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Bhediya Movie Review: बांधे रखेगी दिलचस्प कहानी और शानदार VFX, टॉप फॉर्म में दिखे वरुण धवन
निर्देशक - अमर कौशिक
कलाकार - वरुण धवन, कृति सैनन, अभिषेक बनर्जी, पालिन कबाक, दीपक डोबरियाल
"आज के ज़माने में नेचर की किसको पड़ी है, हमारे लिए बॉलकनी में रखा गमला ही नेचर है.." जंगल काटकर सड़क बनाने के लिए स्थानीय निवासियों को राजी करते हुए भास्कर (वरुण धवन) कहता है।
फिल्म प्रकृति और समाज से जुड़े कुछ अहम विषयों को छूती है। निर्देशक यहां ज्ञान देने से बचते हैं, लेकिन अपनी बात एक क्रिएचर- कॉमेडी कहानी के जरीए बखूबी रखते हैं। अमर कौशिक इससे पहले स्त्री और बाला जैसी फिल्में दे चुके हैं। पहली दो फिल्मों की तरह वो यहां भी कॉमेडी और ड्रामा के बीच बैंलेंस बनाकर चलते हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि फिल्म कमियों से मुक्त है। कुछ बातें हैं जो अधूरी सी लगती हैं, कुछ किरदार सवाल छोड़ जाते हैं। लेकिन दिलचस्प कहानी और शानदार वीएफएक्स के बीच वो कमियां छिप जाती हैं। फिल्म हिंदी, तमिल और तेलुगु में रिलीज हुई है।
कहानी
दिल्ली में रहने वाला भास्कर (वरुण धवन) सड़क बनाने के प्रोजेक्ट के सिलसिले में अरुणाचल प्रदेश आता है। वो वहां के जंगलों के बीच से एक रास्ता निकालना चाहता है। लेकिन जल्दी ही उसे अहसास हो जाता है कि जिस काम को वो इतना आसान सोच रहा है, वो उतना है नहीं। उसके लिए जंगल प्रोजेक्ट का एक हिस्सा हो सकता है, लेकिन वहां रहने वाले लोगों के लिए और जानवरों के लिए, वही जंगल जिंदगी है। भास्कर पैसों के पीछे अपनी रेस में लगा ही होता है कि एक रात जंगल से गुजरते हुए एक भेड़िया काट लेता है। किसी तरह भास्कर की जान तो बच जाती है, लेकिन इस घटना के बाद उसमें एक भेड़िये की शक्तियां आ जाती हैं। वो एक इच्छाधारी भेड़िया बन जाता है। अपने भाई जर्नादन (अभिषेक बनर्जी) और दोस्त जोमिन (पालिन कबाक) के साथ वो इस मुसीबत से बाहर निकलने का रास्ता तलाश करने की कोशिश करता है। इस दौरान उसकी मुलाकात डॉक्टर अनिका (कृति सैनन) और पांडा (दीपक डोबरियाल) से होती है। पांडा से भास्कर को पता चलता है कि जंगल में एक "विषाणु" रहता है, वो उन लोगों का शिकार करता है, जो जंगल को हानि पहुंचाने की कोशिश करते हैं। उसे भी शायद उसी ने काटा है। क्या भास्कर वापस आम इंसान में तब्दील हो पाएगा? क्या जंगल के महत्व को समझ पाएगा? क्या "विषाणु" के पीछे की कहानी सामने आएगी? इन्हीं सवालों के इर्द गिर्द घूमती है फिल्म की कहानी।
अभिनय
वरुण धवन इस फिल्म में प्रभावी लगे हैं। इस फिल्म के लिए उन्होंने अपनी बॉडी पर जो मेहनत की थी, वो बड़े पर्दे पर साफ दिखती है। वहीं, अभिनय की बात करें तो उनके किरदार के लिए थोड़ा ओवरबोर्ड जान बहुत आसान था, लेकिन अभिनेता ने खुद को बहुत संयमित रखा है। यहां इसका श्रेय निर्देशक और लेखक को भी जाता है। कहना गलत नहीं होगा कि 'भास्कर' वरुण के निभाए अब तक के किरदारों में से सबसे अलग है। और वरुण ने इसे यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सिर्फ वरुण ही नहीं, बल्कि फिल्म में अहम किरदार निभा रहे अभिषेक बनर्जी और पालिन कबाक को भी बड़े पर्दे पर देखना बहुत दिलचस्प रहा। अभिषेक की कॉमिक टाइमिंग गजब की है। डॉ. अनिका के रूप में कृति सैनन की सीमित लेकिन अति महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है। वरुण और कृति की कैमिस्ट्री अच्छी लगी है। दीपक डोबरियाल ने अच्छा काम किया है, लेकिन उनके किरदार को थोड़ा और निखारा जा सकता था।
निर्देशन
नीरेन भट्ट द्वारा लिखित इस फिल्म को डायरेक्ट किया है अमर कौशिक ने, जिन्होंने इससे पहले स्त्री जैसी यादगार फिल्म दी है। खास बात है कि भेड़िया भी स्त्री यूनिवर्स का एक हिस्सा है। क्यों और कैसे.. ये तो आपको फिल्म देखकर ही पता चलेगा। बहरहाल, भेड़िया की बात करें तो अमर कौशिक ने कॉमेडी, थ्रिल और मैसेज तीनों के बीच अच्छा बैलेंस बनाया है। फर्स्ट हॉफ में फिल्म कुछ हिस्सों में थोड़ी धीमी लगती है, लेकिन ध्यान नहीं भटकाती है। वहीं, सेकेंड हॉफ में आप कुछ सवालों के जवाब ढूढ़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन यहां निराशा मिलती है।
बहरहाल, ये फिल्म आपको समय समय पर हंसाती है, और 3डी में डराती भी है। खास बात है कि कॉमेडी और थ्रिल के बीच.. निर्देशक ने कई अहम मुद्दों को छूने की कोशिश की है.. जैसे कि प्रकृति को नुकसान पहुंचा कर किस तरह हम सदियों पीछे की ओर जा सकते हैं! या नॉर्थ- ईस्ट में रहने वालों को कैसे कुछ लोगों द्वारा गैर- भारतीय समझा जाता है। फिल्म में एक किरदार कहता है- "किसी की हिंदी यदि कमजोर हो ना, तो वो कम इंडियन नहीं हो जाता.."। फिल्म के संवाद बेहद प्रभावी हैं। ये बताती है कि कहीं ना कहीं हम सबके अंदर एक भेड़िया छिपा है। लेकिन हम इसे किस तरह निकालना चाहते हैं, यह हमारे ऊपर है।
तकनीकी पक्ष
फिल्म का वीएफएक्स और इसकी सिनेमेटोग्राफी इसके दो मजबूत पक्ष हैं। जिशनु भट्टाचार्यजी ने हमें अपने कैमरे से अरुणाचल प्रदेश के खूबसूरत लेकिन डार्क और रहस्यमयी जंगलों को दिखाया गया है, जो कहानी का प्रभाव दुगुना कर देती है। साथ ही इसके वीएफएक्स की तारीफ होनी चाहिए। इंसान से भेड़िया बनते वरुण धवन को देखना कहीं भी मजाकिया या बेकार नहीं लगता है। अपने वीएफएक्स के दम पर फिल्म डराती भी है और अचंभित भी करती है। फिल्म को अपने ओरिजनल कंटेंट के लिए पूरे नंबर मिलने चाहिए।
संगीत
फिल्म का संगीत सचिन-जिगर ने दिया है जबकि गीत अमिताभ भट्टाचार्य द्वारा लिखे गए हैं। फिल्म में दो गाने शामिल किये गये हैं - बाकी सब ठीक और जंगल में कांड। दोनों गाने फिल्म में काफी अच्छे से घुले- मिले लगते हैं, लेकिन खास प्रभाव नहीं छोड़ते। खासकर "बाकी सब ठीक" गाने की सिनेमेटोग्राफी बेहद खूबसूरत है।
रेटिंग
स्त्री और बाला जैसी फिल्में देने वाले निर्देशक अमर कौशिक अब 'भेड़िया' लेकर आए हैं। पहली दो फिल्मों की तरह निर्देशक ने यहां भी निराश नहीं किया है। वरुण धवन और कृति सैनन अभिनीत ये फिल्म अपनी दिलचस्प कहानी और शानदार वीएफएक्स से लगातार आपको बांधे रखती है। फिल्म को 3डी में देखने का अनुभव लें। फिल्मीबीट की ओर से भेड़िया को 3.5 स्टार।
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