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बॉलीवुड की इन फिल्मी टीचर्स ने कभी दिखाई सख्ती तो कभी दोस्त की तरह अपने स्टूडेंट्स का थामा हाथ
कहा जाता है कि जिंदगी से बड़ा कोई शिक्षक नहीं होता है लेकिन जो शिक्षक जिंदगी के सही मायने सीखा दे, उससे बड़ा और कोई नहीं हो सकता है। बॉलीवुड में अक्सर जीवन को प्रेरित करती कई मुद्दों पर फिल्में बनती हैं जिनमें कोई एक किरदार ऐसा जरूर होता है जो एक टिचर की तरह आगे बढ़ना का रास्ता दिखाता है। हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में टीचर-स्टुडेंट्स के रिश्तों का जश्न मनाते हुए कई फिल्में बन चुकी हैं जिनमें कई बार टिचर अपने स्टुडेंट्स के जीवन को संवारने के लिए रात-दिन मेहनत करता है।
आइए कुछ ऐसी फिल्में और उनके बारे में जानते हैं जो आपको दिलाएंगी आपके टीचर्स की याद
तारे जमीन पर
फिल्म 'तारे जमीन पर' में आमिर खान ने एक स्पेशल टीचर 'निकुंभ सर' की भूमिका निभायी थी डिस्लेक्सिया से पीड़ित छात्र ईशान की उस समय मदद करने के लिए आगे आते हैं जब ईशान को कोई भी समझ नहीं पाता है। ईशान की बदमाशियों से उसका परिवार भी परेशान है लेकिन निकुंभ सर धैर्य के साथ इशान को सीखाते और पढ़ाते हैं। नतीजन, ईशान के अंदर छुपी प्रतिभा और भी निखरकर सामने आती है। फिल्म में 8 साल के ईशान का किरदार दर्शिल सफारी ने निभाया था।
हिचकी
फिल्म 'हिचकी' में एक साथ कई बिन्दुओं को हाइलाइट किया गया था। फिल्म में रानी मुखर्जी ने टीचर की भूमिका निभायी थी जो खुद टॉरेट सिंड्रोम से पीड़ित थी। बोलते समय ना चाहते हुए भी वह अजीब-अजीब से आवाजें निकालती थी, जिसका सभी मजाक उड़ाते थे। इस वजह से रानी को कहीं टीचर की नौकरी भी नहीं मिल पा रही थी। वहीं दूसरी तरफ एक बड़े इंग्लिश मीडियम स्कूल में पास की बस्ती में रहने वाले कुछ बच्चे पढ़ने आते हैं जो स्कूल के तौर-तरीकों से अनजान हैं। रानी के सामने स्कूल मैनेजमेंट की तरफ से एक चुनौती रखी जाती है कि अगर वह बस्ती के उन बच्चों को पढ़ा पाती हैं और वे परीक्षा में पास करते हैं तो ना सिर्फ रानी की नौकरी बचेगी बल्कि उन बच्चों को भी स्कूल में पढ़ने दिया जाएगा। फिल्म में दिखाया गया कि किस तरह रानी एक टीचर के तौर पर अपने स्टूडेंट्स का मुश्किलों में साथ देती है।
सुपर 30
फिल्म 'सुपर 30' बिहार की राजधानी पटना में अपना कोचिंग सेंटर चलाने वाले आनंद कुमार की वास्तविक कहानी पर आधारित है। फिल्म में आनंद कुमार का किरदार ऋतिक रोशन ने निभाया था। इंजीनियरिंग के एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी करवाने वाले इस कोचिंग सेंटर में सिर्फ जरूरतमंद परिवारों के बच्चों को ही पढ़ाया जाता है जिसका पूरा खर्च आनंद कुमार खुद उठाते हैं। फिल्म में आनंद कुमार के साथ-साथ बड़े-बड़े कोचिंग सेंटरों में पढ़ने वाले बच्चों से प्रतियोगिता करते सुपर 30 के बच्चों के संघर्ष को भी दिखाया गया है। अपने बच्चों के लिए ढाल बनने वाले आनंद कुमार की जान पर जब बन आती है तब सुपर 30 के बच्चों ने ढाल बनकर उनकी जान बचायी। फिल्म में दिखाया गया है कि जब टीचर अपने स्टुडेंट्स पर जान छिड़कते हैं तो स्टुडेंट्स भी हर हाल में अपने टीचर का साथ देते हैं।
3 इडियट्स
फिल्म '3 इडियट्स' में इंजीनियरिंग कॉलेज के प्रिंसिपल वीरू सहस्रबुद्धे और उनके स्टुडेंट रणछोरदास चांचड़ की कहानी को दिखाया गया था। फिल्म में वीरू सहस्रबुद्धे का किरदार बोमन इराना और रणछोरदास चांचड़ उर्फ रैंचो का किरदार आमिर खान ने निभाया था। असली घटना पर आधारित पूरी फिल्म में वीरू सहस्रबुद्धे और रैंचो के बीच शिक्षा को लेकर आपसी लड़ाई को दिखाया गया है। रैंचो जहां बिल्कुल हटकर सोचने वाला छात्र है वहीं वीरु सहस्रबुद्धे, जिसे छात्र वायरस के नाम से पुकारते हैं, बिल्कुल अनुशासन और परंपरागत शिक्षा का समर्थन करता है। लेकिन फिल्म के अंत में कुछ ऐसा होता है जिसके बाद सबको समझ में आता है कि असली में यह शिक्षा को लेकर दोनों की लड़ाई नहीं बल्कि टीचर-स्टुडेंट का आपसी प्यार है।
मुन्नाभाई एमबीबीएस
फिल्म 'मुन्ना भाई एमबीबीएस' में स्टूडेंट का किरदार संजय दत्त ने निभाया था जो एक गुंडा है लेकिन अपने माता-पिता की खुशी के लिए डॉक्टर बनना चाहता है। इसके लिए वह परीक्षा में चीटिंग करने के नये-नये तरीके से लेकर किसी को किडनैप करने तक के सारे हथकंडे अपनाता है। वहीं मेडिकल कॉलेज का डीन डॉ. अस्थाना (बोमन ईरानी) का सख्त डॉक्टर है। इस कॉमेडी फिल्म में दिखाया जाता है कि जब टिचर और स्टुडेंट धीरे-धीरे एक-दूसरे को समझने लगते हैं तो वह किसी चमत्कार से कम नहीं होता है।
चक दे इंडिया
फिल्म 'चक दे इंडिया' में शाहरुख खान ने महिला हॉकी टीम के कोच कबीर खान का किरदार निभाया था। कबीर खान खुद एक हॉकी खिलाड़ी है लेकिन एक गलतफहमी की वजह से उसे देशद्रोही का टैग दे दिया जाता है। इसके बाद वह अपने घर से दूर होने पर मजबूर हो जाता है। 7 साल बाद वह महिला हॉकी वर्ल्ड कप के दौरान भारतीय टीम का कोच बनकर वापस लौटता तो है लेकिन उसकी टीम से किसी को भी कोई उम्मीद नहीं होती है। लोग महिला हॉकी टीम को शैतानों की टोली मानते हैं। टीम की कोई खिलाड़ी इगो में रहती है तो कोई खेल पर ध्यान ना देकर अपने निजी जीवन में व्यस्त रहती है। पूरी टीम बिखड़ी होती है। कबीर खान कैसे इन खिलाड़ियों को एक धागे में पिरोकर टीम को वर्ल्ड कप जीतवाता है, वह देखना काफी दिलचस्प था। शाहरुख खान का 70 मिनट वाला स्पीच काफी इंस्पायरिंग रहा। फिल्म में दिखाया गया कि अपने बिगड़ैल स्टुडेंट्स को सुधारने के लिए टीचर प्यार, सख्ती के साथ-साथ कभी-कभी कुछ तरकिबें भी अपनाता है।