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Journey: ज़मीर से बाग़बान तक, हर कहानी में समाज को आईना दिखाते थे रवि चोपड़ा
रवि
चोपड़ा
एक
ऐसी
हस्ती
थे
जिनका
कद
ज़मीन
से
जितना
ऊपर
थे
उनकी
गहराई
ज़मीन
के
उतने
ही
अंदर
थी।
रवि
चोपड़ा
का
निर्देशन
करियर
यूं
तो
काफी
लंबा
रहा
है
पर
उन्होंने
फिल्में
ज़्यादा
नहीं
बनाई
है।
अपने
40
साल
के
करियर
में
चोपड़ा
ने
सात
फिल्मों
का
निर्देशन
किया।
ये
फिल्में
उनकी
सोच
को
साफ
करती
है।
रवि
चोपड़ा
की
फिल्मों
की
खास
बात
थी
कहानियां।
बिना
अच्छी
कहानी
के
सिर्फ
पैसे
के
लिए
उन्होंने
कभी
फिल्में
नहीं
बनाई।
जानिए
रवि
चोपड़ा
का
फिल्मी
सफर
-
ज़मीर
इस
फिल्म
से
1975
में
रवि
चोपड़ा
ने
निर्देशन
के
क्षेत्र
में
कदम
रखा।
फिल्म
में
अमिताभ
बच्चन,
सायरा
बानू
और
शम्मी
कपूर
थे।
यह
फिल्म
देव
आनंद
की
फिल्म
बंबई
का
बाबू
की
रीमेक
थी।
फिल्म
का
गीत
ज़िंदगी
हंसने
गाने
के
लिए
है
पल
दो
पल
बहुत
ही
मशहूर
ह्आ
था।
द
बर्निंग
ट्रेन
रवि
चोपड़ा
ने
जब
1980
में
यह
फिल्म
बनाई
तो
उस
दौर
के
हिसाब
से
यह
फिल्म
काफी
नई
और
जुदा
थी।
रिलीज़
के
बाद
इस
फिल्म
को
ठंडा
रिस्पॉन्स
मिला
था
और
बॉक्स
ऑफिस
कलेक्शन
भी।
हालांकि
द
बर्निंग
ट्रेन
हर
लिहाज़
से
अच्छी
फिल्म
थी
और
आज
भी
सिनेमा
की
बेहतरीन
फिल्मों
में
गिनी
जाती
हैं।
इस
फिल्म
की
भी
एक
कव्वाली
पल
दो
पल
का
साथ
हमारा
बहत
फेमस
हुआ
था।
आज
की
आवाज़
इस
फिल्म
के
लिए
रवि
चोपड़ा
राजेश
खन्ना
को
लेना
चाहते
थे।
लेकिन
राजेश
के
पास
एक
साल
तक
तारीखें
नहीं
थी।
फिर
रवि
चोपड़ा
ने
राज
बब्बर
को
लेने
का
फैसला
लिया।
फिल्म
के
लिए
स्मिता
पाटिल
को
अवार्ड
भी
मिला।
मज़दूर
हालांकि
1983
में
आई
इस
फिल्म
ने
दिलीप
कुमार
को
काफी
अलग
रोल
में
पेश
किया
पर
यह
फिल्म
बॉक्स
ऑफिस
पर
उतना
कमाल
नहीं
दिखा
पाई
थी।
फिल्म
में
राज
बब्बर
और
स्मिता
पाटिल
को
भी
सराहना
मिली
थी।
दहलीज़
1986
में
आई
इस
फिल्म
के
विषय
ने
तहलका
मचा
दिया
था।
फिल्म
को
दर्शकों
का
ज़बर्दस्त
रिस्पॉन्स
मिला
था
और
मीनाक्षी
शेषाद्रि
-
राज
बब्बर
और
जैकी
श्रॉफ
ने
अपने
अपने
रोल
में
बेहतरीन
अदाकारी
दिखाई।
बाग़बान
2003
में
रिलीज़
हुई
इस
फिल्म
को
रवि
चोपड़ा
के
जीवन
की
सबसे
बेहतर
फिल्म
कहा
जा
सकता
है।
इस
फिल्म
ने
एक
नई
बहस
छेड़ी
थी।
इसके
साथ
ही
परदे
पर
अमिताभ
बच्चन
और
हेमा
मालिनी
को
रोमांस
करते
देखना
भी
अपने
आप
में
अलग
अनुभव
था।
फिल्म
के
गीत
बेहतरीन
थे।
बाबुल
फिल्म
बॉक्स
ऑफिस
पर
किन्हीं
कारणों
से
पिट
गई
पर
रवि
चोपड़ा
ने
फिर
एक
मुद्दा
उठाया
था
पुनर्विवाह
का
।
फिल्म
को
दर्शकों
के
एक
खास
वर्ग
ने
बेहद
पसंद
किया
था।
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