Just In
- 29 min ago
वरुण धवन और नताशा दलाल की शादी- कैटरीना, अनुष्का, रणवीर सिंह समेत सभी बॉलीवुड कलाकारों ने दी बधाई
- 47 min ago
कंगना रनौत ने फिर किया एक्ट्रेस पर तीखा हमला, स्वरा भास्कर का मुंहतोड़ जवाब- आई लव यू, बोलती बंद
- 10 hrs ago
वरूण धवन ने मीडिया से भाभी को मिलवाया, हंस पड़ीं नताशा, वायरल हो रहा वीडियो
- 11 hrs ago
वरूण धवन - मिसेज़ नताशा वरूण धवन की शादी की तस्वीरें, बेहद प्यारी Wedding Pics
Don't Miss!
- Finance
25 Jan : डॉलर के मुकाबले रुपया में 3 पैसे की मजबूती
- News
बुलंदशहर: महिला सब इंस्पेक्टर की मौत के मामले में बड़ा खुलासा, फिजिकल ट्रेनर पर FIR
- Automobiles
Hyundai N Line India Launch: हुंडई भारत में ला रही एन-लाइन ब्रांड, सबसे पहले यह मॉडल होगी लॉन्च
- Sports
SL vs ENG : टेस्ट इतिहास में पहली बार हुआ ऐसा, श्रीलंकाई खिलाड़ी ने बनाया अनूठा रिकाॅर्ड
- Lifestyle
वरुण धवन की दुल्हनिया नताशा दलाल ने शादी में लाल जोड़ा नहीं बल्कि ऑफ व्हाइट लहंगा किया कैरी
- Education
Republic Day 2021 History Significance: भारतीय तिरंगे का गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 1950 से अब तक का सफर कैसे रहा
- Technology
OnePlus Nord का प्री-ऑर्डर अमेज़न पर 15 जून से होगी शुरू; इसको खरीदने वाले पहले बने
- Travel
ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का संगम : पठानकोट
गायिका इक़बाल बानो नहीं रहीं
उनका निधन मंगलवार को पाकिस्तान के शहर लाहौर में हुआ. वो 76 वर्ष की थीं.
इक़बाल बानो ने फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और फ़राज़ अहमद की ग़ज़लों के साथ-साथ बेहतरीन ग़ज़लों को गाकर प्रसिद्धि हासिल की.
उनकी गाई हुई कुछ गज़लों के मिसरे बेहतरीन गायिकी की वजह से लोगों की ज़बान पर चढ़ गए.
इक़बाल बानो को अपने फ़न का प्रदर्शन करने के लिए पहला बड़ा मौक़ा ऑल इंडिया रेडियो के दिल्ली स्टेशन ने दिया.
सन् 1952 में इस गायिका ने एक पाकिस्तानी ज़मींदार से शादी कर ली, लेकिन गायिकी से रिश्ता नहीं तोड़ा.
उन्होंने कुछ यादगार गाने गाए हैं.
तू लाख चले रे गोरी धम धम केपायल में गीत हैं छम छम के
और फिर
उल्फ़त की नई मंज़िल को चला है डाल के बाहें बाहों मेंदिल तोड़ने वाले देख के चल हम भी तो पड़े हैं राहों में
पचास के दशक में इक़बाल बानो ने पाकिस्तान की शुरू हो रही फ़िल्म इंडस्ट्री में एक पार्श्व गायिका के तौर पर अपनी जगह बना ली थी.
लेकिन उनकी दिलचस्पी शास्त्रीय संगीत में ही रही. ठुमरी और दादरे के साथ उन्होंने ग़ज़ल को भी अपने विशेष अंदाज़ में गाया.
पाकिस्तान में जनरल ज़िया उल हक़ के शासन के दौर के आख़िरी दिनों में फ़ैज़ की नज़्म 'लाज़िम है कि हम भी देखेंगे' उनका ट्रेडमार्क बन गया और महफ़िलों में उसी गाने की माँग की जाती थी.