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होम शांति वेब सीरीज़ रिव्यू: सुप्रिया पाठक - मनोज पाहवा के आम मिडिल क्लास परिवार का सबसे खास सपना
सीरीज़
-
होम
शांति
डायरेक्टर
-
आकांक्षा
दुआ
क्रिएटर
-
मयंक
पांडे,
आकांक्षा
दुआ
प्लेटफॉर्म
-
डिज़्नी
हॉटस्टार
स्टारकास्ट
-
सुप्रिया
पाठक,
मनोज
पाहवा,
चकोरी
द्विवेदी,
पूजन
छाबड़ा
एपिसोड/अवधि
-
छह
एपिसोड/
30
मिनट
प्रति
एपिसोड
अपना ठिकाना हर कोई किसी तरह ढूंढ लेता है। लेखक मयंक पांडे की कविता ठिकाना की इस पंक्ति के साथ होम शांति की शुरूआत होती है। और पूरी सीरीज़ का सार इस एक पंक्ति में हैं। होम शांति कहानी है जोशी परिवार की जो देहरादून में अपना एक ठिकाना बनाना चाहता है।
ठीक उस चिड़िया की तरह, जो जानती है कि पूरा आसमान उसका है लेकिन फिर भी उसे एक घोंसला बनाना पड़ता है, इसी तरह, जोशी परिवार को अपना सरकारी क्वार्टर छोड़ना है और 10 महीने में अपने लिए एक नया घोंसला बनाना है। घर बनाने का सपना हर कोई देखता है और ये सपना हर किसी का अपना सपना है। और ये सपना भी हर किसी का अलग होता है। कोई एक छत का देखता है तो कोई महल का। कोई फार्महाउस का तो कोई पहाड़ों पर छोटी सी दुनिया का। जोशी परिवार के चार सदस्यों के घर का सपना भी ऐसे ही चार छोटे छोटे सपनों में बंटा हुआ है।
क्या
इनके
सपने
पूरे
होंगे?
क्या
इन
परिंदों
को
अपने
घोंसले
में
जाने
का
मौका
मिलेगा?
घोंसला
बनाने
के
लिए
इन्हें
कितने
तिनके
लगेंगे
और
इन
तिनकों
को
इकट्ठा
करने
में
कितनी
उड़ानें
यही
होम
शांति
की
दिल
को
छू
लेने
वाली
कहानी
है।
और
इस
कहानी
में
हर
मिडिल
क्लास
आदमी
अपनी
झलक
देखेगा।
होम शांति का प्लॉट
देहरादून में रहने वाले जोशी परिवार के पास 10 महीने हैं। परिवार की आर्थिक मुखिया हैं सरला जोशी जिनकी सरकारी नौकरी से ये परिवार चलता है और रिटायरमेंट से पहले उन्हें अपने परिवार के लिए एक घर बनाना है। घर बनाना ज़रूरत है और हर मिडिल क्लास परिवार के लिए ये कितना ज़रूरी है ये सीरीज़ के एक एपिसोड में सुप्रिया पाठक के किरदार सरला जोशी के एक डायलॉग के ज़रिए उनकी आंखों में दिखता है। अपनी पूरी ज़िंदगी सरला ने अपनी आधी कमाई बचाई है तब जाकर घर बनाने की सोच पाई। इस एहसास के साथ हर मिडिल क्लास इंसान तुरंत जुड़ जाएगा। क्योंकि हर मध्यम वर्गीय परिवार की कहानी यही होती है। उनके कुछ सपने होते हैं जिन्हें पूरा करने के लिए उन्हें ज़िंदगी भर अपनी कमाई की बचत करनी होती है लेकिन फिर भी सपने पूरे करने में वो कमाई थोड़ी कम पड़ ही जाती है। जोशी परिवार भी अपना घर बनाने के लिए रोज़ किसी ना किसी नई समस्या के साथ जूझते हैं और परिवार के तौर पर उस समस्या को समाधान भी निकालते हैं।
किरदार
कहानी के मुख्य में है जोशी परिवार और उसके चार सदस्य। परिवार के मुखिया - उमेश जोशी (मनोज पाहवा) जो कि पेशे से कवि हैं। उनकी पत्नी सरला जोशी (सुप्रिया पाठक कपूर) जो कि एक सरकारी स्कूल में वाईस प्रिंसिपल हैं। और इनके दो बच्चे - बड़ी बेटी जिज्ञासा (चकोरी द्विवेदी) जो कि परिवार से ज़्यादा दोस्तों से के साथ जुड़ना चाहती है और छोटा बेटा नमन (पूजन छाबड़ा) जिसे पढ़ाई छोड़कर जिम करना है और टाईगर श्रॉफ बनना है। एक बेरोज़गार कवि के रूप में मनोज पाहवा का किरदार जहां इस सीरीज़ में हल्के फुल्के पल डालने की कोशिश करता है वहीं सुप्रिया पाठक का किरदार आपको हर उस Working Mother की याद दिलाएगा जो रोज़ थोड़ा थोड़ा करके सबके सपने पूरे करने की जद्दोजहद में बस बेतहाशा दौड़े जा रही हैं। भाई बहन की जोड़ी के रूप में चकोरी द्विवेदी और पूजन छाबड़ा के ज़रिए एक छोटे से मध्यम वर्गीय परिवार की generic छवि को बखूबी परदे पर उतारने की कोशिश की गई है।
तकनीकी पक्ष
छह एपिसोड की इस सीरीज़ को लिखा है निधि बिष्ट, आकांक्षा दुआ और मयंक पांडे ने। वहीं सीरीज़ की कहानी अक्षय अस्थाना, निधि बिष्ट, आकांक्षा दुआ, मयंक पांडे, निखिल सचान, सौरभ खन्ना की है। पहले एपिसोड के साथ ये सीरीज़ वादा करती है एक आम आदमी की सबसे खास कहानी कहने का। क्योंकि किसी भी आम आदमी की ज़िंदगी का सबसे खास पल होता है अपना घर। अपना आशियाना बनाने की इस छह एपिसोड की कहानी में हर एपिसोड में एक नई दिक्कत भी सामने आएगी। वो दिक्कतें जो बेहद आम हैं। जो हमने और आपने हर किसी ने झेली है। लेकिन कमज़ोर लेखन और डायलॉग्स शायद इस मज़बूत कहानी को आपके साथ बांधने में विफल कर देता है। आप किरदारों को करीब से पहचानते हैं, क्योंकि शायद आप भी उनमें से एक हों इसलिए, आप उनसे एक कनेक्शन बनाना चाहते हैं लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है। यही कारण है कि 2 ही एपिसोड के अंदर आकांक्षा दुआ का निर्देशन बिखरता नज़र आता है और एक मज़बूत कहानी अपना असर खोने लगती है। आशुतोष मटेला का निर्देशन और शाश्वत सिंह का म्यूज़िक भी कहानी को वापस ट्रैक पर लाने में कोई मदद नहीं कर पाता है।
अभिनय
होम शांति की कहानी के केंद्र में हैं सुप्रिया पाठक कपूर। सरला जोशी के किरदार में वो एक मध्यम वर्गीय महिला का रूप आसानी से ले लेती हैं। वहीं उनके पति के किरदार में मनोज पाहवा उनका पूरा साथ देते हैं। दोनों को पति - पत्नी के तौर पर देखने में ये याद भी नहीं आता कि दोनों मां - बेटे के तौर पर भी परदे पर नज़र आ चुके हैं। सरला के किरदार में जहां सुप्रिया पाठक का परेशान चेहरा लेकिन मज़बूत हौसले आपको उनके किरदार के लिए एक Soft Corner देते हैं वहीं आपका दिल जीतने की कोशिश करेगा मनोज पाहवा के अंदर का कवि। हालांकि, इस किरदार को ठीक से पनपने का मौका इस छोटी सी सीरीज़ में नहीं मिल पाता है और इसलिए मनोज पाहवा अपने किरदार के साथ आखिरी तक संघर्ष करते दिखते हैं। भाई बहन की जोड़ी के रूप में चकोरी द्विवेदी और पूजन छाबड़ा बेअसर दिखते हैं। उनकी बॉन्डिंग और केमिस्ट्री दोनों ही कोई असर नहीं छोड़ती है।
सपोर्टिंग किरदार
सीरीज़ में कई सपोर्टिंग किरदार हैं जो अपना काम बखूबी करने की कोशिश करते हैं। राकेश बेदी को काफी समय बाद देखना आपको एक सुकून देता है और आपके चेहरे पर अपने आप ही एक मुस्कान आ जाती है। पप्पू पाठक कॉन्ट्रैक्टर के किरदार में हैप्पी रंजीत पूरी सीरीज़ में साथ निभाते हैं। लेकिन केवल वीडियो कॉल में नज़र आने वाली सरला जोशी की मां के किरदार में नूतन सूर्या जी अपने अनुभव से इस सीरीज़ की टूटती सी गति में थोड़ी जान फूंकती हैं। सोनू शर्मा आर्किटेक्ट के किरदार में अर्णव भसीन के ज़रिए सीरीज़ में थोड़ी कॉमेडी के सीन डालने की कोशिश विफल होती है। वहीं निधि बिष्ट और बिस्वापति सरकार जैसे सशक्त कलाकार सीरीज़ को कुछ सीन में ही सही लेकिन संभालते नज़र आते हैं।
क्या है अच्छा
होम शांति की कहानी बेहद मज़बूत है। मिडिल क्लास परिवारों के सपने और उन सपनों को पूरा करने का संघर्ष हमेशा से एक हिट प्लॉट रहा है। और होम शांति, पहले एपिसोड के साथ ही एक प्यारी सी कहानी सुनाने का वादा करती है। सीरीज़ की मुख्य किरदार सरला जोशी से आप तुरंत जुड़ जाते हैं। क्राईम और एक्शन से भरी इंटरटेनमेंट की दुनिया में ये एक आम सी कहानी आपको सुकून भी देती है और आपकी वॉचलिस्ट में एक ताज़गी भी लेकर आती है। वहीं क्रेडिट और एपिसोड की शुरूआत में अंकज नेगी के कार्टून सीरीज़ को अलग रूप देने की सफल कोशिश करते हैं। क्लाईमैक्स तक आते आते घर के नाम को लेकर होने वाली बहस, एक अच्छा ब्रेक देती है।
क्या करता है निराश
होम शांति जितनी आम कहानी है उतनी ही आसानी से ये अपनी अलग ज़मीन और अलग अस्तित्व नहीं खोज पाती है। यही कारण है कि सीरीज़ आपकी यादें ताज़ा करती हैं, इसी परिप्रेक्ष्य में बनी कुछ बेहतर कहानियों की। चाहे वो विनय पाठक की फिल्म खोसला का घोंसला, ऋषि कपूर - नीतू कपूर स्टारर दो दूनी चार हो या फिर हाल ही में आई सीरीज़ गुल्लक। ये मिडिल क्लास कहानियां जो छाप आपके दिल पर छोड़ गईं, होम शांति कहीं ना कहीं, वहां तक पहुंचने में विफल हो जाती है। हालांकि, सीरीज़ कभी वहां तक पहुंचने का संघर्ष नहीं करती है, लेकिन फिर भी वो थोड़ी कमी आपके ज़ेहन को पुराने किरदारों की यादों में ले जाते हैं और इस सीरीज़ के किरदार छोड़ने पर मजबूर कर देते हैं। मयंक पांडे की कविताएं इस सीरीज़ को बेहद अच्छी ऊंचाई दे सकती थीं लेकिन वहां भी निराशा ही हाथ लगती है।
देखें या ना देखें
होम शांति एक छोटी सीरीज़ है। भले ही ये कहीं कहीं बेहद धीमी होती है लेकिन कहीं भी ऊब नहीं लेकर आती है। इस वीकेंड पर अगर आप अपने परिवार के साथ बस यूं ही कुछ देखना चाहते हैं तो ये सीरीज़ आंखों को ठंडक और चेहरे पर मुस्कान लेकर आएगी।
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