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भारतीय संगीत व सद्भाव के अग्रदूत अमजद अली खान
अमजद अली खान ने संगीत के लिए प्रसिद्ध बंगश घराने की पारंपरिक संगीत को छठी पीढ़ी में न सिर्फ जीवित रखा है, बल्कि अनेक मौलिक रचनाओं के साथ उसे नया जीवन प्रदान किया है। इतना ही नहीं अपने दोनों बेटों अमान अली और अयान अली को सरोद में दीक्षित कर वे इस संगीत की परंपरा को बंगश वंशावली की सातवीं पीढ़ी के सुरक्षित हाथों में सौंप चुके हैं। ग्वालियर के शाही परिवार के संगीतकार हाफिज अली खां के पुत्र अमजद अली खां प्रसिद्ध बंगश वंशावली की छठी पीढ़ी के हैं, जिसकी जड़ें संगीत की सेनिया बंगश शैली में हैं। इस शैली की परंपरा को शहंशाह अकबर के अमर दरबारी संगीतकार मियां तानसेन के समय से जोड़ा जा सकता है। अमजद अपने पिता के खास शिष्य थे।
भारतीय शास्त्रीय संगीत में अमजद अली खान आज सर्वोत्कृष्ट स्थान हासिल कर चुके हैं, और कला के लिए समर्पण ने उन्हें विश्व में भारतीय संगीत के अग्रदूत के रूप में स्थापित किया है। भारत ही नहीं, पूरा विश्व आज उनसे संगीत की दीक्षा लेना चाहता है, और संगीत के इस असीम सागर से कुछ मोती प्राप्त करना चाहता है। इसी सिलसिले में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय ने उन्हें पिछले वर्ष संगीत की शिक्षा प्रदान करने के लिए आमंत्रित किया। यहां उन्होंने 'इंडियन क्लासिकल म्यूजिक : ए वे आफ लाइफ' शीर्षक वाले पाठ्यक्रम के अंतर्गत विश्व को भारतीय संगीत की मधुरता एवं विश्वप्रियता से अवगत कराया।
भारतीय संगीत के जरिए विश्व में सद्भावना का संदेश प्रसारित करने वाले अमजद अली खान को इस वर्ष 20 अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के जन्मदिवस पर राष्ट्रीय एकता एवं सौहार्द के क्षेत्र में अतिविशिष्ट कार्यो के लिए दिया जाने वाला राजीव गांधी सद्भावना सम्मान से सम्मानित किया गया। वैसे तो कहा जाता है कि अमजद अली खान जैसे विश्वस्तर के कलाकारों को ये सम्मान उन सम्मानों का ही सम्मान बढ़ाने का काम करते हैं। इसीलिए शायद विश्वभर से उन्हें इतने सम्मानों से सम्मानित किया गया।
1971 में उन्होंने द्वितीय एशियाई अंतर्राष्ट्रीय संगीत-सम्मेलन में भाग लिया जहां उन्हें 'रोस्टम पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। खान साहब को इसके अलावा भारत के प्रतिष्ठित पुरस्कारों, पद्मश्री, पद्म विभूषण, पद्म विभूषण, संगीत नाटक अकादमी सम्मान, कला रत्न सम्मान, तानसेन सम्मान और उनकी उपलब्धियों के लिए उन्हें 2011 में मल्लिकार्जुन भीमरायप्पा मंसूर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा अमजद अली खां साहब को यूनेस्को सम्मान एवं यूनिसेफ के राष्ट्रीय राजदूत सम्मान से नवाजा गया।
अमजद अली खां ऐसे संगीतकार हैं, जिन्हें न सिर्फ संगीत के प्रति समर्पण के लिए ही नहीं बल्कि उसकी परंपरा को भी संजोने के लिए भी जाना जाएगा। उन्होंने अपने पिता हाफिज अली खान पर 'माई फादर, ऑवर फ्रैटर्निटी : द स्टोरी ऑफ हाफिज अली खान एंड माई वल्र्ड' शीर्षक से पुस्तक लिखकर भारतीय के एक संगीत घराने के योगदान एवं परंपरा को अमर कर दिया। उनकी पुस्तक का विमोचन महानायक अमिताभ बच्चन ने किया। अमजद अली खान का व्यक्तित्व इतना सहज लेकिन इतना प्रभावी है कि मशहूर गीतकार एवं निर्देशक गुलजार ने 1990 में उन पर फिल्म प्रभाग की तरफ से 'अमजद अली खान' शीर्षक से एक वृतचित्र फिल्म का निर्माण किया और इस फिल्म को उस वर्ष सर्वश्रेष्ठ वृतचित्र का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।
अमजद की सृजनात्मक प्रतिभा को उनके द्वारा रचित कई मनमोहक रागों में अभिव्यक्ति मिली। उन्होंने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की स्मृति में क्रमश: राग प्रियदर्शनी और राग कमलश्री की रचना की। उनके द्वारा रचित अन्य रागों में शिवांजलि, हरिप्रिया कानदा, किरण रंजनी, सुहाग भैरव, ललित ध्वनि, श्याम श्री और जवाहर मंजरी शामिल हैं। अमजद अली खान ने देश-विदेश के अनेक महžवपूर्ण संगीत केंद्रों में संगीत प्रस्तुत कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया है। इनमें कुछ प्रमुख हैं- रॉयल अल्बर्ट हॉल, रॉयल फेस्टिवल हॉल, केनेडी सेंटर, हाउस ऑफ कॉमंस, फ्रैंकफुर्ट का मोजार्ट हॉल, शिकागो सिंफनी सेंटर, ऑस्ट्रेलिया का सेंट जेम्स पैलेस और ओपेरा हाउस आदि।
सरोद के प्रति उनकी दीवानगी को इसी से समझा जा सकता है कि आपने ग्वालियर में सरोद म्यूजियम 'सरोद घर' भी बनाया है, जिसमें सरोद से जुड़े फोटो, दस्तावेज, शास्त्रीय संगीत पर किताबें, लेख ऑडियो-विडियो दस्तावेजों का बहुमूल्य खजाना उपलब्ध है। वह अपने इस सरोद घर में लाइव संगीत कार्यक्रमों का आयोजन भी करवाते हैं। अमजद अली खान ने अपनी पत्नी एवं प्रख्यात भरतनाट्यम नृत्यांगना सुब्बालक्ष्मी के लिए विशेष तौर पर एक राग 'सुब्बालक्ष्मी' की रचना की है।
अमजद अली खान के विश्व बंधुत्व, सर्वधर्म समभाव और मानवीय हृदय को इसी बात से जाना जा सकता है कि उन्होंने कहा था कि उन्हें संगीत प्रस्तुति देते वक्त मंच पर जाते वक्त ऐसी ही अनुभूति होती है, जैसी किसी धार्मिक व्यक्ति को मस्जिद में रोज नमाज पढ़ने या मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए जाने पर होती होगी।