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    पाकिस्तान से अवार्ड लेने के बाद दिलीप कुमार को कहा गया था देशद्रोही, वाजपेयी जी को लिखी थी चिट्ठी

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    भारत के सबसे महान अभिनेताओं में शामिल दिलीप कुमार का 7 जुलाई की सुबह निधन हो गया और उन्हें सुपुर्द - ए - ख़ाक़ करने के बाद हर कोई केवल दिलीप साहब से जुड़ी यादों के बहाने उन्हें श्रद्धांजलि देने की कोशिश कर रहा है।

    दिलीप कुमार का जन्म, पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था और इस कारण पाकिस्तान से भी उनका काफी गहरा लगाव है। दिलीप कुमार का असली नाम यूसुफ़ खान है। लेकिन जब मशहूर अदाकारा देविका रानी ने उन्हें हिंदी फिल्मों में ब्रेक दिलवाया तो अपना स्क्रीन नाम बदलने को कहा। यूसुफ़ साहब, अभिनय के प्रेम में ऐसा डूबे कि यूसुफ़ से दिलीप हो गए।

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    एक इंटरव्यू में दिलीप कुमार से पूछा गया कि क्या कभी दिलीप पर यूसुफ या फिर यूसुफ़ पर दिलीप हावी नहीं होता है? दिलीप साहब ने जवाब देते हुए कहा - यक़ीनन दिलीप और यूसुफ़ के बीच जद्दोजहद होती रहती है। कभी यूसुफ़ दिलीप पर और कभी दिलीप यूसुफ़ पर हावी हो जाता है और ये कशमक़श चलती रहती है।

    सालों पहले की बात है

    सालों पहले की बात है

    पाकिस्तान में दिलीप कुमार का पुश्तैनी घर है और काफी सालों पहले, पाकिस्तान में दिलीप साहब को वहां के सर्वोच्च पुरस्कार से नवाज़ा गया था। दिलीप साहब ने जैसे ही इसे क़ुबूल किया उनकी देशभक्ति पर सवाल उठाए गए थे। हालांकि पहले तो दिलीप साहब को लगा कि मामला जल्दी ही रफा दफा हो जाएगा लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं।

    शिव सेना ने खड़ी कर दी मुश्किलें

    शिव सेना ने खड़ी कर दी मुश्किलें

    दिलीप कुमार को ना सिर्फ भारत में बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान भी अपने सर्वोच्च सम्मान से नवाज़ गया था और ये सम्मान लेने के बाद दिलीप कुमार को भारत में काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। खासतौर से शिव सेना ने दिलीप कुमार के लिए मुंबई में रहना ही मुश्किल कर दिया था।

    पुरस्कार को लेकर राजनीति

    पुरस्कार को लेकर राजनीति

    1998 में जब दिलीप कुमार को पाकिस्तान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान - ए - इम्तियाज़ से नवाज़ा गया था। इसके बाद भारत में दिलीप कुमार को लेकर राजनीति तगड़ी हो गई। उस समय महाराष्ट्र में शिव सेना सरकार का हिस्सा थीं और उन्होंने दिलीप कुमार के इस सम्मान का विरोध किया।

    देशभक्ति पर उठने लगे सवाल

    देशभक्ति पर उठने लगे सवाल

    इतना ही नहीं, दिलीप कुमार की देशभक्ति पर सवाल उठाए गए और उन्हें देशद्रोही तक करार दे दिया गया था। 1999 नें भारत - पाकिस्तान कारगिल युद्ध ने मामले को और पेचीदा बना दिया। पूरे देश में पाकिस्तान के खिलाफ काफी गुस्सा था और शिवसेना ने तो दिलीप कुमार के घर के बाहर धरना देना भी शुरू कर दिया था।

    अटल जी को लिखी चिट्ठी

    अटल जी को लिखी चिट्ठी

    इसके बाद दिलीप कुमार को उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से इस सम्मान को रखने या ना रखने की सलाह लेनी पड़ी। अटल बिहारी वाजपेयी ने दिलीप कुमार को ये सम्मान क़ुबूल करने की सलाह दी जिसके बाद दिलीप कुमार ने इसे वापस ना करने का फैसला किया।

     मुंबई छोड़ने को तैयार

    मुंबई छोड़ने को तैयार

    हालांकि इस दौरान वो इतने परेशान हो चुके थे कि उन्होंने दिल्ली में एक घर भी खरीद लिया था और हमेशा के लिए मुंबई छोड़ने का मन बना चुके थे।

    अटल बिहारी वाजपेयी ने यूं किया बचाव

    अटल बिहारी वाजपेयी ने यूं किया बचाव

    मामला इतना बढ़ गया था कि दिलीप कुमार को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को चिट्ठी लिखकर पूछना पड़ा था कि क्या उनका पाकिस्तान से पुरस्कार लेना देश का अहित करेगा? अगर ऐसा है तो वो तुरंत इसे लौटाने को तैयार हैं।

    दिलीप कुमार सच्चे देशभक्त

    दिलीप कुमार सच्चे देशभक्त

    इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी दिलीप साहब के बचाव में आगे आए और उन्होंने साफ कहा कि दिलीप कुमार की फिल्में, उनकी देशभक्ति के सुबूत के लिए काफी हैं। उन पर ये दबाव डालना कि वो पाकिस्तान से मिले पुरस्कार को लौटा दें गलत है। ये फैसला केवल दिलीप कुमार का होना चाहिए कि उन्हें ये सम्मान रखना है या नहीं।

    पाकिस्तान में जन्मे

    पाकिस्तान में जन्मे

    दिलीप कुमार का जन्म पाकिस्तान के किस्सा ख़वानी बाज़ार में हुआ था। उनके पिता एक ज़मीदार थे और फलों के व्यापारी थे जिनके पेशावर और देवलाली में फ़लों के बाग़ान थे।

    भागकर आ गए थे पूना

    भागकर आ गए थे पूना

    दिलीप कुमार, छोटी उम्र में ही अपने अपने घर से भागकर पूना आ गए थे। यहां पर उन्होंने एक कैंटीन में सैंडविच का स्टॉल लगाना शुरू कर दिया था और धीरे धीरे 5000 रूपये इकट्ठा कर लिए जो उस ज़माने में बहुत ज़्यादा होते थे। इतने पैसे इकट्ठा करने के बाद वो घर वापस चले गए थे।

    English summary
    Dilip Kumar was conferred with Pakistan’s highest honor after which he was called Deshdrohi and had to face protests by the Shiv Sena.
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