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कंसेप्ट बेहतरीन मगर इंप्रेसिव नहीं जल- फिल्म रिव्यू!
जल फिल्म की कहानी शुरु होती है कच्छ के दो गांवों से जहां पर दूर दूर तक पानी का नामोनिशान तक नहीं है। पानी को लेकर लोगों के बीच मार पीट तक हो जाती है। बक्का (पूरब कोहली) को पानी का देवता कहा जाता है क्योंकि वो जमीन पर कान लगाकर सुनकर बताता है कि कहां पर खुदाई करने से पानी निकलेगा और 10 में से 6 बार उसकी बात सच होती है। गांव में समुंदर से काफी समय पहले आए पानी के चलते एक बड़ा सा खारे पाने का तालाब जैसा बना होता है जहां पर हर साल फ्लेमिंगो पक्षी पानी की तलाश में आते हैं लेकिन इस खारे पाने में साफ पानी के नाम मिलने से पानी में बढ़ चुके नमक के चलते पक्षी इस पानी को पीने से मर जाते हैं। एक दिन रशिया से एक पक्षी वैज्ञानिक लड़की गांव में अपनी टीम के साथ आती है और इन पक्षियों को मरने से बचाने के लिए कच्छ में कुएं और तालाब बनाने का फैसला करती है।
बक्का भी इनका साथ देता है और कच्छ में कुएं और तालाब बना जाते हैं। लेकिन बक्का के गांव में कुआं नहीं खुदता। पूरा गाव मिलकर बक्का से कहता है कि वो इन वैज्ञानिकों से बात करके उनकी मशीन किराये पर लेकर गाव में आए औऱ कुआं खोदे। जब सरकार गाड़ी देने से मना कर देती है तो बक्का गाड़ी चुराकर गांव ले आता है। गांव वाले मशीन के डीजल के लिए अपने घर में मौजूद सभी गहने भी बक्का को दे देते हैं। मशीन में कुछ गड़बड़ी के चलते वो टूट जाती है और वापस लौटा दी जाती है। इसी बीच बक्का के दोस्त का खून हो जाता है और गांव भर के लोगों के दिये गये गहने भी चोरी हो जाते हैं। गांव वाले गुस्से में बक्का और उसकी पत्नी को गांव से निकाल देते हैं। इसके बाद बक्का अपने लिए कुआ की तलाश करता है। लेकिन जब तक वो कुआं खोदता है उसके जीवन की हर एक खुशी खो जाती है।
फिल्म में कच्छ में सालों से चली आ रही जल की समस्या को लेकर कहानी दिखाई गयी है। लेकिन ना ही फिल्म में कोई फ्लो नज़र आया और ना ही फिल्म में निर्देशक ने किरदारो का बेहतरीन तरीके से प्रयोग ही किया है। लेकिन ये जरुर है कि पहली बार किसी ने इतने अलग विषय पर फिल्म बनाने का जोखिम उठाया है अगर फिल्म का कायदे से निर्दे्शन किया जाता तो जल फिल्म और भी बेहतर हो सकती थी। फिल्म का संगीत भी थोड़ा आउटडेटेड ही है।