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लता मंगेशकर की मुरीद हैं फरीदा खानम
आज जाने की जिद ना करो, दिल जलाने की बात करते हो, मेरे हमराज और मोहब्बत करने वाले जैसे गजलों को अपनी आवाज से सजाने वाली 74 वर्षीया खानम को आज तक किसी भी हिन्दी फिल्म के लिए गाने का मौका नहीं मिला है। खानम कहती हैं कि उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचकर भी हिन्दी फिल्मों के लिए गाने की उनकी हसरत बिल्कुल भी कम नहीं हुई है।
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खानम ने कहा, मैं मुंबई में लंबे समय तक कभी नहीं रही। यही कारण है कि मैं फिल्म जगत के लोगों से मिल नहीं सकी और इसीलिए मुझे हिन्दी फिल्मों में गाने का कभी मौका नहीं मिला। खानम कहती हैं कि वह भारत में कभी भी दो या चार दिन से अधिक समय तक नहीं रुकीं और अगर वह इससे अधिक समय तक रुकी होतीं तो उन्हें हिन्दी फिल्मों में गाने का मौका जरूर मिला होता।
भारत में जन्मी खानम ने ख्याल से गायन की शुरुआत की थी। उनकी बहन मुख्तार बेगम और उस्ताद आशिक अली खान उनके गुरु हुआ करते थे। इनसे गायकी सीखने के बाद खानम ने 1960 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान के सामने कार्यक्रम पेश किया था।
खानम पाकिस्तान में बेहद लोकप्रिय हैं और यही कारण है कि पाकिस्तान सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान-हीलाल-ए-इम्तियाज से अलंकृत किया है। यह पूछे जाने पर भारत में कार्यक्रम पेश करके कैसा लगता है। खानम ने कहा, भारत में कलाकारों का सम्मान होता है और यही कारण है कि यहां कार्यक्रम पेश करके एक अलग तरह का सुख मिलता है।
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