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'आई एम कलाम' एक नयी पहल
निर्माताः स्माइल फाउंडेशन
निर्देशकः नीला माधव पांडा
संगीतः अभिषेक रे, मधुपर्णा, सुष्मिता बोस
विशेष सहयोगः मनीशा सिंह, अदिति सिंह
सेंसर सर्टिफिकेटः यू
रेटिंगः 3
आई एम कलाम यह पहली ऐसी फिल्म है जिसे किसी एनजीओ ने बनाया है। इस फिल्म में जाने माने स्टार्स नहीं है। लेकिन इसके बाद भी इस फिल्म में वो सबकुछ है जो एक अच्छी फिल्म में होना चाहिए। फिल्म के रिलीज होने से पहले ही इसे कई अवार्डस मिल चुके हैं। हिंदी फिल्मों के बैडमैन गुलशन ग्रोवर ने इस फिल्म में काम करने के लिए फीस तक नहीं ली है।
काफी अर्से बाद एक सॉफ्ट मुवी पर्दे पर देखने को मिली है। यह आम से छोटू (हर्ष)की खास कहानी है, जो अपना घर चलाने के लिए एक छोटे से ढाबे पर काम करता है और हमेशा पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनने का ख्वाब देखा करता है। रोज के काम खत्म कर लेने के बाद अपनी किताबों में की दुनिया में खो जाता है। एक दिन छोटू टीवी पर राष्ट्रपति ए.पी.जे. कलाम को देखता है। उसे यह भी पता लगता है कि राष्ट्रपति का बचपन भी गरीबी में ही गुजरा है। इसके बाद से उसकी जिंदगी में बदलाव आता है। उसे अपने सपने पूरे करने की सही दिशा मिल जाती है। य हां तक कि वह अपना नाम कलाम रख लेता है। एक दिन दस-बारह साल के प्रिंस से होती है जो कलाम की हर तरह से मदद करने लग जाता है। लेकिन कलाम की किस्मत ऐसे ही नहीं चमकने वाली। उसे ढाबे से निकाल दिया जाता है। तब वह दिल्ली जाकर राष्ट्रपति कलाम तक एक चिट्ठी पहुंचाने का फैसला लेता है।
फिल्म में छोटू ने दमदार अभिनय किया है। गुलशन ग्रोवर ने पहली बार कुछ हटकर काम किया है। डायरेक्टर नीला माधव पांडा ने देशभर के होटलों में काम कर रहे बच्चों (छोटू) की दशा सुधारने के लिए अच्छी पहल की है। इस फिल्म का गाना ऐसे बचपने से ही काम करने वाले सारे बच्चों का सपना है जिन्हें वो पूरा तो करना चाहते हैं लेकिन वो सब अपने हालात से विवश हैं।
यह फिल्म हर उन मेहनतकश बच्चों की फिल्म है जो समय से पहले ही बड़े हो चुके हैं और जिन्हें समाज में केवल दया के नज़र से ही देखा जाता है लेकिन उन्हें दया नहीं प्यार के साथ कुछ ऐसे लोगों की जरूरत है जो उन्हें समझ सके। फिल्म की कहानी बेहद खास है जो समाज को नया नज़िरया दे सकती है इसलिए आप जरूर देखें 'आई एम कलाम'।