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गायक बनाए नहीं जाते वे पैदाइशी होते हैं
सुरेश वाडकर उन गिने चुने और सौभाग्यशाली गायकों में से एक हैं जिन्होंने जितने भी गाने गाए वे अमर हो गए. आज भी वह नए गायकों के लिए चुनौती है. फिलहाल वह भी ज़ी टी वी के "सारेगामापा लिटल चैम्प्स " में सोनू निगम के साथ बतौर जज नज़र आ रहे हैं. इस कार्यक्रम तथा संगीत के बदलते परिवेश पर हमनें उनसे बातचीत की.
"सारेगामापा
लिटल
चैम्प्स"
में
जज
के
अलावा
इन
दिनों
आप
क्या
कर
रहे
हैं
?
इस
कार्यक्रम
के
साथ
मैं
सहारा
वन
के
सिंगिंग
रिएलिटी
शो
"झूम
इंडिया
"
में
प्रतियोगी
हूं.
मुझे
काफी
मज़ा
आ
रहा
है
कि
एक
रिएलिटी
शो
में
मैं
जज
हूं
और
दूसरे
में
प्रतियोगी.
क्या
आप
रिएलिटी
शो
जैसे
कार्यक्रमों
पर
विश्वास
करते
हैं
?
जी
हां
इन
कार्यक्रमों
पर
मैं
यकीन
करता
हूं
क्योंकि
इससे
दूरदराज़
में
बसी
प्रतिभा
को
भी
दर्शकों
के
सामने
आने
का
मौका
मिलता
है.
मगर
दर्शकों
द्वारा
वोटिंग
प्रणाली
से
मैं
नाराज़
हूं.
वह
प्रतियोगी
के
गायन
प्रतिभा
से
अधिक
उनमें
एक्स
फैक्टर
को
देखते
हैं.
दर्शक
प्रतियोगी
के
उछल
कूद
के
अनुसार
उन्हें
वोट
करते
हैं.
इन
दिनों
टेलीविज़न
पर
जितने
रिएलिटी
शो
हो
रहे
हैं
उनमें
तीन
या
चार
जजेस
होते
हैं.
आप
सिर्फ
दो
हैं.
अधिक
दबाव
तो
नहीं
महसूस
कर
रहे
हैं
?
बिल्कुल
नहीं.
एक
कहावत
आपनें
सुनी
होगी
"बहुत
सारे
बावर्ची
खाना
खराब
कर
देते
हैं
"
ठीक
उसी
तरह
मैंने
देखा
है
बहुत
सारे
जजेस
के
बीच
अक्सर
मतभेद
पैदा
हो
जाते
हैं
जो
कार्यक्रम
के
लिए
अच्छी
बात
नहीं
है.
आपके
अनुसार
बच्चों
में
सिंग़िंग
क्षमता
को
निखारना
मुश्किल
है
या
आसान
?
मुझे
लगता
है
बच्चों
को
जज
करना
बहुत
मुश्किल
काम
है.
बच्चे
गीली
मिट्टी
की
तरह
होते
है
जिन्हें
यदि
सही
आकार
नहीं
दिया
गया
तो
उनकी
पूरी
ज़िंदगी
भी
खराब
हो
सकती
है.
मैंने
इस
कार्यक्रम
के
छ
सात
एपिसोड
कर
लिए
हैं
चार
तो
दर्शकों
के
सामनें
ही
आ
चुका
है.
मैंने
देखा
है
कि
इन
बच्चों
में
न
सिर्फ
सुर
की
अच्छी
समझ
है
बल्कि
गज़ब
का
आत्मविश्वास
भी
है.
आपको
क्या
लगता
है
इस
तरह
के
कॉम्पिटीशन
बच्चों
के
लिए
कितने
फायदेमंद
होंगे
?
यह
तो
मैं
नहीं
बता
सकता
मगर
मुझे
लगता
है
होने
चाहिए.
इस
कार्यक्र्म
में
बच्चों
के
लिए
आयु
सीमा
सात
वर्ष
से
चौदह
वर्ष
तक
रखी
गई
है
जो
बच्चों
के
दिमागी
विकास
का
समय
होता
है.
ग्यारह
-
बारह
वर्ष
की
उम्र
बच्चों
के
लिए
सबसे
खतरनाक
होता
है
क्योंकि
इसी
उम्र
में
बच्चों
में
हर
चीज़
के
प्रति
कौतुहल
जागता
है.
अत:
यह
माता
पिता
पर
निर्भर
है
कि
वे
अपने
बच्चे
की
प्रतिभा
को
कितना
समझते
हैं.
वैसे
गायक
बनाए
नहीं
जाते
वे
पैदाइशी
होते
हैं.
किसी
भी
कमेंट
से
बच्चे
बहुत
जल्दी
खुश
भी
हो
जाते
हैं
और
आहत
भी.
सो
कमेंट
करते
वक़्त
आप
किन
बातों
का
ध्यान
रखेंगे
?
मैं
जो
सच
होगा
वही
कहूंगा,
भले
ही
बच्चे
को
बुरा
लगे
या
अच्छा.
हम
अपने
घरों
में
भी
देखते
हैं
कि
बच्चों
की
परवरिश
के
दौरान
लाड
में
आकर
उससे
हम
कुछ
ऐसा
कहते
हैं
जिससे
उसमें
कई
गलतफहमियां
पैदा
हो
जाती
है.
मैं
नहीं
चाहता
कि
सिर्फ
किसी
बच्चे
को
खुश
करने
के
लिए
मैं
उसकी
कमियां
उसे
न
बताऊं.
ज़ी
टी
वी
पर
"सारेगामापा
लिटल
चैम्प्स"
के
साथ
स्टार
प्लस
पर
"
वॉइस
ऑफ
इंडिया
किड्स"
शुरू
होने
जा
रहा
है.
दोनों
में
कितना
फर्क
होगा
?
सच
कहूं
तो
इस
बारे
में
मुझे
कोई
जानकारी
नहीं
है.
यदि
आप
अपने
समय
से
इस
समय
को
मिलाएं
तो
दोनों
में
कितना
फर्क
पाते
है
?
दोनों
में
काफी
फर्क
है.
जैसा
कि
मैंने
आपको
बताया
हमारे
समय
में
हममें
प्रतिभा
थी
मगर
उसे
दिखाने
के
लिए
आत्मविश्वास
नहीं
था.
आज
जहां
देखिए
शो
बाजी
है
बस.
वैसे
बदलाव
अच्छी
बात
है
मगर
इसका
दुखद
पहलू
यह
है
कि
कॉम्पिटीशन
के
इस
दौर
में
छोटे
छोटे
बच्चे
भी
इसका
शिकार
बन
रहे
हैं.
क्या
अभी
से
बच्चों
में
स्टारडम
के
प्रति
आकर्षण
अच्छी
बात
है
?
यही
तो
मैं
कह
रहा
हूं
कि
आज
बच्चे
या
युवा
थोडा
सा
फेमस
होते
ही
खुद
को
स्टार
मानने
लगते
हैं.
इनके
लिए
कुछ
हद
तक
चैनल
वाले
भी
ज़िम्मेदार
होते
है
जो
वोटों
के
माध्यम
से
प्रतियोगियों
को
बताते
हैं
कि
उनके
देश
भर
में
इतने
दीवाने
है.
लडकों
को
बताया
जाता
है
कि
कितनी
लडकियां
आप
पर
मर
रही
हैं.
अरे
भई
पहले
उनकी
गायकी
तो
अज्ज
करो
जिसके
लिए
इतने
बडॆ
कार्यक्रम
का
आयोजन
किया
गया
है
उसके
बाद
उन्हें
सिर
पर
बिठाना.
आज
हर
क्षेत्र
में
बदलाव
आए
हैं.
आपके
अनुसार
संगीत
में
किस
तरह
के
बदलाव
आए
हैं
?
आज
संगीत
पर
पाश्चात्य
संगीत
का
काफी
प्रभाव
है.
सबकी
तरह
संगीत
में
भी
हिंदी
और
इंग्लिश
का
मेल
है.
जिन
संगीतकारों
को
हिंदी
ऊर्दू
का
ज्ञान
नहीं
है
वे
हिंदी
गीतों
के
लिए
संगीत
की
रचना
कर
रहे
हैं.
यह
और
बात
है
कि
इसे
युवा
पसंद
कर
रहे
हैं
मगर
कब
तक.
क्या
यही
वजह
है
कि
आप
इन
दिनों
फिल्मों
से
अधिक
एल्बम
गीत
गा
रहे
हैं
?
एक
वजह
तो
यह
है
और
दूसरी
वजह
यह
है
कि
नए
गायकों
की
तरह
नए
कलाकार
आ
रहे
हैं
जिन
पर
उन्हीं
की
आवाज़
जंचती
है.
अब
हमारी
आवाज़
उन
कलाकारों
के
लिए
काफी
अलग
और
पुरानी
हो
चुकी
है.
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