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त्याग, सुंदरता और मादकता का पर्याय 'हेलन'
उनके खूबसूरत हुस्न और कातिल अदाओं का खुमार सिनेप्रेमियों के जेहन में आज भी कायम है। उनका नाम सुनते ही लोगों को अनायास याद आ जाता है वह गीत 'ओ हसीना जुल्फों वाली जाने जहां..' और उस पर उनका थिरकना। बिजली की तरह थिरकने वाली हिंदी सिनेमा की उस अदाकारा का नाम है हेलन, पूरा नाम हेलन रिचर्डसन खान।
नाम से ही पता चलता है कि हेलेन ने दो धर्मो में अपनी जिंदगी बिताई। लेकिन यह और भी दिलचस्प है कि हेलन के पिता रिचर्डसन फ्रांसीसी एंग्लो इंडियन थे, मां मर्लिन रिचर्डसन बर्मी यानी बर्मा (अब म्यांमार) की थीं और उनके दादा जी स्पेनिश थे। उनके असली पिता का नाम जैराग था।
21 नवंबर, 1939 को जन्मी थीं हेलेन। पिता के द्वितीय विश्वयुद्ध में शहीद होने के बाद हेलन की मां अपने बच्चों के साथ भारत चली आईं। भारत में हेलेन का शुरुआती दौर काफी संघर्षो के बीच गुजरा। नर्स मां की कमाई से परिवार लेकिन चलाना मुश्किल हो रहा था इसलिए हेलेन को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। इसी दौरान हेलेन की पारिवारिक मित्र और पचास के दशक की प्रसिद्ध नृत्यांगना कुक्कू ने उन्हें फिल्मों में डांस करने की सलाह दी।
कुक्कू की मदद से हेलेन का फिल्मों में पदार्पण हुआ। शुरुआत में हेलेन ने नर्तकियों के समूह में नृत्य किया। 'अलिफ लैला' (1953) में वह पहली बार बतौर सोलो डांसर नजर आईं। निर्माता पी.एन अरोड़ा को हेलेन का डांस पसंद आया और इसके बाद अरोड़ा की 'हूर-ए-अरब' (1955), 'नीलोफर' (1957), 'खजांची' (1958), 'सिंदबाद', 'अलीबाबा', 'अलादीन' (1965) जैसी फिल्मों में वह नजर आईं।
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