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नई भूमिका में ऋषि और नीतू कपूर की जोड़ी
भावना सोमाया, वरिष्ठ फ़िल्म समीक्षक
बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए
ऋषि और नीतू कपूर ने एक सीधी सादी कहानी के जरिए फ़िल्मों में वापसी की हैआम तौर पर फ़िल्म निर्माता श्राद्ध के दौरान फ़िल्में रिलीज करना पसंद नहीं करते, लेकिन इस साल सब कुछ उल्टा हुआ है.'रोबोट' और 'अनजाना अनजानी' जैसी बड़ी फ़िल्में श्राद्ध के समय रिलीज हुईं और चार छोटी फ़िल्में- रैमसे की हॉरर 'बचाओ', विशेष फ़िल्म्स की थ्रिलर 'क्रूक', प्लानमैंस की फैमिली कॉमेडी 'दो दूनी चार' और वैद्यनाथ की एनिमेशन फ़िल्म 'लुवा कस्सा-द वैरियर्स' नवरात्र के पहले दिन रिलीज हुई हैं.
अरिंदम चौधरी की दो दूनी चार 70 के दशक के फ़िल्मों की शानदार जोड़ी नीतू और ऋषि कपूर को एक बार फिर बड़े पर्दे पर वापस लाई है.नीतू सिंह ने 80 के दशक में ऋषि कपूर से शादी करके फ़िल्मों में काम करना बंद कर दिया था. अब तकरीबन 30 साल बाद वो लौट रही हैं बासु चटर्जी के नक्शे कदम पर चलते हुए दो दूनी चार में.
सबसे पहले तो मैं ऋषि और नीतू को मुबारक दूंगी कि उन्होंने अपनी वापसी के लिए यश चोपड़ा और करण जौहर जैसे बड़े बैनर के बजाय एक छोटी और सीधी सादी कहानी को चुना.नीतू कपूर इस बात के लिए बधाई की पात्र हैं कि अपने ज़माने की इतनी बड़ी स्टार होने के बावजूद ग्लैमरस मॉम के बजाय उन्होंने एक मध्यम वर्ग की मां की भूमिका को पसंद किया.
हबीब फैज़ल ने फ़िल्म के जरिए गुरू शिष्य परंपरा की कहानी को पेश किया हये कहानी है दुग्गल परिवार की जो आज की बढ़ती हुई महंगाई में अपने मामूली तनख्वाह के सहारे ही जीवन गुज़ारते हैं. उनके पास थोड़ा है, और वे थोड़े का सपना देखते हैं.एक दिन उनके यहां एक शादी का निमंत्रण आता है और ये निमंत्रण उनकी जिंदगी बदल देता है.
फ़िल्म की सबसे खास बात है फ़िल्म में अग्रणी भूमिका निभा रही ऋषि और नीतू कपूर की जोड़ी जो आज भी उतनी ही रोमांचक है जितनी तीन दशक पहले थी.मैं डायरेक्टर हबीब फैज़ल का धन्यवाद करूंगी कि एक लंबे अरसे के बाद वो एक स्कूल टीचर को बड़े पर्दे पर वापस लाए.
एक ज़माना था जब हमारी फ़िल्में गुरू शिष्य परंपरा की कहानी बताती थीं. उस दौरान गुरू हमारी कहानियों की आत्मा होते थे, और हम उनसे बहुत कुछ सीखते थे.अब, फिर एक लंबे समय के बाद एक आदर्शवादी गुरू फिर से लौटे हैं जो जिंदगी को अपने तरीके से जीना चाहते हैं.भले ही इसमें 1968 की दो दूनी चार का 'हवाओं पे लिख दो हवाओं के नाम..' के किशोर कुमार का संगीत न हो, लेकिन 2010 के संगीत निर्देशक मीत बंधु अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं.
बेटे अर्चित कृष्णा और बेटी अदिति वासुदेव पूरी तरह से कपूर, माफ कीजिए दुग्गल परिवार के लगते हैं.मैं दो दूनी चार को चार स्टार दूंगी, परिवार के चारों सदस्यों के लिए.विशेष फ़िल्म्स की 'क्रुकः इट इज़ गुड टू बी बैड' एक और सच्ची कहानी पर आधारित है.पिछले कुछ महीने में ऑस्ट्रेलिया में पढ़ते हुए भारतीय छात्र सुर्खियों में रहे. उन पर हुए अत्याचार को एक कॉमर्शियल कहानी में पिरोकर मुकेश भट्ट अपने घर के हीरो इमरान हाशमी और डॉयरेक्टर मोहित सूरी के साथ एक और फ़िल्म लाए हैं.
जय यानि इमरान हाशमी एक शरीफ़ बदमाश हैं जिन्हें मुसीबतों को घेरने की आदत है. उनके जीवन में कुछ ऐसी बात हो जाती है जिसके बाद वो ठान लेते हैं कि बुरा बनना ही अच्छा है.
बड़े भाई महेश भट्ट की खासियत है डॉयलाग्स और कैरेक्टराइजेशन. एक बार फिर वो हमारी उम्मीदों पर खरे उतरते हैं.छोटे भाई मुकेश भट्ट की खासियत है संगीत और वो भी हमें बिल्कुल ही मायूस नहीं करते.डॉयरेक्टर मोहित सूरी जो हमें इसके पहले बहुत सारी अंधेरी और खतरनाक गलियों का सफ़र करा चुके हैं, हमें इस बार एक और दर्दनाक कहानी से मिलवाते हैं.
इमरान हाशमी का क्या कहना-वो अब ऐसे जटिल भूमिकाओं में माहिर हो चुके हैं.फ़िल्म आज के मुद्दे को लेकर है, लेकिन रफ़्तार कुछ धीमी है. पहले इंटरवल तक कहानी इमरान और नेहा के रोमांस पर चलती है जिसमें दर्शकों को दिलचस्पी नहीं है.इसलिए मैं क्रुक को दूंगी तीन स्टार.
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