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INTERVIEW: 'दो- ढ़ाई सालों से अपनी ज़िदगी का सबसे बड़ा रोल निभा रहा हूं'- सोनू सूद
डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी के निर्देशन में बनी फिल्म 'सम्राट पृथ्वीराज' में अभिनेता सोनू सूद कवि चंद बरदाई का किरदार निभा रहे हैं। इस फिल्म को लेकर उत्साहित सोनू कहते हैं, "बचपन में कहानियां सुनते आए थे पृथ्वीराज, चंद बरदाई की। कभी सोचा नहीं था कि इतने साल बाद मुझे खुद वो रोल निभाने का मौका मिलेगा।"
पीरियड फिल्मों पर बात करते हुए अभिनेता ने कहा, "मेरी तो शुरुआत ही पीरियड फिल्मों से हुई है। मैंने भगत सिंह की, जोधा अकबर की है.. फिर साउथ में भी मैंने कई फिल्में की हैं। पृथ्वीराज की बात करें तो डॉक्टर साहब को मैं बहुत सालों से जानता हूं और उन्होंने ही मुझे कहा कि जब मैं लिख रहा था तो मुझे चंद बरदाई के किरदार में सोनू सूद ही दिख रहा था।"
पिछले दो सालों में फिल्मों से अलग आम जन के बीच भी सोनू सूद ने अपनी खास जगह बनाई है। लॉकडाउन के दौरान उन्होंने मुंबई में फंसे हजारों प्रवासी मजदूरों को उनके घर, उनके परिवार के पास पहुंचाने में मदद दी। फिर उनका मिशन देश भर में फैला और लॉकडाउन खत्म होने के बाद आज भी जारी है। वह लगातार जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं और खूब प्यार और सराहना बटोर रहे हैं। सोनू बताते हैं कि पिछले ढ़ाई साल से हर दिन उनकी टीम के पास तीस से चालीस हजार मदद के रिक्वेस्ट आते हैं।
'सम्राट पृथ्वीराज' की रिलीज से पहले सोनू सूद ने मीडिया से खास बातचीत की, जहां उन्होंने फिल्म में अपने किरदार से लेकर साउथ वर्सेज बॉलीवुड विवाद, फिल्मों में अपने सफर और लॉकडाउन के समय से जरूरतमंदों की मदद करने की अपनी पहल को लेकर खुलकर बातें कीं।
यहां पढ़ें इंटरव्यू से कुछ प्रमुख अंश-
Q. फिल्म में आप चंद बरदाई का किरदार निभा रहे हैं। इस किरदार की किस विशेषता ने आपको प्रेरित किया?
मेरी मां इतिहास और अंग्रेजी की प्रोफेसर थी, तो बचपन में कहानियां सुनते आए थे पृथ्वीराज, चंद बरदाई की। लेकिन कभी सोचा नहीं था कि इतने साल बाद मुझे वो रोल करने को मिलेगा। चंद बरदाई की बात करें तो वो शानदार योद्धा थे, कवि थे, बेहतरीन दोस्त थे, ज्योतिषी थे और सम्राट पृथ्वीराज सदा उन्हें अपने साथ रखते थे। युद्ध से पहले भी चंद बरदाई की सलाह लेते थे। यदि उन्होंने कह दिया कि युद्ध नहीं होगा.. तो फिर युद्ध नहीं होता था, चाहे बाकी सलाहकार जो भी कह लें। लिहाजा, फिल्म में जब आप ऐसा किरदार निभाते हैं तो आपको अहसास होता है कि ये जो कहानी है कहीं ना कहीं सिर्फ एक निर्णय पर चलने वाली है। ये किरदार बहुत ही प्रेरणात्मक हैं और मुझे लगता है कि आज के जेनरेशन को इनकी जानकारी जरूर होनी चाहिए। पहले के बच्चे को मां- पिता ये कहानियां सुना देते थे, आजकल सोशल मीडिया के जमाने में तो बच्चें खुद ही कहानियां देख लेते हैं, जो उन्हें देखनी है। इसीलिए मुझे लगता है कि उन कहानियों और किरदारों को हमें फिल्म के जरीए लोगों तक पहुंचाना चाहिए।
Q. फिल्म या स्क्रिप्ट को हां करने के दौरान किन बातों का ख्याल था?
मुझे लगता है कि आप फिल्मों को नहीं चुनते हैं, फिल्में आपको चुनती हैं। आप हमेशा अच्छी फिल्मों का हिस्सा बनना चाहते हैं। जब राइटर, डायरेक्टर कोई रोल लिखते हैं, उसी वक्त यह तय हो जाता है कि ये किसके पास जाना है। मुझे याद है जब डॉक्टर साहब (निर्देशक) ने मुझे बताया कि मैं चंद के लिए चाहता हूं कि आप ये किरदार करें, तो उत्साहित होने के साथ साथ मुझे जिम्मेदारी का अहसास भी हुआ था कि अब वो इतिहास का पन्ना खोलना पड़ेगा, जो बहुत साल पहले पढ़ा था। लेकिन अच्छी बात ये रही कि डॉक्टर साहब खुद एक इतिहास की किताब की तरह हैं। आप उनके साथ यदि बातें करने बैठें तो आपको इतिहास की इतनी जानकारी हो जाती है कि आपको लगता है कि आप जाकर उस रोल को जस्टिफाई कर पाएंगे। साथ ही फिल्म के सेट पर कैसा वातावरण होता है, इससे भी मदद मिलती है। मुझे अपने लुक में आने के लिए 3-4 घंटे देने पड़ते थे, लेकिन तैयार होते होते ही आप आधे कैरेक्टर में आ जाते हैं।
Q. यशराज बैनर के साथ यह आपकी पहली फिल्म है। इंतज़ार काफी लंबा रहा?
हां, अब यही है.. उन्हें 23 साल लगे मुझ तक पहुंचने में.. (हंसते हुए)। खैर, काफी साल पहले मुझे आई थी यशराज की फिल्म, मैं उसे लेकर बहुत उत्साहित भी हो गया था। लेकिन कहीं ना कहीं अपने रोल को मैं समझ नहीं पाया था और फिर मैंने ही ना कर दिया था। इंकार करने में मेरा दिल भी टूटा था.. मुझे लगा था कि पता नहीं अब दोबारा यशराज के साथ काम करने का मौका मिलेगा या नहीं। लेकिन आखिरकार अब पृथ्वीराज के साथ हमारा फिर से जुड़ना हुआ।
Q. पिछले दो- ढ़ाई सालों में आपको लेकर निर्माता- निर्देशकों के अप्रोच में कोई बदलाव दिखा है?
बहुत बदलाव आया है। आप देखेंगे कि अब जितनी फिल्में मैं कर रहा हूं, वो सब पॉजिटिव किरदार हैं। एक वो भी दौर था जब लोग बोलते थे कि यार निगेटिव रोल कर लिया है उसने, अब लोग पॉजिटिव रोल में पसंद नहीं करेंगे। और अब एकदम उसके उलट बोलते हैं। पिछले दो साल से तो मुझे किसी ने कोई निगेटिव रोल ऑफर नहीं किया। तो मुझे लगता है कि खुद ही लोग नजरिया बदलते हैं, खुद ही नई इमेज बनाते हैं।
Q. मानते हैं कि मेहनत के बावजूद करियर में मुकाम हासिल करने के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ा है?
जब आप मुंबई में बिना किसी पहचान के आते हैं, आपको सड़कें तक नहीं पता है कि कौन सी किधर जाती है.. तो उस चीज के लिए तैयार हो आएं कि आपको धक्के खाना तो तय है। मैं भी ये सोच के ही आया था। मैं इंजीनियर था.. और मुझे पता था कि जब आप नॉन- फिल्मी बैकग्राउंड से आते हैं, जब आपको कोई जानता नहीं.. तो बहुत सारी प्रतिक्रियाएं भी मिलेंगी। वो लोग भी आपको नीचे खींचना चाहेंगे, जिनको आप जानते भी नहीं हैं। बदकिस्मती से हम ऐसी दुनिया में रहते हैं, जहां कोई आपको कामयाब देखना नहीं चाहता। इसीलिए मेरा सोचना है कि यह महत्वपूर्ण नहीं कि आप कितने जल्दी सफल होते हैं, बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि आप उस सफलता के दरवाजे तक पहुंचने के लिए कितने लंबे समय तक सरवाइव कर सकते हैं। अकसर टूट जाते हैं लोग। जब मैं आया था तो मैंने भी सोचा था कि एक- डेढ़ साल देखूंगा.. हुआ तो हुआ, नहीं तो पंजाब जाकर इंजीनियरिंग की दुनिया में वापसी करेंगे। लेकिन सच बताऊं तो एक- डेढ़ साल तो सड़कें पहचानने में लग गए। पता ही नहीं चला कि कौन सी बांद्रा जाती है, कौन सी अंधेरी जाती है। मुझे लगता है कि कहीं ना कहीं यदि आप इन सभी बातों को कबूल कर लें, तो हमें तकलीफ नहीं होगी। मैं अब अफसोस मनाने वाले दौर से निकल चुका हूं। मुझे अब कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं सोचता हूं कि मैंने और हम सबने जो पिछले दो -ढ़ाई साल में बहुत तकलीफें देखी हैं, दुनिया को बदलते देखा है.. तो जिंदगीं और दुनिया जो है, वो फिल्मों कहीं बहुत ऊपर और बहुत बड़ी है।
Q. अभिनेता होने के अलावा, जो 'मसीहा', 'सुपरमैन' वैगेरह टैग मिल रहे हैं, उसे किस तरह से देखते हैं?
लोग जो टैग देते हैं मैं विनम्रता से स्वीकार करता हूं, लेकिन मुझे नहीं लगता है कि मैं इसके लायक हूं। मैं खुद को सिर्फ एक जरिया के रूप में देखता हूं। लोग मुझे जब युवाओं से बात करने या भाषण देने भी बुलाते हैं, तो मैं देखता हूं कि पहले तो सब बहुत उत्साहित हो जाते हैं कि हम आपके साथ कैसे जुड़ सकते हैं? कैसे मदद दे सकते हैं? लेकिन वो उत्साह बहुत कम समय के लिए रहता है। ये लोग जैसे ही अपने घर जाते हैं, अपनी निजी ज़िंदगी में व्यस्त हो जाते हैं। मदद करने के जज्बा को बनाए रखना बहुत मुश्किल है। मैं नाम नहीं लूंगा.. लेकिन लॉकडाउन के दौरान जब मैंने काम शुरु किया था, तो कुछ एक्टर्स ने भी अप्रोच किया था.. कि बहुत अच्छा काम कर रहे हो, हम कैसे जुड़ें? तो मैंने कहा, "बहुत अच्छा है बिल्कुल जुड़ें, मैं आपको केस भेजना शुरू करता हूं, आप भी मदद करें।" तो फिर उन्होंने पूछा कि कितना टाइम देना पड़ेगा हमें? मैंने बताया कि टाइम का तो कोई हिसाब- किताब नहीं है। इमेरजेंसी कभी भी आ सकती है। फिर उन्होंने कहा कि, "नहीं यार, हम तो एक या डेढ़ घंटा दे सकते हैं।" तो फिर ऐसे तो नहीं हो सकता। ये सब निर्भर करता है कि आपको कितनी खुशी मिलती है ये सब काम करके। मुझे लोगों की मदद करने में दिल से खुशी मिलती है। मैं लगभग 90-100 फिल्में कर चुका हूं, अलग अलग भाषाओं में.. लेकिन मुझे लोगों की परेशानी सुनकर उसका समाधान निकालने में जितनी खुशी मिलती है, उनकी जान बचाने में जो संतुष्टि मिलती है.. उसकी कोई तुलना ही नहीं है। ये आप पर निर्भर करता है कि आप क्या चुनते हैं! मैं अभी यहां से निकलूंगा तो ये मुझ पर है कि मैं ये सोचूं कि शाम की पार्टी में मैं कौन सी ड्रेस पहनूंगा या ये सोचूं कि कोई इंसान जो मुझ तक पहुंचने की कोशिश कर रहा हैं, मैं उसकी मुसीबत कैसे खत्म करूं।
Q. लॉकडाउन के बाद अब आपका काम किस दिशा में आगे बढ़ रहा है?
मैं देवरिया में एक स्कूल बना रहा हूं, शिरडी में अनाथालय और वृद्धाश्रम बना रहा हूं, झारखंड के एक गांव में एक स्कूल शुरु करने की प्लानिंग चल रही है। अपने आप लोगों की तकलीफें सामने आ रही हैं, तो रास्ता भी बन रहा है। मैं तो खुद कभी इन जगहों पर गया नहीं हूं। मेरे लिए ये नई दुनिया है, मैं भी हर दिन कुछ नया सीख रहा हूं। आज से एक- डेढ़ साल बाद जब मुझसे बात करेंगी, तो बहुत सारी चीजें और बताने को होंगी शायद। मैं बता दूं, शुरू से लेकर अभी तक का हमने जो भी किया है, हमारे पास सब रिकॉर्ड में है।
Q. समाज के लिए आप जो भी कर रहे हैं, उसे लेकर परिवार की तरफ से कैसी प्रतिक्रिया रहती है?
वो बहुत ही सपोर्टिव हैं। मेरे बेटे को भी इंस्टाग्राम पर मैसेज आते हैं कि हमारा इलाज करा दीजिए, आप हमें सोनू सूद से मिला दीजिए.. वैगेरह वैगेरह। वो मुझे मैसेज फॉरवर्ड करता है। फिर हम अपने स्तर पर उस मैसेज जांच करते हैं और मदद करते हैं। अब तो मेरा बेटा फॉलो अप भी लेता है कि आपने उसकी मदद की क्या जो मैसेज आया था। मेरे घर के नीचे भी लोग आते हैं तो कभी कभार वो मेरे बच्चे को भी रोककर बोलने लगते हैं कि मदद कर दीजिए। तो वो मैसेज लेकर आता है मेरे पास। मुझे लगता है कि कहीं ना कहीं उस पर भी इन सबका प्रभाव पड़ा है। उसकी ये जो स्कूलिंग हो रही है.. ये देश और दुनिया के किसी क्लास में पढ़ा नहीं सकते। ये असल जीवन के अनुभव से ही इंसान सीखता है।
Q. इस दौरान फिल्म इंडस्ट्री से कितना सहयोग मिला?
(हंसते हुए) दुआएं बहुत देते हैं मुझे। मिलता हूं कि खुशी जताते हैं कि मैं बहुत अच्छा काम कर रहा हूं। लेकिन यदि आप पूछेंगे कि किसी के साथ मिलकर कोई प्रोजेक्ट किया है या कोई मदद दी है.. तो वो नहीं हुआ है। खैर, मैं उम्मीद करता हूं कि सभी अपने स्तर पर जरूरतमंदों के लिए कुछ ना कुछ जरूर कर रहे होंगे।
Q. अकसर आपके बायोपिक की चर्चा होती रहती है। आधिकारिक तौर पर इस बारे में कुछ बताएं?
सच कहूं तो मुझे नहीं लगता कि मैंने कोई ऐसा काम किया है कि मुझ पर बायोपिक बनाई जाए। मेरी रियल लाइफ में जो फिल्म चल रही है, उसमें ना तो लाइट है, ना कैमरा है, सिर्फ एक्शन है। ऊपरवाला डायरेक्टर है इस फिल्म का.. और मैं दो सालों से अपनी ज़िदगी का सबसे बड़ा रोल निभा रहा हूं। तो मुझे नहीं लगता इससे ज्यादा स्पेशल कोई बात होगी।
Q. आप लगातार साउथ और हिंदी फिल्मों में काम करते रहे हैं। आज सोशल मीडिया पर बॉलीवुड बनाम साउथ फिल्मों की जो बहस छिड़ी है, उस पर क्या राय रखते हैं?
साफ बात है कि फिल्म अगर अच्छी है तो लोग सबटाइटल्स के साथ भी एन्जॉय करते हैं और अगर अच्छी नहीं हो तो अपनी भाषा की हो तो भी लोग नहीं देखेंगे। तो कहानी का सार यही है कि आपको अच्छी फिल्म बनानी है.. किस भाषा में बना रहे हैं, ये मायने नहीं रखता है। लोग ऐसी फिल्मों के लिए थियेटर में जाने और पैसे खर्चने के लिए तैयार हैं, जो उनके चेहरे पर स्माइल लाए, उन्हें खुश करे, एंटरटेन करे।
Q. दोनों इंडस्ट्री को लेकर आपका निजी अनुभव कैसा रहा है?
मैं खुद को दोनों इंडस्ट्री का हिस्सा मानता हूं। जब मैं आया था इंडस्ट्री में, मैंने प्लान नहीं किया था कि मैं साउथ जाउंगा। वो बस हो गया। मेरे साथ सवाल था कि मैं कितनी देर सरवाइव कर सकता हूं। तो मैं साउथ में लगातार काम करता गया, सेट पर ही सीखता गया। मुझे पता था कि मुझे सरवाइव करना है। मेरा कोई हाथ थामने वाला नहीं था कि मैं तुझे बहुत बड़ी ब्रेक दूंगा। इसीलिए जो भी जंग जीतनी है, वो अकेले ही जितनी है। हां, जंग लंबी है, अभी भी लड़ ही रहे हैं। वो कभी खत्म नहीं होने वाली क्योंकि आपके लिए सफलता के मायने बदलते रहते हैं।
लेकिन हां, मैं कहना चाहूंगा कि साउथ की वजह से मुझे बॉलीवुड में सही फिल्मों का चुनाव करने में मदद मिली। मैंने शुरुआत में कई फिल्में करने से इंकार किया है, बड़ी बड़ी बैनर की फिल्मों को भी मना करता रहा.. क्योंकि मैं साउथ में व्यस्त रहता था। मैं वहां सुरक्षित था और मेरी यही सोच थी कि बॉलीवुड से कुछ अच्छा ऑफर आएगा, तभी मैं करूंगा नहीं तो नहीं करूंगा। इसीलिए मैं बॉलीवुड में गलत फिल्में करने से बचा रहा। इस दौरान मैं साउथ की फिल्में लगातार कर रहा था, वहां सीख रहा था। तो हां, मेरे करियर में साउथ फिल्म इंडस्ट्री बहुत बड़े सपोर्ट के तौर पर रही है।
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