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खटास भरी है "खट्टा मीठा"
देशभर में फैले भ्रष्टाचार को बेहद ही मजाकिया अंदाज में पेश किया है प्रियदर्शन ने ..अपनी फिल्म खट्टा-मीठा में। हालांकि इस फिल्म में आपको गंभीर प्रियदर्शन की कमी जरूर झलकेगी। क्योंकि उनका निर्देशन कहीं कहीं कमजोर पड़ गया है , उनके पास मंझे हुए कलाकार तो थे लेकिन डायरेक्टर साहब ने उन्हें फिल्माया अच्छे से नहीं है।
असरानी, कुलभूषण खरबंदा और जॉनी लीवर फिल्मों में हैं तो लेकिन उनकी मौजुदगी फिल्म में दिखायी नहीं देती है। जिसका नतीजा है कि फिल्म कहीं कहीं आपको बोरिंग भी दिखायी पड़ती है। फिल्म की कहानी में नया पन नहीं है। फिल्म का हीरो एक आदर्शवान लेकिन असफल युवक है उसे अपनी सच्चाई के कारण बहुत अच्छा काम नहीं मिलता है जबकि उसके भाई और रिश्तेदार पैसे वाले हैं क्योंकि वो अपने अधिकारियों को पैसे खिलाते हैं।
पढ़े : मीठी कम खट्टी ज्यादा: खट्टा मीठा
अपनी गरीबी और असफलता के कारण फिल्म के हीरो अक्षय जिनके किरदार का नाम सचिन है को बेहद ही जिल्लत सहनी पड़ती है। ये कहानी कोई नयी है पुराने रिकार्ड उठा कर देखें तो आपको ऐसी कई फिल्में मिल जायेंगी। फिल्म में सचिन बने अक्षय को एक विचित्र गेटअप दिया गया है। जो काला चश्मा पहनकर और छतरी लेकर चलता है।
फिल्म में गति तब आती है जब अभिनेत्री त्रिशा कृष्णन यानी गहना का आगमन होता है और दर्शकों को पहली बार पता चलता है कि सचिन और गहना कॉलेज के पुराने दोस्त हैं और एक दूजे को पसंद करते थे। सत्य और न्याय के रास्ते पर चलते सचिन के एक विरोध में वह उसका साथ नहीं देती और सचिन उस पर हाथ उठा देता है। यहाँ उनका ब्रेकअप हो जाता है।
इतने सालों बाद वह ईमानदार म्यूनिसिपल अधिकारी के रूप में सचिन से मिलती है। सचिन की हरकतें उसे हैरत में डाल देती है कि ईमानदारी का डंका बजाने वाला उसका साथी बेईमानी के रास्ते पर चल पड़ा है, जबकि सच यह नहीं है।फिल्म का कैमरा वर्क कमजोर, कोरियोग्राफी में गणेश बेकार जबकि संगीतकार प्रीतम निराश करते हैं। त्रिशा ने कोई कमाल नहीं किया है बेहद सिंपल नजर आयीं है।
देखें : खट्टा-मीठा की तस्वीरें
फिल्म में अगर कुछ है तो वो है अक्षय कुमार का अभिनय जो बेजोड़ है लेकिन कहते हैं न अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता सो बेचारे अक्षय कितना अपने दम पर फिल्म को खींच पायेंगे आखिर ढोने के लिए कुछ तो हो । कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि खट्टा-मीठा एक औसत फिल्म है जिसे बेहतर बनाया जा सकता था।
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