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    हिट की रेस में पिछड़ा बॉलीवुड

    By Staff
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    हिट की रेस में पिछड़ा बॉलीवुड

    मुंबई में हुए आतंकवादी हमलों के बाद तो सिनेमाघरों से जैसे दर्शक नदारद ही हो गए.

    इन्हें वापस खींच लाने का काम किया बॉलीवुड के बादशाह शाहरुख़ खान और परफ़ेक्शनिस्ट आमिर खान ने अपनी फ़िल्मों रब ने बना दी जोड़ी और गजनी से.

    कारोबार के हिसाब से चंद ही फ़िल्में फ़ायदे का सौदा साबित हुईं. जो फ़िल्में लोगों को थिएटरों तक खींच लाने में सफल रहीं.

    वर्ष 2008 की सफल फ़िल्में

    वर्ष 2008 की फ़्लॉप फ़िल्में

    इनमें शामिल है- रेस, जन्नत, जाने तू या जाने न, सिंह इज़ किंग, रॉक ऑन, फ़ैशन, दोस्ताना, रब ने बना दी जोड़ी और गजनी.

    प्रियंका चोपड़ा ने साल की सबसे फ़्लॉप फ़िल्में दीं तो अंत दो हिट फ़िल्में फ़ैशन और दोस्ताना देकर किया. नए सितारे भी फ़िल्मों में छाए रहे.

    हिट की रेस

    बॉलीवुड में कम ही फ़िल्मकार अपनी फ़िल्म को साल के पहले महीने में रिलीज़ करना पसंद करते हैं.. धारणा कुछ ऐसी है कि फ़िल्म हिट नहीं होती. लेकिन जनवरी में ही आशुतोष गोवारिकर ने इतिहास को पर्दे पर उतारा फ़िल्म जोधा अकबर के ज़रिए जिसे आमतौर पर लोगों से सकारात्मक प्रतिक्रिया ही मिली. वहीं बॉलीवुड को हिट देने की प्रतियोगिता में फ़िल्म रेस आगे रही.

    आईपीएल के बीच क्रिकेट की पृष्ठभूमि पर बनी जन्नत ने भी बॉक्स ऑफ़िस पर अच्छी कमाई की. सिंह इज़ सिंह में सरदारजी बनकर अक्षय कुमार वाकई किंग साबित हुए. हालांकि वितरकों को उतना फ़ायदा नहीं हुआ.

    कभी हिट फ़िल्मों की गारंटी समझे जाना वाले यशराज बैनर के लिए 2008 भी मंदा ही साबित हुआ.सैफ़-अक्षय की जोड़ी और करीना का साइज़ ज़ीरो भी लोगों में टशन पैदा नहीं सका. थोड़ा प्यार थोड़ा मैजिक का जादू बेअसर साबित हुआ. बचना ए हसीनों ने ज़रुर औसत कारोबार किया.

    इस साल पर्दे पर उतरे कई नए सितारों ने इंडस्ट्री को कुछ नयापन, कुछ ताज़गी दी. पिछले साल जैसी हाइप रणबीर कपूर को लेकर हुई थी, 2008 में वैसा पागलपन इमरान खान को लेकर हुआ. 'जाने तू या जाने न' ने इमरान को रातों-रात स्टार बना दिया.

    पर हरमन बवेजा उतने ख़ुशकिस्मत नहीं रहे. उनकी फ़िल्म लव स्टोरी 2050 में लोगों ने ऋतिक जैसे भेष में हरमन को देखा और साथ ही देखा 2050 में भविष्य की मुंबई को लेकिन फ़िल्म को मिली ठंडी प्रतिक्रिया देखकर लगता है कि लोग वर्तमान में रहकर ही संतुष्ट हैं.

    मंदी का साया

    कुछ चुनिंदा कम बजट वाली फ़िल्मों की सफलता ने लोगों को चौंका दिया. राजकुमार गुप्ता की आमिर और नीरज पांडे की ‘ए वेडनस्डे’ ने मानो लोगों की नब्ज़ पर हाथ रखा. ‘वेल्कम टू सज्जनपुर’ में पर्दे से ग़ायब होते गाँव-देहात का लोगों ने खुले दिल से स्वागत किया. अपने नाम के अनुरूप फ़रहान अख़्तर की फ़िल्म रॉक ऑन ने वाकई रॉक किया और फ़िल्मों को फ़रहान के रूप में मिला नया अभिनेता.

    वहीं द्रोणा में कोशिश तो बॉलीवुड को नया सुपरहीरो देने की थी पर फ़िल्म सुपरज़ीरो रही. ‘मिशन इस्तांबुल’ में अपूर्व लाखिया का मिशन विफल साबित हुआ. कर्ज़ हो या क्रेज़ी-4 या सलमान खान की गॉड तुसीं ग्रेट हो और युवराज, बड़ी फ़िल्में एक के बाद एक करके पिटती रहीं.

    फ़िल्मों की प्रीमियर पार्टी का चलन एक बार फिर लौटा तो विवादों ने भी सितारों का पीछा नहीं छोड़ा.

    2008 में छोटा पर्दा यानी टेलीवीज़न नाममात्र ही छोटा रहा गया. टॉप फ़िल्मी सितारों ने छोटे पर्दे का रुख़ किया. सलमान ने दिखाया 'दस का दम' तो शाहरुख़ ने पूछा कि 'क्या आप पाँचवी पास से तेज़ हैं', ख़तरों के खिलाड़ी अक्षय कुमार ने 'फ़ीयर फ़ैक्टर' होस्ट किया. वहीं शिल्पा ने बिग बॉस की होस्ट बनकर सबको चौंका दिया.

    इस बीच दुनिया भर में छाए आर्थिक संकट का असर बॉलीवुड पर भी देखने को मिलने लगा है. फ़िल्मों का बजट और सितारों की आसमान छूती कीमतें कम करने की कोशिश हो रही हैं तो कुछ फ़िल्मों पर काम फ़िलहाल बंद होने की ख़बरें हैं.

    लेकिन यहाँ भी मानो शाहरुख़ खान कहते नज़र आए कि 'पिक्चर अभी ख़त्म नहीं हुई है मेरे दोस्त'. 'हैप्पीज़ एंडिंग' की तर्ज पर उनकी फ़िल्म 'रब्ब ने बना दी जोड़ी' साल के आख़िर में लोगों को सिनेमाघरों में वापस खींच लाई तो आमिर की गजनी भी लोगों को लुभा रही है.

    अब नए साल में इस सिलसिले को आगे बढ़ाने का ज़िम्मा 2009 में आने वाली चांदनी चौक टू चाइना और बिल्लू बारबर जैसी फ़िल्मों पर होगा.

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