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पटकथा ही असली हीरोःजॉन अब्राहम
अभिनेता जॉन अब्राहम मानते हैं कि फिल्म की पटकथा ही असली हीरो होती है. उनकी नज़रों में बांग्ला फ़िल्में बेहद अच्छी हैं. वे कहते हैं कि उन्हें फिल्मों में अभिनय करना किसी और काम के मुकाबले अच्छा लगता है. इसलिए मॉडलिंग से हिंदी फिल्मों की ओर मुड़ना स्वाभाविक था.
एक फैशन शो के सिलसिले में हाल में कोलकाता आए जॉन ने अपने करियर और पसंद-नापंसद पर पीएम तिवारी से बातचीत की. पेश है बातचीत के मुख्य अंशः
क्या फ़िल्मों से एक बार फिर मॉडलिंग की ओर लौट रहे हैं ?
नहीं, मैं इस शो के बारे में बताने के लिए आया था. खुद रैंप पर नहीं चला. यह शो महानगर के उभरते डिज़ाइनरों के लिए एक मंच का काम करेगा.
मॉडलिंग और अभिनय में क्या फर्क है ?
मॉडलिंग में मैं सिर्फ जॉन अब्राहम होता हूं. लोग कहते हैं कि जॉन ने ऐसे कपड़े पहन रखे हैं. लेकिन फ़िल्मों में हर तीन या छह महीने में हमारा किरदार बदल जाता है. तब मैं जॉन न रह कर वह किरदार बन जाता हूं.
आप इन दिनों बहुत कम फिल्मों में नज़र आ रहे हैं ?
कामयाबी के लिए कम लेकिन बेहतर काम करना ज़रूरी है. मैंने 2008 में दोस्ताना की थी और बीते साल न्यूयॉर्क आई थी. अब इस साल अब्बास टायरवाला की एक फिल्म आ रही है. इसके बाद अगले साल दोस्ताना 2 आ रही है. मैं अपनी कामयाबी की दर सुधारने का प्रयास कर रहा हूं. इसका मंत्र है कि फिल्में कम करो, लेकिन काम बेहतर करो.
किसी फ़िल्म की कामयाबी के लिए कौन सी चीज़ सबसे अहम है ?
किसी भी फ़िल्म का असली हीरो पटकथा होती है. मेरी कुछ पिछली फिल्मों की पटकथा अच्छी नहीं थी. मैंने जल्दबाज़ी में उनको हाथ में ले लिया था. लेकिन मैंने उन गलतियों से काफी कुछ सीखा है. अब मैं काफी सावधानी से फिल्मों का चयन करता हूं.
आपकी नज़रों में फैशन क्या है ?
फैशन का सीधा मतलब यह है कि आपने जो पहना है उसमें आरामदेह महसूस कर रहे हैं या नहीं.
आप पहले मॉडल थे और अब अभिनेता हैं. इन दोनों में कितना फर्क महसूस करते हैं ?
मुझे फिल्मों में अभनिय करना मॉडलिंग के मुकाबले ज़्यादा पसंद है. एक दौर में मुझे मॉडलिंग करना भी अच्छा लगता था. लेकिन अभनिय के प्रति झुकाव होने की वजह से हिंदी फिल्मों की ओर मुड़ना स्वाभाविक था.
कोई भी फ़िल्म हाथ में लेते समय सबसे ज़्यादा किस बात पर ध्यान देते हैं ?
निर्देशक और निर्माता के अलावा फिल्म के हीरो यानी पटकथा पर ध्यान देता हूं. बांग्ला फिल्में बेहतरीन होती हैं मैंने ऋतुपर्णो घोष की सब चरित्र काल्पनिक देखी थी. वह फिल्म इतनी पसंद आई कि मैं पूरी फिल्म के दौरान अपनी जगह से हिला तक नहीं. इसी तरह तमिल फिल्मों में प्रेम का बेहद रोमांटिक तरीके से चित्रण किया जाता है. कुल मिला कर पटकथा ही सबसे अहम होती है. मैं उसी पर ध्यान देता हूं.