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नए दौर में महिला फ़िल्मकार और निर्देशक
भावना सोमाया, वरिष्ठ फ़िल्म समीक्षक, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए
एक ज़माना था जब हिंदी फ़िल्म निर्माता सीधे-सादे कपड़े पहनते थे, हिंदी में सोचते थे, और हिंदी में ही बातचीत करते थे. अगर आज के निर्माताओं की बात करें, मसलन अनिल कपूर की छोटी बेटी रिया कपूर को ही लें-वो अपने अंदाज़ में किसी स्टार से कम नहीं हैं, आज की पीढ़ी की तरह अंग्रेज़ी में सोचती हैं और अंग्रेज़ी में ही बात करती हैं.
एक ज़माना था जब महिला निर्देशक सिर्फ़ महिला प्रधान फ़िल्में बनाती थीं और वो भी छोटे बजट की. ये आर्ट हाउस फ़िल्में होती थीं और चुनिंदा दर्शकों के लिए थीं. आज सभी महिला फ़िल्मकार-जैसे 'आयशा' की निर्देशिका राजश्री ओझा फ़रहा खान के नक्शे क़दम पर चलना चाहती हैं और सिर्फ़ मुख्यधारा की फ़िल्में ही बनाना चाहती हैं.
एक ज़माना था जब हीरोइनें सकारात्मक भूमिकाओं को भी किसी पीड़ित व्यक्ति की तरह निभाती थीं, जैसे-गुलज़ार की 'खुशबू' में हेमामालिनी. और नकारात्मक भूमिकाओं में विलेन की तरह नज़र आती थीं, जैसे-'कर्ज़' में सिमी ग्रेवाल. आज की हीरोइनें पटकथा लेखक की मदद से सकारात्मक भूमिकाओं को असल तरीके से पेश करती हैं, जैसे-'जब वी मेट' में करीना कपूर. या फिर नकारात्मक भूमिकाओं को भी सकारात्मक बना देती हैं, जैसे-'कॉरपोरेट' में विपाशा बसु.
सोनम कपूर 'सांवरिया', 'दिल्ली-6' और 'आई हेट लव स्टोरीज़' के बाद 'आयशा' में थोड़ी सशक्त, थोड़ी कमजोर, कुछ पॉजिटिव और कुछ नेगेटिव चरित्र का मिश्रण लाई हैं. निर्माता रिया कपूर जो खुद नई हैं, पांच नए कलाकारों-इरा दूबे, अंजलि दूबे, सायरस साहूकार और अरूणोदय सिंह को परिचित कराती हैं. फ़िल्म निर्देशिका राजश्री ओझा की भी यह पहली फ़िल्म है.
वैसे तो आयशा एक सीधी-सादी लव स्टोरी है, लेकिन इसे एक दोस्ती की कहानी या फिर रिश्तों का सफ़र भी बताया जा सकता है-कब रिश्तों में फासले आते हैं, दरारें पड़ जाती हैं और कब हमें सच का सामना करना पड़ता है. फ़िल्म का सुर हल्का-फुल्का है, पूरा ध्यान कॉस्ट्यूम, फैशन और स्टाइलिंग पर है. फ़िल्म की कहानी जॉन आस्टिन की 19वीं शताब्दी के उपन्यास 'एम्मा' पर आधारित है जिसमें मिस्टर नाइटली की भूमिका में अभय देयोल हमेशा की तरह हमारा दिल जीत लेते हैं.
सोनम कपूर आयशा की भूमिका के लिए बिल्कुल ही सही हैं और काफ़ी सुंदर लगती हैं. अगर आपको प्रेम कहानी अच्छी लगती है, नए फ़ैशन, लाइफ स्टाइल और ब्रैंड्स में रूचि है तो यह फ़िल्म आपके लिए है. अगर नहीं तो संगीत निर्देशक अमित त्रिवेदी का संगीत और जावेद अख़्तर की 'गल मीठी मीठी बोल' का मज़ा आप घर बैठे टेलीविज़न देखते हुए भी ले सकते हैं.
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