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Exclusive Interview: "फेल होना नहीं, फेल होने पर आप कैसी प्रतिक्रिया देते हैं यह महत्वपूर्ण है"- अभिषेक बच्चन
तुषार जलोटा के निर्देशन में बनी फिल्म 'दसवीं' का प्रीमियर 7 अप्रैल को नेटफ्लिक्स और जियो सिनेमा पर होने वाला है। फिल्म में अभिषेक बच्चन एक आठवीं पास मुख्यमंत्री गंगाराम चौधरी की भूमिका निभा रहे हैं, जो भ्रष्टाचार के आरोप में जेल पहुंच चुका है। फिल्म का ट्रेलर काफी दिलचस्प है।
दसवीं में अपने किरदार को लेकर उत्साहित अभिषेक कहते हैं, "गंगाराम का एटिट्यूड मुझे बहुत पसंद आया। वो हमेशा एक ताव में रहते हैं। ये बहुत ही मजेदार किरदार है। उम्मीद है दर्शक भी इसे उतना ही एन्जॉय करेंगे, जितना मैंने इसे निभाने में किया।"
एक्शन, कॉमेडी, रोमांटिक से लेकर थ्रिलर, हर प्रकार की शैली की फिल्मों में काम कर चुके अभिनेता ने अपने स्क्रिप्ट के चुनाव की प्रक्रिया पर बात करते हुए कहा, "मैं सिर्फ अच्छी कहानियां सामने लाने की कोशिश करता हूं। ऐसे विषय जो बतौर अभिनेता ही नहीं, एक दर्शक के तौर पर भी मुझे अपील करे। मेरे चुनाव को कभी दर्शकों ने पसंद किया, कभी नापसंद किया।" अभिनेता का मानना है कि रिजेक्शन भी आगे बढ़ने का एक तरीका है।
'दसवीं' की रिलीज से पहले अभिषेक बच्चन ने फिल्मीबीट से विशेष बातचीत की है, जहां उन्होंने अपने किरदारों के चुनाव, 22 साल के फिल्मी सफर, ट्रोलर्स और रिजेक्शन का सामना करने को लेकर खुलकर बातें की हैं।
यहां पढ़ें इंटरव्यू से कुछ प्रमुख अंश-

Q. फिल्म के ट्रेलर और प्रोमो को सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है तो थोड़ी राहत महसूस करते हैं?
हां, बिल्कुल, क्योंकि फ़िल्म की ये पहली झलक होती है, जो दर्शक देखते हैं। पूरी फ़िल्म बनाने के बाद ये पहली बार अंदाजा लगता है कि दर्शकों की प्रतिक्रिया किस तरफ जा रही है। तो हां, जब ट्रेलर को पॉजिटिव रिस्पांस मिलता है तो बहुत खुशी होती है।
Q. आपने सोशल मीडिया पर एक नोट शेयर किया है, जिसमें इस फिल्म को "अपने दिल के बहुत करीब" बताया है। फिल्म की खासियत को लेकर क्या कहना चाहेंगे?
मेरे ख्याल से हर फिल्म ही मेरे दिल के करीब होती है, यदि वो मेरे दिल के करीब नहीं है तो फिर मुझे वो नहीं करनी चाहिए। लेकिन इस बार मैंने खुल कर ये कहा है क्योंकि मैं फ़िल्म से बहुत खुश हूं। मुझे इस फ़िल्म पर गर्व है और जब मैंने इसे देखा तो मैंने बतौर दर्शक बहुत एन्जॉय किया।
Q. आपने अपने काम को लेकर apologetic (क्षमाप्रार्थी) होने की बात भी लिखी थी। वो किस संदर्भ में था?
दरअसल, मैं ऐसा व्यक्ति हूं जो अपने काम के प्रचार करने को लेकर बहुत सहज नहीं है। मुझे थोड़ा अजीब लगता है। लेकिन ये जरूरी भी है। दसवीं को लेकर मैं सिर्फ कहना चाहता हूं कि देखिये हमने मेहनत की है, अच्छी फ़िल्म बनाई है, आप देखें। मैं सबमें पॉजिटिव एनर्जी पास करना चाहता हूं। तो मैंने वो बात मैंने ये सोच कर लिखी थी।

Q. दसवीं की शुरुआत कैसे हुई?
2020 की बात है, जब तुषार (निर्देशक) और दिनेश विज़न (निर्माता) के साथ इस फ़िल्म को लेकर मेरी बातचीत शुरू हुई थी। उन्होंने मुझे एक बेसिक कहानी सुनाई थी, जो मुझे अच्छी लगी थी। मैंने फ़िल्म को हां कहा और फिर हमने काम शुरू कर दिया। फ़िल्म की शूटिंग हमने पिछले साल फरवरी में शुरू की, जो कि दो- तीन महीने तक चली थी। फिर पोस्ट प्रोडक्शन में लग गए थे हमलोग।
Q. स्क्रिप्ट के चुनाव के समय किन बातों का ख्याल रखते हैं?
एक अच्छी और दिलचस्प कहानी जो आप सुनाना चाहते हैं। मेरे लिये ये सबसे महत्वपूर्ण है। ये मैंने कभी देखा नहीं कि डायरेक्टर कौन है, प्रोड्यूसर कौन है, को- स्टार्स कौन हैं! उससे कोई फ़ायदा नहीं होता है। यदि कहानी खराब हो तो, इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। इसीलिए कहानी अच्छी होनी चाहिए।

Q. विद्या बालन ने इंटरव्यू में कहा कि 'मेल एक्टर्स की तुलना में फीमेल एक्टर्स के लिए यह बेस्ट समय है'। आप इस टिप्पणी से कितने सहमत हैं?
नहीं, मैं इससे सहमत नहीं हूं। मुझे लगता है कि ये हर कलाकार के लिए बहुत एक्साइटिंग टाइम है, चाहे वो मेल एक्टर हो या फीमेल एक्टर। बहुत अच्छा काम किया जा रहा है, बहुत अच्छी कहानियां लिखी जा रही हैं और बहुत अच्छी फिल्में बनाई जा रही हैं। पिछले दो सालों में मैंने ब्रीद, लूडो, बिग बुल, बॉब बिस्वास और अब दसवीं की हैं.. सभी फिल्में एक दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। इसीलिए मुझे लगता है कि यह सभी के लिए शानदार समय है।
Q. फीमेल एक्टर्स की बात करें तो, यामी गौतम और निमरत कौर के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
दोनों बहुत ही शानदार कलाकार हैं, बहुत ही प्रोफेशनल, काम के प्रति गंभीर। उनके साथ काम करके मुझे अच्छा लगा। मुझे लगता है कि अपने अभिनय पर उनका कमांड इतना बेहतरीन है कि उससे मेरा काम भी बेहतर हो गया। मैं लकी हूं। उन्होंने फिल्म में बहुत जबरदस्त काम किया है।

Q. आप अपने करियर में कई कॉमेडी फिल्मों का हिस्सा रहे हैं। आपको लगता है कि हिंदी फिल्मों में कॉमेडी लेखन में बदलाव या एक शिफ्ट आया है?
मुझे नहीं लगता है कि ज्यादा कोई बदलाव आया है। 70-80 के दशक में आई ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्में देख लो, वो सिचुएशनल कॉमेडी होती थी। हर तरह की कॉमेडी फिल्में बनती हैं, निर्भर करता है कि आप क्या बना रहे हैं। फिजिकल कॉमेडी होती है, स्लैप्स्टिक, सोशल, सिचुएशनल.. हर तरह की कॉमेडी.. तो मुझे नहीं लगता है कि कॉमेडी फिल्मों के लिखने या बनाने में कोई बदलाव आया है। बात ये है कि हर फिल्म की अपनी भाषा होती है, अपनी जरूरत होती है। जैसे कि दसवीं में हम स्लैप्स्टिक कॉमेडी नहीं कर सकते थे। फिल्म का जो माहौल है, वो उसमें सही नहीं लगता। इसीलिए मैं कहता हूं कि सबकुछ कहानी पर निर्भर करता है। हां, ओवरऑल सिनेमा की बात करें तो कुछ बदलाव आ रहा है। समय के साथ सिनेमा को बदलना ही पड़ता है क्योंकि दर्शकों के पसंद में बदलाव आता है। मेरी ही फिल्मों को देखें, आज दसवीं है, इससे पहले मेरी मनमर्जियां आई थीं, उससे पहले हाउसफुल, हैप्पी न्यू ईयर, बोल बच्चन या धूम.. तब कि फिल्में और अभी भी फिल्मों में बदलाव दिखेगा। आर्ट हमेशा बदलता रहता है।

Q. इस बदलाव को ओटीटी ने भी प्रभावित किया है!
ओटीटी से प्रभाव ये पड़ा है कि आपके बिल्कुल सामने सभी तरह का कंटेंट उपलब्ध है.. इसीलिए हमें भी पूरी तैयारी करनी पड़ेगी। मेकर्स के ऊपर अब यह दवाब है कि वो अच्छे से अच्छा कंटेंट ही परोसें। आप आज दसवीं अपने मोबाइल फोन पर भी देख सकते हैं। तो मैं क्या वजह दूं कि नहीं आप इसे थियेटर में ही जाकर देखिएगा। उसके लिए मुझे दर्शकों को कोई बहुत अच्छा कारण देगा पड़ेगा। मुझे बस यही बदलाव दिखता है। दर्शकों की पसंद आज ग्लोबल हो चुकी है। आप आज नेटफ्लिक्स या जियो सिनेमा में जाकर तमिल, तेलुगु, कन्नड़, पंजाबी, भोजपुरी, बंगाली, कोरियन, अंग्रेजी, स्पैनिश, फ्रेंच किसी भी भाषा की फिल्म देख सकते हैं। सभी कंटेंट सिर्फ एक बटन भर की दूरी पर है। लिहाजा, आज हिंदी सिनेमा उन सबसे कंपिटिशन कर रहा है। आप क्या अलग दे रहे हैं, जो दर्शक आपकी फिल्म देंखे!

Q. अमिताभ बच्चन ने दसवीं को लेकर कई ट्विट्स किये हैं, आपकी तारीफ भी की है। व्यक्तिगत तौर पर वो आपसे आपकी फिल्मों पर चर्चा करते हैं?
हां, हमेशा करते हैं। एक फैमिली के तौर पर हम एक दूसरे का काम देखते हैं, उस पर अपनी राय देते हैं, चर्चा करते हैं। हालांकि, दसवीं का अब तक उन्होंने सिर्फ ट्रेलर देखा है, अभी फिल्म नहीं देखी है। वो लखनऊ में शूटिंग कर रहे हैं। लेकिन ट्रेलर उन्हें पसंद आया है।
Q. आपने अपने करियर में रोमांटिक, एक्शन, सामाजिक, कॉमेडी.. सभी तरह की फिल्में की हैं। क्या आपने ये सोचा हुआ था कि किसी बॉक्स में नहीं बंधना है?
मैं सब तरह की फिल्में करना एन्जॉय करता हूं। मुझे लगता है कि एक एक्टर होने का सबसे दिलचस्प हिस्सा ये भी है कि आप हर दिन एक अलग व्यक्ति हो सकते हैं। ऐसे में आप हमेशा एक ही तरह की कहानी क्यों करते रहना चाहेंगे। मुझे लगता है कि उससे दर्शक भी मुझसे बोर हो जाएंगे। मैंने दरअसल कभी ऐसा सोचा ही नहीं कि किसी बॉक्स में नहीं बंधना है या कुछ। मुझे जो कहानी दिल से अच्छी लगी, मैंने वो की। अपने काम का पूरा क्रेडिट मैं सिर्फ दर्शकों को देना चाहूंगा। वो पसंद करते हैं या नापसंद करते हैं। सब उनके ऊपर निर्भर होता है कि हम अगला जो काम करेंगे, वो क्या करेंगे।

Q. एक दफा आपने कहा था कि रिफ्यूजी से पहले दो-तीन सालों तक आपने संघर्ष किया था। कई निर्देशकों ने रिजेक्ट किया था। डेब्यू के बाद, 22 सालों के करियर में रिजेक्शन का सामना करना पड़ा है?
हां, बिल्कुल। रिजेक्शन किसी भी तरह का हो सकता है। फिल्म से रिजेक्ट होना, या मनचाहा पार्ट ना मिलना, या कोई शॉट ओके नहीं होना.. यदि आप कोई सीन दे रहे हैं और निर्देशक को वो पसंद नहीं आया तो वो उसे तुरंत रिजेक्ट करते हैं। हर दिन हमें इससे गुजरना होता है। मुझे लगता है कि ये अच्छा है। ये भी आगे बढ़ने का एक तरीका है। और सभी इससे गुजरते हैं।
Q. आज के समय में रिजेक्शन को किस तरह लेते हैं?
फेल होने या रिजेक्ट होने की सबसे अच्छी बात ये है कि आपको उसे हैंडल नहीं करना होता। वो आपको मैनेज करता है। क्योंकि वो कभी आपकी च्वॉइस नहीं होती है। यदि मैं एक फिल्म बनाता हूं क्योंकि मैं चाहता हूं कि ये फिल्म चले और ज्यादा से ज्यादा लोग इस फिल्म को देंखे। अगर फिल्म नहीं चली.. इसका मतलब क्या हुआ! .. कि लोगों को फिल्म पसंद नहीं आई। तो ये कभी किसी की च्वॉइस नहीं होती इसीलिए आप उससे डील भी नहीं कर सकते। आप उस पर रिस्पॉस कैसा देते हैं, ये महत्वपूर्ण है। इस बात की चिंता न करें कि आप असफलता से कैसे निपटेंगे, इस बात की चिंता करें कि आप असफलता पर कैसे प्रतिक्रिया देंगे, क्योंकि यदि आप सकारात्मक प्रतिक्रिया देंगे, तो वह असफलता नहीं है, वह एक सीख है।

Q. सोशल मीडिया पर ट्रोलर्स को भी अक्सर आप काफी पॉजिटिवली हैंडल करते हैं।
मैं बहुत पॉजिटिव इंसान हूं। बहुत लोग मुझसे ये बोलते हैं आप ट्रोलर्स को क्यों जवाब देते हैं? मैं जवाब इसीलिए देता हूं क्योंकि मैं जानना चाहता हूं कि आपको मेरा काम क्यों पसंद नहीं आया। मेरा मानना है कि भले एक व्यक्ति को भी यदि मेरा काम पसंद ना आया हो, तो क्यों नहीं आया.. मैं ये समझना चाहता हूं। और क्या आपकी जो राय है, मैं उसे बदल सकता हूं! मेरे लिए हर दर्शक अहमियत रखता है।
Q. 22 सालों के अब तक के करियर में आपका मोटिवेशन फोर्स क्या रहा है?
मैं अपने परिवार को गौरवान्वित करना चाहता हूं.. बस।

Q. ओटीटी पर फिल्म की रिलीज से कहीं ना कहीं खुद को शुक्रवार के प्रेशर से फ्री महसूस करते हैं?
नहीं, नहीं, वो दवाब हमेशा रहेगा। आपकी फिल्म रिलीज होने वाली है, लोग उसे देखने वाले हैं, जज करने वाले हैं कि फिल्म अच्छी है या बुरी। ये समय बहुत ही दवाब भरा होता है।
Q. दसवीं के बाद किन फिल्मों में व्यस्त हैं?
दो फिल्में हैं, एक फिल्म मैंने प्रोड्यूस किया है SSS 7 और एक अन्य फिल्म है 'घूमर', जो बस खत्म ही होने वाली है।
Q. फिल्म दसवीं में आप मुख्यमंत्री बने हैं, यदि मौका मिले तो देश में कोई एक क्या बदलाव लाना चाहेंगे?
मुख्यमंत्री नहीं, लेकिन एक नागरिक के तौर पर कहूं तो काश हम अपनी सिविक सेंस में सुधार कर पाते। हमारे देश और हमारी सरकार के प्रति भी हमारी जिम्मेदारी है। हम इस बात से बहुत कंफर्टेबल हो गए हैं कि सरकार ये क्यों नहीं कर रही है हमारे लिए। जॉन एफ कैनेडी ने कहा था, "यह मत पूछो कि आपका देश आपके लिए क्या कर सकता है- पूछें कि आप अपने देश के लिए क्या कर सकते हैं।" इसलिए मुझे लगता है कि हम सिविक सेंस से शुरुआत कर सकते हैं। एक लेन में गाड़ी चलाएं, रेड लाइट मत क्रॉस करिए आप, रोड पर ना थूकें, कचड़ा कहीं भी मत फेंकिए.. यही छोटी छोटी बातें हैं, जिसे मैं बदलना चाहूंगा।