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फिल्म समीक्षा: विक्ट्री ने किया निराश!
कलाकार: हरमन बावेजा, अमृता राव, अनुपम खेर, गुलशन ग्रोवर
अजीतपाल मंगत द्धारा निर्देशित फिल्म विक्ट्री कुछ खास करने में असफल रही है। यह उनकी पहली फिल्म थी लेकिन फिल्म को देखकर लगता है कि सारा दारोमदार अंतरराष्ट्रिय क्रिकेट खिलाडि़यों के कंधे पर डाल दिया गया। है।
फिल्म की कहानी कुछ खास नही है। खेल की थीम पर बनने वाली फिल्मों में कुछ बाते सामान्य रहती है जैसे खिलाड़ी के जीवन का चढाव, उतराव और फिर चढाव। उदाहरण के लिए कुछ साल पहले आई फिल्म 'इकबाल' व 'चक दे इंडिया' में देख सकते है।
कहानी: जैसलमेर का लड़का विजय शेखावत ( हरमन बावेजा) काफी संघर्ष के बाद भारतीय क्रिकेट टीम में जगह बनाने में कामयाब होता है। उसके पिता ( अनुपम खेर) चाहते है कि वो एक बहुत बड़ा क्रिकेटर बने।
विजय क्रिकेट में बेहतर पारी खेलता है जिससे उसके प्रशंसको की संख्या में वृद्धि होने के साथ कई मंहगे प्रचार के मौके मिलते है। उसकी सफलता का असर उसके व्यक्तिगत जीवन पर पड़ता है। उसके गांव में उसकी प्रेमिका ( अमृता राव) अब भी उसका इंतजार कर रही है, जिसे वह भूल जाता है।
सफलता और उच्च समाज में पहुंचकर विजय अपने आप को भूल जाता है। उसका प्रदर्शन खराब होने लगता है नतीजा उसे टीम से बाहर कर दिया जाता है। इस घटना से उसके पिता को दिल का दौरा पड़ता है।
तब विजय अपनी गलतियों को सुधारने का संकल्प लेता है और टीम में वापस जाने के लिए मेहनत शुरू करता है। एक महत्वपूर्ण मैच में सिर में चोट लगने के बावजूद भारत को जीता देता है।
फिल्म को देखत वक्त किसी भी तरह का रोमांच पैदा नही होता है। फिल्म की पटकथा पर बेहतर काम नही किया गया है। केवल बड़े अंतरराष्ट्रिय स्तर के खिलाडि़यों को ले लेने से ही काम नही चल जाता है। हालांकि हरमन ने मेहनत करने की कोशिश की है लेकिन अच्छी पटकथा के अभाव में वे कुछ खास नही कर पाते है।
फिल्म का निर्देशन भी बढिया नही है। अमृता राव ने अपना रोल निभाया है हालांकि उनके करने के लिए कुछ खास नही था। अनुपम खेर बाप की भूमिका में जंचे है।
फिल्म का संगीत कुछ खास नही है। फिल्म सभी मायनों में असफल रही है। बेहतर है कि फिल्म देखने के बजाय भारत और श्रीलंका के बीच चल रहे असली मैच को देखा जाए।
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