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    आख़िर क्या चाहते थे माइकल जैक्सन?

    By Staff
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    आख़िर क्या चाहते थे माइकल जैक्सन?

    माइकल जैक्सन पॉप संगीत के बेताज बादशाह रहे, आकाश को छूने वाले इस गायक को आख़िर किस चीज़ की तलाश थी, कुछ कहते हैं अनीश अहलूवालिया.

    जिसने पाँच साल की उम्र में ही लोकप्रियता के क्षितिज पर अपना क़दम रख दिया हो वो आने वाले समय में आसमान छू लेगा ये जानने के लिए किसी बड़े ज्योतिषि की ज़रूरत नहीं थी.

    माइकल जैक्सन जैसे एक लकीर बन गए थे जो सीधे आसमान तक जाती थी. तो लॉस एंजेलेस के एक अस्पताल में पोस्टमार्टम के टेबल पर ये लकीर इस क़दर तितर-बितर कैसे हो गई? रिपोर्टों में कहा गया मरने के वक़्त माइकल जैक्सन का वज़न 50 किलो से कम था, सिर पर मुठ्ठी भर बाल बचे थे, नाक भीतर से टूट चुकी थी, पेट में अन्न का एक दाना नहीं, सिर्फ़ चंद अध-घुली पीड़ा नाशक गोलियाँ थीं. जाँघ और बाँहों पर सालों से गोदे गए इंजेक्शनों के दाग़ थे और छाती पर दो सुइयों के घाव जो डाक्टरों ने उनके दिल को दोबारा जिंदा करने के लिए दी थीं. चेहरे की पेशियाँ खिंच कर रबर जैसी तन गयी थीं. यह उस लकीर की आख़री तस्वीर थी जिसने अर्श पर आशियाना बनाने की ठान ली थी.

    एक कलाकार जिसका पहला संगीत अलबम 11 साल की उम्र से पहले आ जाता है, 14 साल की उम्र तक जो स्टार बन चुका हो, और 25 साल की उम्र तक पॉप म्यूज़िक की दुनिया का सबसे बड़ा सुपर स्टार कहलाए, ग़रीब देशों की सहायता के लिए सबसे ज़्यादा चैरिटी शो करने का श्रेय जिसे मिल चुका हो, दुनिया में करोड़ों लोग जिसके दीवाने हों, उसकी एक झलक के लिए तरसते हों, वो अपने आप से, अपने शरीर, अपने रूप, अपने रंग से इतना नाख़ुश कैसे हो सकता है. इस क़दर नाख़ुश, कि कई बार कॉस्मेटिक सर्जरी से अपनी नाक का आकार बदलवा ले, अपनी भौं, अपने जबड़ों का आकार बदलवा दे- यह जानते हुए भी कि ये बेहद ख़तरनाक हो सकता है और हुआ भी. पिछले 24 सालों में माइकल जैक्सन का चेहरा इतना बदल गया कि पहचानना मुश्किल हो गया. लेकिन वो जितना बदला उतना ही भीतर से टूटता गया. माइकल जैक्सन का चेहरा उनके संगीत से कम सुर्खियों में नहीं रहा. और इस भीतर से टूटते हुए चेहरे से रिसते दर्द को झेलने के लिए उन्हें दिन में छह प्रकार की पेनकिलर या पीड़ानाशक दवाइयाँ लेनी पड़ी. कई सालों तक. इस क़दर की इन दवाइयों की लत में क़ैद हो गए माइकल जैक्सन.

    कैसे चेहरे कैसे शरीर की तलाश थी माइकल जैक्सन को. नुकीली नाक, चौड़ी ठुड्डी या गोल... बादाम जैसी आँखें या तिरछी कटार जैसी. कैसे होंठ, शायद ऐसा जिसमें पुरुष और स्त्री दोनों की ख़ूबियाँ हों.. मेट्रो सेक्सुअल..पता नहीं..

    शायद एक ऐसा चेहरा एक ऐसा शरीर जो मनुष्य का होकर भी इस दुनिया का ना लगे. जैसे वो किसी दूसरी दुनिया से आए एक जीव की तस्वीर बनना चाहते थे जिसके सौंदर्य की परिभाषा वो ख़ुद हों. सबसे अलग. सबसे अनूठा. कुछ कुछ ईश्वर की अवधारणा जैसा. एक ऐसी अवधारणा जो अमरीका में बहुत से लोगों के लिए मज़ाक़ भी थी. कई लोग माइकल जैक्सन को देख कर कहते थे, एक काले मर्द का गोरी औरत में तब्दील होना सिर्फ़ अमरीका में ही मुमकिन है.

    लेकिन रूप ही नहीं... आवाज़ भी... वो हमेशा एक ऐसी आवाज़ में गाते रहे जो ना बच्चे जैसी थी ना वयस्कों जैसी. जैसे आवाज़ को उम्र से जुदा करने की कोशिश हो. एक अजीब किस्म का अमरत्व. जहाँ वो रहते थे, कई वर्ग किलोमीटर में फैले मकान में, अमरीका में उसे रांच कहते हैं, उसका नाम उन्होंने रखा था नेवरलैंड. वो ज़मीन जो कहीं नहीं हो, कभी नहीं हो. भ्रम के नक़्शे की तरह. उनके डांस को लोग मूनवॉक कहते थे. गुरुत्वाकर्षण से परे जाने की कोशिश. क्या यही माइकल जैक्सन की तलाश थी.…. वो शायद ये भी जानते थे ये दुनिया और दुनियादारी के किनारों से दूर है.

    पोस्टमार्टम टेबल पर डाक्टरों से घिरी उनकी लाश क्या सिर्फ़ एक बुरी तरह से दिशाहीन हुई तलाश की तस्वीर है या एक ऐसी उड़ान की तस्वीर है जो सूरज से जल कर भी सूरज के पार देखती रही. जो इस दुस्साहस की क़ीमत चुकाने को तैयार थी.

    पता नही...

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