्चय वाली एक ऐसी स्कूल टीचर के रूप में दिखाया गया था, जो स्वयं के नर्वस सिस्टम डिसॉर्डर- टॉरेट सिंड्रोम से जूझते हुए आर्थिक तौर पर पिछड़े तबके के मासूम छात्रों की जिंदगी बदल देती है। इस फिल्म के रिलीज होने की तीसरी सालगिरह के मौके पर निर्देशक सिद्धार्थ पी. मल्होत्रा का कहना है कि इस दिव्यांगता को लेकर जागरूकता पैदा करने की दिशा में 'हिचकी' ने जो असर डाला था, वह उनके लिए गर्व का विषय है।
"क्या मैंने टॉरेट सिंड्रोम के बारे में जागरूकता पैदा की थी? इसका जवाब है कि बिल्कुल पैदा की थी। कई लोग खुल कर सामने आए, अनगिनत लोगों ने मुझे इसके संबंध में पत्र लिखे, क्योंकि उनकी नजर में यह एक उलझन और शर्मिंदगी का विषय था।
फिल्म के इतने गहरे असर को देख कर मैं बेहद खुश था। इसका असर शिक्षकों पर, छात्रों पर भी देखा गया। इनके साथ-साथ फिल्म ने हर उस व्यक्ति की जिंदगी को प्रभावित किया जो किसी भी किस्म की दिव्यांगता से पीड़ित था। यह भी एक हकीकत है कि हम सभी किसी न किसी विकृति से ग्रस्त होते हैं।"- कहना है सिद्धार्थ का।
टॉरेट से किसी न किसी रूप में लड़ना पड़ता है
इस सराहनीय निर्देशक ने आगे बताया, "हिचकी ने यह भी सिखाया कि मुझे अपने खुद के टॉरेट के साथ दोस्ताना रवैया रखना चाहिए। हम सबको अपने-अपने टॉरेट की तलाश करनी चाहिए। हमने इसकी पहचान कर ली हो या न की हो,हमें स्वयं के टॉरेट से किसी न किसी रूप में लड़ना पड़ता है।
लेकिन हां,फिल्म के असर को देख कर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। आज भी लोग मेरे पास आते हैं और कहते हैं कि वाह क्या फिल्म है! यह सुनकर बहुत अच्छा लगता है क्योंकि इस मकाम तक पहुंचने का सफर और आदि (चोपड़ा) तथा मनीष (शर्मा) द्वारा मुझे अपने मनमाफिक फिल्म बनाने की इजाजत देना गजब की बात थी,क्योंकि इस फिल्म को संभालना अपने आपमें एक बड़ी चुनौती थी। इसलिए मैं उनका बेहद शुक्रगुजार हूं।"
फिल्म की कहानी सुनने के बाद रानी का क्या रिएक्शन था
इसमें कोई शक नहीं है कि रानी की शानदार एक्टिंग'हिचकी'का हाईलाईट थी,जिसने फिल्म के संदेश को प्रभावशाली ढंग से दुनिया भर में घर-घर पहुंचाया।
वह कहते हैं, "मुझे लगता है कि रानी को आप दुनिया का एक आश्चर्य कह सकते हैं,दरअसल आप उनको पूरे यूनिवर्स का वंडर कह सकते हैं,और मैं महज उनकी तारीफ करने के लिए ऐसा नहीं कह रहा हूं।
मुझे अब भी याद है कि जब मैं फिल्म नैरेट कर रहा था,तो रानी ही वह शख्सियत थीं- जिन्होंने मुझसे साफ तौर पर कहा था कि मैं भारत में टॉरेट सिंड्रोम को लेकर जागरूकता पैदा करने जा रहा हूं।"
यह फिल्म ब्रैड कोहेन पर आधारित है
इस निर्देशक ने आगे बताया, "रानी ने रिसर्च की,उन लोगों और बच्चों से मिलीं जो टॉरेट से पीड़ित थे। कुछ बच्चे सामने ही नहीं आना चाहते थे,कुछ लोग उनके सामने अपनी घबराहट और शर्मिंदगी जाहिर करने में हिचकिचा रहे थे।
यह फिल्म ब्रैड कोहेन पर आधारित है। मुझे लगता है कि ब्रेड कोहेन के साथ काम करने के प्रति रानी का समर्पण,ब्रैड का उनकी मदद करने का तरीका और रानी द्वारा इस समस्या को अंगीकार करना और समझना गजब का था। वह इतनी इंटेलीजेंट अभिनेत्री हैं कि आपको उन्हें कोई भी चीज एक या दो बार से ज्यादा बताने की जरूरत ही नहीं पड़ती।"
रानी की एक्टिंग सहज और स्वाभाविक
सिद्धांत कहते हैं कि एक टॉरेट पीड़ित व्यक्ति के किरदार में रानी की भरोसेमंद एक्टिंग ने दर्शकों का मन मोह लिया था।वह बताते हैं, "अपने लंबे अनुभव की बदौलत वह आसानी से समझ गई थीं कि उनको करना क्या है।
मेरी समझ में उनकी एक्टिंग इतनी सहज और स्वाभाविक थी कि न सिर्फ भारत में,बल्कि पूरे विश्व के दर्शक उससे जुड़ गए। मुझे याद है कि एक बार हम लोग चीन गए थे और वहां लोग उनके दीवाने हुए जा रहे थे! तो जी हां,मुझे लगता है रानी के साथ काम करने वाला हर व्यक्ति भाग्यशाली होता है। वह आपको लाड़-प्यार से बिगाड़ती हैं,वह सीधे पहले टेक में ही ओके करा देती हैं,ज्यादा से ज्यादा दूसरे टेक में काम सही हो जाता है और आप आगे बढ़ जाते हैं। तो जी हां,अगर आप रानी के साथ काम करते हैं,तो खुद को धन्य ही समझिए।"
मुझे खारिज कर दिया गया था
सिद्धार्थ'हिचकी'को अपने अब तक के करियर की सबसे महत्वपूर्ण फिल्म मानते हैं। वह बताते हैं, "यह अब तक के मेरे करियर की सबसे महत्वपूर्ण फिल्म है।
इसकी वजह यह है कि मेरे दिल के करीब वाली फिल्म'वी आर फेमिली'बॉक्स ऑफिस पर कुछ खास नहीं कर सकी थी। मुझे खारिज कर दिया गया था,मैं बुरे दिनों से गुजर रहा था। कोई मुझे'हिचकी'की कहानी ही नहीं सुनाने दे रहा था।
लोगों का खयाल था कि यह'बस्ती'के बच्चों के साथ रहने वाली किसी मानसिक रूप से विक्षिप्त टीचर की कहानी है,जिसको लेकर मैं किसी किस्म का आर्ट सिनेमा बनाने जा रहा हूं। लोग ऐसा करने,वैसा न करने वाली सलाहें दे रहे थे और कुल मिलाकर उनकी राय थी कि मुझे कोई कॉमर्शियल ब्लॉकबस्टर फिल्म बनानी चाहिए।"
हिचकी ने पहचान दी
सिड आगे कहते हैं, "लेकिन मैं इस बात को लेकर एकदम स्पष्ट था कि मुझे अपनी आवाज सुनाने वाली फिल्म बनानी है। तो जी हां, 'हिचकी'अब तक के मेरे करियर की सबसे महत्वपूर्ण फिल्म इसलिए है कि इसने मुझे दोबारा जन्म दिया!
इसने मुझे अपनी आस्था और दृढ़ विश्वास तथा खुद पर भरोसा करना सिखाया। यही वह फिल्म थी जिसके जरिए मैंने खुद से कहा कि मेरे भीतर एक स्टोरीटेलर यकीनन मौजूद है और मुझे विकसित होना है।
वाकई मुझे अपना काफी विकास करना होगा। उम्मीद है कि अगली फिल्म में मेरा काफी विकास नजर आएगा। यहां तक'हिचकी'ने मुझे अपनी आवाज की पहचान कराने में बड़ी मदद की है। मुझे लगता है कि अपनी आवाज पा लेना किसी भी फिल्म-मेकर के लिए सबसे बड़ी उपलब्धि होती है। यह फर्क कर पाना कि अमुक फिल्म सिद्धांत पी. मल्होत्रा की है या फलां डाइरेक्टर की है,अपने आपमें बहुत बड़ी बात है। तो मुझे लगता है कि'हिचकी'के माध्यम से मैंने अपनी आवाज पा ली है।"
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