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सुरों के सरताज मुकेश की जयंति आज
मुकेश की आवाज़ की खूबी को उनके एक दूर के रिश्तेदार मोतिलाल ने तब पहचाना जब उन्होने उसे अपने बहन की शादी में गाते हुए सुना । मोतिलाल उन्हे बम्बई ले गये और अपने घर में रहने दिया । यही नही उन्होने मुकेश के लिये रियाज़ का पूरा इन्तजाम किया । इस दौरान मुकेश को एक हिन्दी फ़िल्म निर्दोश (१९४१) में मुख्य कलाकार का काम मिला ।
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पार्श्व गायक के तौर पर उन्हे अपना पहला काम १९४५ में फ़िल्म पहली नज़र में मिला । मुकेश ने हिन्दी फ़िल्म में जो पहला गाना गाया वह था दिल जलता है तो जलने दे जिसमें अदाकारी मोतिलाल ने की । इस गीत में मुकेश के आदर्श गायक केएल सहगल के प्रभाव का असर साफ साफ नजर आता है।
27 अगस्त 1976 को दुनिया को अलविदा कहने वाले मुकेश की मौत अमेरिका के मिशीगन में दिल का दौरा पड़ने से हुई थी । संगीत समीक्षकों के अनुसार 1977 से 80 के दशक तक मुकेश भले ही हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन कई फिल्मों में उनकी आवाज से सजे गीत आते रहे और दर्शकों को उनके होने का आभास कराते रहे।
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मुकेश की इन फिल्मों में धरमवीर, अमर अकबर एंथनी, खेल खिलाड़ी का, दरिंदा, चांदी सोना आदि हैं। मोहम्मद रफी, मन्ना डे और किशोर कुमार जैसे महान गायकों के समकालीन तथा 50 से 70 के दशक के बीच हिंदी फिल्मों में आवाज के जरिए छाए रहे गायक मुकेश अभिनेता राजकपूर की आवाज बन गए थे। राजकपूर के अभिनय से सजी अधिकतर फिल्मों में आवाज मुकेश की होती थी। मुकेश के निधन के बाद राजकपूर ने कहा था, मैंने अपनी आत्मा खो दी।
१९७४ में मुकेश को रजनीगन्धा फ़िल्म में कई बार यूं भी देखा है गाना गाने के लिये राष्ट्रिय पुरस्कार मिला। मुकेश की आवाज को उनके पुत्र नितिन मुकेश ने भी जीवंत रखा, वहीं उनके पौत्र नील नितिन मुकेश अभिनय के क्षेत्र में हैं।
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