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    समलैंगिकता पर बनी हैं ये फिल्में- क्या है समाज और हमारी सोच- पढ़िए रिपोर्ट

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    होमोसेक्सुअलिटी या समलैंगिकता का मुद्दा समय-समय पर उभर कर सामने आता है। कभी किसी बहस, तो कभी फिल्मों के जरिए। हर बार समलैंगिकता लोगों को सोचने पर मजबूर तो कर देती है लेकिन को विमर्श सामने नहीं आ पाता है। सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले ने समलैंगिकता पर समाज के सामने एक नज़ीर पेश की। देश की सर्वोच्च अदालत ने दो बालिगों के बीच इच्छा से बनाए गए संबंध को गैरकानूनी मानने वाली धारा 377 को रद्द करते हुए एलजीबीटी समुदाय को अपना साथी चुनने की 'आजादी' दी। आजादी इसीलिए क्योंकि बरसों से चले आ रहे भेदभाव को खत्म करने वाले दिन को इस समुदाय ने आजादी के रूप में मनाया गया। अब एक बार फिर से होमोसेक्सुअलिटी का मुद्दा हमारे सामने है और उम्मीद है कि इस बार कोई विमर्श सामने आए।

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    आयुष्मान खुराना की फिल्म 'शुभ मंगल ज़्यादा सावधान' ने एक बार फिर होमोसेक्सुअलिटी के मुद्दे को सुर्ख़ियां दी हैं। यह फिल्म दो लड़कों की प्रेम कहानी के इर्द-गिर्द बनी है। इसके साथ ही उस परिदृश्य को सामने रखती है जिसमें दो लड़कों या दो लड़कियों के प्रेम को समाज दुत्कार देता है। 'शुभ मंगल ज्यादा सावधान' ने हमारे समाज को आईना दिखाने का काम किया है। भले ही शीर्ष अदालत ने सैमलैंगिकता को अपराध मानने वाले क़ानून को निरस्त कर दिया हो लेकिन वह समाज के सोच को बदलने में नाकाम रहा है।

    English summary
    homosexuality bollywood movies our society and thinking related to Shubh Mangal Zyada Saavdhan
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