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    मैचोमैन नहीं अभिनेता कहिए: सुनील

    By Staff
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    'मैचोमैन नहीं अभिनेता कहिए'

    दुनिया में किसी अभिनेता से बात करें. वो ख़ाली होते हुए भी हमें अपनी ऐसी फ़िल्मों के बारे में बताने को उत्सुक होगा जिन पर या तो काम चल रहा होगा या फिर बातचीत चल रही होगी.

    लेकिन 49 साल के होने जा रहे और अपनी पहली ही फ़िल्म बलवान से हिंदी सिनेमा के पहले मैचोमैन मान लिए गए अभिनेता सुनील शेट्टी ऐसे नहीं हैं.

    वो जब दो साल पहले टीवी करने आए तो उन्होंने माना कि चूँकि उनके पास काम नहीं है तो वो कुछ तो करेंगे ही.

    सहारा के शो बिगेस्ट लूजर में लोगों के बार-बार पूछने पर वो झल्ला जाते थे. उनका कहना था की जब फिल्में नहीं हैं तो मैं क्या बताऊँ.

    आज उनके पास बताने को बहुत कुछ है अपनी फिल्मों के बारे में भी और अपने प्रोडक्शन हाउस के साथ अपने करियर के सफ़र के बारे में भी .

    लंबे समय से आपकी फ़िल्मों का हश्र ठीक नहीं रहा है और डैडी कूल का तो किसी ने जिक्र भी नहीं किया. जबकि वो हॉलीवुड की मशहूर फिल्म डेथ ऐट फ़्यूनरल की रीमेक थी?

    कई बार ऐसा हो जाता है. पहले इंडस्ट्री मंदी और हड़ताल से जूझती रही और बाद में एक साथ आधा-आधा दर्जन फ़िल्मों को रिलीज़ किया गया. ऐसे में दर्शक बँट जाते हैं.

    आप भी तो कई चीजों में बंटे हुए हैं. अब आप फ़िल्मों में अभिनय के साथ निर्माण भी करते हैं.

    हर आदमी ख़ुद को बनाए रखने के लिए कुछ ना कुछ करता है. मैं फ़िल्में बनाता हूँ. उनमें काम करता हूँ. आपने अपने करियर की शुरुआत मैचोमैन सरीखी भूमिका से की और उसके बाद कॉमेडी भी. लेकिन मैं हूँ ना के बाद आपको सराहना मिली निगेटिव शेड के चरित्रों से?

    मुझे इनमें मज़ा आता है. कई बार मैंने ऐसी भूमिकाएँ भी की, जो नामी अभिनेताओं ने छोड़ दी थीं. मैं हूँ ना और मिशन इस्तांबुल ऐसी ही फ़िल्में कही जा सकती हैं लेकिन बाद में वे सराही गई.

    मैंने हमेशा भूमिका का अर्थ देखा उसकी लंबाई नहीं. मैं किसी छवि का शिकार नहीं. डैडी कूल में मैंने लंबे अरसे बाद सीधे-सादे आदमी की ऐसी भूमिका निभाई जो अपने पिता की मौत और परिवार के स्वार्थों के बीच फँसा रहता है लेकिन अंत में सबका नया आधार बन जाता है.

    मैं छवियों के बनने-बिगड़ने से नहीं डरता. बस काम अच्छा हो. धड़कन के लिए मुझे सर्वश्रेष्ठ खलनायक का अवार्ड मिल गया था लेकिन आज भी मेरे करियर की बतौर खलनायक मैं हूँ ना शानदार फ़िल्म है.

    जब आप पहली बार टीवी पर आए तो डर नहीं लगा. उस समय आप लगभग ख़ाली थे?

    उस समय भी पूरी तरह ख़ाली नहीं था. अपनी फ़िल्म निर्माण कंपनी में लगा था. आज टीवी और फ़िल्म का कोई फ़र्क नहीं.

    हमारी फ़िल्मों के सबसे बड़े सितारे माने जाने वाले बच्चन साहब ने किया. बाद में शाहरूख़ ने किया और अब अक्षय के साथ कोई ऐसा सितारा नहीं जो टीवी नहीं करना चाहता.

    मैंने जब टीवी किया तो उस समय भी मेरे जीवन की कुछ अहम बातें उस शो के साथ जुडी हुई थी.

    मेरे पिता पैरालाइसिस का सदमा झेल चुके थे और उस समय मैं जीवन का सबसे बड़ा लूजर था. मेरी मां बुढापे की और बढ़ रही थी.

    ऐसे में सेहत के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए मेरे पास उस शो से कुछ बेहतर रास्ता नहीं था. मैंने अपनी सभी फ़िल्मों की शूटिंग निपटा दी थी और सच पूछिए तो मेरे पास कोई नया काम नहीं था.

    पर अब आप इस मामले में युवाओं के रोल मॉडल नहीं रहे. अब तो ऋतिक, अक्षय, सलमान के साथ आमिर भी इस मैदान में हैं?

    मैंने कभी रोल मॉडल बनने के लिए कुछ नहीं किया. मुझे यह रोमांचित करता है. जब नए लोग आते हैं तो पुराने लोगों को जगह ख़ाली करनी ही पड़ती है.

    मैंने और अक्षय ने साथ-साथ करियर शुरू किया था लेकिन हर अभिनेता का अपना एक मुकाम और करियर होता है. सत्रह साल के करियर में मैंने फ़िल्मों से बहुत कुछ सीखा है और सीख रहा हूँ.

    अब आपके पास फिल्मों में कितनी जगह है?

    पिछले दिनों डैडी कूल और मुखबिर रिलीज़ हुई है और जल्दी ही मुंबई चका चक रिलीज़ होगी.

    उसके बाद प्रियदर्शन की दे दना दन, पाठशाला, राइज एंड फ़ॉल, हेराफेरी-4, हैलो इंडिया, नो प्रॉब्लम, लिटिल गॉडफ़ादर और तुम मिलो तो सही आने वाली हैं. मलयालम की कुरुक्षेत्र और तमिल की 12बी भी की है.

    आप तो संजय दत्त, जेपी दत्ता और संजय गुप्ता के पसंदीदा अभिनेता हैं. फिर भी आपको कभी सोलो अभिनेता नहीं माना गया और अपनी ही फ़िल्मों में काम नहीं करते?

    संजय दत्त और संजय गुप्ता मेरे लिए भाई जैसे हैं और जे पी दत्ता का मैं बहुत सम्मान करता हूँ. मैं लगभग इनकी हर फ़िल्म में होता हूँ.

    हाल में ही मैंने दत्ता जी की उमराव जान की थी. अगर आप मेरी फ़िल्मों पर गौर करें तो मैंने हु तू तू, तेरे घर के सामने जैसी फ़िल्में की.

    मैं कोशिश करता हूँ की अपने प्रोडक्शन हाउस की फिल्मों से दूर रहूँ. मैं एक साथ दो नावों में पाँव नहीं रखता .

    आपने दक्षिण की और अंग्रेज़ी की भी काफ़ी फ़िल्में की हैं?

    काफ़ी नहीं. अंग्रेज़ी की एक फ़िल्म डोंट स्टॉपिंग ड्रेस और दक्षिण की दो तीन फ़िल्में ही की हैं.

    आपकी बेहतर फ़िल्में किसको मानते हैं?

    हु तू तू, रिफ़्यूजी, मोहरा, हेराफेरी, उमराव जान, अमर जोशी शहीद हो गया, मैं हूँ ना, तेरे घर के सामने जैसी फ़िल्मों को करने में मुझे मज़ा आया.

    अपने फ़िल्मी करियर से ख़ुश हैं. जीवन में आप काफ़ी अनुशासन पसंद माने जाते हैं?

    मैं फिल्मों में सुपर स्टार बनने नहीं आया था. फिर भी एक्शन, कॉमेडी और कुछ गंभीर फ़िल्मों में अपना मुकाम बना लिया. मैं किसी मुक़ाबले में शामिल नहीं हूँ.

    जहाँ तक अनुशासन की बात है तो मैं सुबह चार बजे उठ जाता हूँ, जिम जाता हूँ. मैं ना सिगरेट पीता हूँ और न शराब.

    मैं अपने बच्चों और अपनी पत्नी के साथ आराम से जीवन जी रहा हूँ.

    फिल्में आप कम करते हैं. अपनी पत्नी माना के बिजनेस और रेस्तरां के काम को भी देखते हैं. इतना समय है आपके पास?

    अब आप क्या मुझे बिल्कुल ख़ाली देखना चाहते हैं. ज़िंदगी चलाने के लिए सबको पैसों की ज़रुरत होती है. माना फ़ैशन डिज़ाइनर हैं. वे अपना काम करती हैं. मैं तो बस उनकी मदद करता हूँ.

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