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    रोटी, कपडा, मकान लेकिन इज्जत के बिना सब खोखला: सत्मेव जयते

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    Satyamev Jayate
    जिंदगी सिर्फ रोटी कपडा और मकान से ही नहीं चलती जिंदगी जीने के लिए जरुरत होती है समाज की नजरों में अपनी इज्जत की। लेकिन गांवों और छोटे शहरों में आज भी दलित समाज को हर कोइ नीचा मानता है उनकी इज्जत तो दूर कोई उन्हें छूना तक नहीं चाहता। कुछ इसी समाजिक मानसिकता को जाहिर किया आमिर ने अपने शो सत्यमेव जयते के 8 जुलाई के एपिसोड में।

    इस एपिसोड में आमिर की पहली मेहमान थी डॉक्टर कौशल पवार जो कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में संस्कृत की अध्यापिका हैं। डॉक्टर कौशल ने कहा कि वो हरियाणा के एक गांव के एक दलित परिवार से हैं। और बचपन से ही उन्होने एक दलित होने के चलते काफी कुछ सहा। लेकिन उनके पिता ने काफी मुशकिलों के बावजूद उन्हें पढ़ा लिखा कर इस मकाम पर लाया जहां वो एक सम्माननीय जीवन जी सकती हैं। संस्कृत में पीएचडी करने के बाद डॉक्टर कौशल आज दिल्ली यूनिवर्सिटी में संस्कृत की अध्यापिका के तौर पर काम कर रही हैं।

    ये तो थी आम इंसान की कहानी लेकिन समाज के बड़े वर्गों यहां तक की आइएएस अधिकारियों के बीच भी इस छुआ छूत की पकड़ काफी गहरी है। आमिर के दूसरे मेहमान थे आइएएस बलवंत सिंह जिन्होने इसी छुआ छूत के चलते सन् 1962 में इस पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होने बताया कि आइएएस सिर्फ उनके लिए रोटी खाने का साधन था उनके आत्मसम्मान का नहीं।

    सिर्फ हिन्दुओं में ही नहीं बल्कि मुसलमानों, इसाईयों और सिक्खों का मतबा भी इस ऊंची नीची जाति के बीच् बंटा हुआ हैं। खाना खाने से लेकर मरने के बाद दफनाए जाने तक में ऊंची नीची जाति का भेदभाव रखा जाता है।

    फिल्म निर्देशक स्टेरलिन ने इस समस्या के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि आज भी हर जगर हर एक मतबे में जाति पृथा मौजूद है। उन्होने एक फिल्म भी बनाई है जो समाज की इस बुराई के बारे में काफी तथ्यों को जाहिर करती है। उदाहरण के तौर पर उन्होने बताया कि आज भी बडे से बड़े अखबार में जब आप वैवाहिक विज्ञापन देखेंगे तो उसमें भी हर जाति के लिए अलग कॉलम है। कहने का तात्पर्य यह है कि चाहे आप इंजीनियर हो या डॉक्टर हर किसी को अपनी जाति से ही प्यार है।

    आमिर के इस एपिसोड में जस्टिस चंद्रशेखऱ भी मौजूद थे। उन्होने कहा मैं परिचय के खिलाफ हूं मेरे परिचय पर कई लेबल लगे हैं। हिन्दू होने का. ब्राह्मण होने का, धर्मविचारक का। जाति के बारे में मैं सिर्फ यही कहना चाहता हूं कि जो कभी नहीं जाती उसे जाति कहते हैं। हमारा संविंधान धर्मनिरपेक्ष है। संविंधान कहता है कि हम सभी भारत के नागरिक हैं महाराष्ट्र के या ब्राहम्ण के नहीं। आज तक मुझे कहीं भी कोई कोरा नागरिक नहीं मिला। हर कोई जाति में उलझा हुआ है। साथ ही उन्होने शो के दौरान मौजूद सभी नवयुवकों से कहा कि इस पृथा को समाप्त करन के लिए उन्हें ही आगे आना होगा।

    अन्त में दिल्ली के सफाइ कर्मचारी आंदोलन से जुड़े कार्यकर्ता बेजवाड़ा विल्सन ने आकर अपनी जिंदगी और अपने परिवार से जुड़े कई ऐसे वाक्ये सुनाए जिन्हें सुनकर हर कोई आश्यचर्यचकित था कि आज भी हामारे भारत मं नीची जाति के साथ इस तरह का व्यवहार होता है। उन्होने ये भी कहा कि हमारे रेलवे में सबसे ज्यादा सफाई कर्मचारियों को रखा जाता है। जबकि सरकार द्वारा इनके पुनर्वास के लिए कितने कानून बनाए गए हैं।

    कहते हैं कि हम सभी एक हैं लेकिन आज भी भारत के कोने कोने में जाति पृथा मौजूद है और ना चाहकर भी कई लोग इस अमानवीय जिंदगी को जीने के लिए मजबूर हैं। आज भी भारत देश में लाखों सफाई कर्मचारी मौजूद हैं। अब जरुरत है इस बुराइ को जड़ से निकाल फेंकने का और इस पहल को करने वाला और कोई नहीं बल्कि आप या हम होगें।

    English summary
    Are all men truly born equal? Not really if we look at the way people are being discriminated based on their caste and creed in our country. Today’s Aamir episode of Satyamev Jayate based on cast system.
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