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    'अनपॉज्ड: नया सफर' रिव्यू- महामारी और लॉकडाउन के बीच प्यार, उम्मीद और भरोसे की दिल छूने वाली कहानियां

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    Rating:
    3.5/5

    निर्देशक- रुचिर अरुण, नूपुर अस्थाना, अयप्पा केएम, शिखा माकन, नागराज मंजुले
    कलाकार- श्रेया धनवंतरी, प्रियांशु पेन्युलि, साकिब सलीम, आशीष वर्मा, सैम मोहन, नीना कुलकर्णी, गीतांजलि कुलकर्णी, अर्जुन करचेंड, हनुमंत भंडारी आदि
    प्लेटफॉर्म- अमेज़न प्राइम वीडियो

    पिछले दो सालों में कोविड काल ने हमारी जिंदगी को हर तरह से बदल दिया है। लॉकडाउन के दौरान घर के बाहर रहे फंटलाइन वर्कर्स और घर की चारदीवारी में बंद लोगों की जिंदगी भावनाओं के किन बवंडर से गुजर रही है, यह दिखाया गया है इन पांच फिल्मों में।

    'अनपॉज्ड: नया सफर' एक एंथोलॉजी यानि की संकलन है, जहां पांच अलग अलग कहानियां कोविड काल के दौरान इर्द गिर्द घट रही घटनाओं को एक सकारात्मकता के साथ दिखाती है। नए साल में यह एंथोलॉजी हमें एक नई शुरुआत करने की बात कहती है।

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    इन कहानियों में प्यार, भय, दोस्ती, भरोसा और क्षमा का भाव है। खासकर नागराज मंजुले की 'वैकुंठ' और शिखा निर्देशित 'गोंद के लड्डू' इस एंथोलॉजी को काफी बहुत खूबसूरत और प्रभावी बनाती है। 'अनपॉज्ड: नया सफर' 21 जनवरी 2022 से अमेज़न प्राइम वीडियो पर स्ट्रीमिंग के लिए उपलब्ध है।

    पहली फिल्म- द कपल

    पहली फिल्म- द कपल

    कहानी शुरु होती है आकृति (श्रेया धनवंतरी) और डिप्पी (प्रियांशु पेन्युलि) से, जो एक शादीशुदा जोड़ा है और लॉकडाउन के दिनों में वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं। साथ खाना बनाते, घर के काम में भागेदारी देते और लैपटॉप पर घंटों बैठे इस कपल की जिंदगी में मोड़ तब आता है जब आकृति को अचानक नौकरी से निकाल दिया जाता है। करियर और रूटीन में अचानक से आए इस बदलाव की वजह से पति- पत्नी के रिश्ते में आया बदलाव किस दिशा में जाता है, इसी से इर्द- गिर्द घूमती है ये 30 मिनट की फिल्म।

    कोविड के दौरान कई लोगों को अपनी नौकरी से हाथे धोने पड़े। कई कंपनियों ने रातों रात लोगों को काम से निकाल दिया। नूपुर अस्थाना के निर्देशन में बनी इस फिल्म में इसी के प्रभाव को दिखाया गया है। लोग किस तरह प्रोफेशनल सेटबैक की वजह से भावनात्मक उथल पुथल से गुजर रहे हैं, ये दर्शाने की कोशिश की गई है। फिल्म की कहानी मजबूती से बंधी हुई है। नूपुर अस्थाना और समीना मोटलेकर द्वारा लिखित पटकथा में एक सादगी दिखती है। अभिनय की बात करें तो श्रेया धनवंतरी और प्रियांशु पेन्युलि ने बढ़िया प्रदर्शन किया है। रिश्तों में प्यार, तनाव, उधेड़बुन, उम्मीद को दोनों ने बखूबी दिखाया है।

    दूसरी फिल्म- वॉर रूम

    दूसरी फिल्म- वॉर रूम

    महामारी के दौरान फ्रंटलाइन वर्कर्स ने किस तरह प्रतिकूल परिस्थियों का सामना किया और तमाम जोखिमों के बीच किस तरह वो हमारे लिए खड़े रहे, यही दिखाने की कोशिश करती है अयप्पा केएम निर्देशित फिल्म 'वॉर रूम'। संगीता वाघमारे (गीतांजलि कुलकर्णी) एक प्राइमरी टीचर है, जो लॉकडाउन के दौरान कोविड हेल्पलाइन स्टेशन संभाल रही हैं। वह कोविड से संक्रमित लोगों को बेड की उपलब्धता के बारे में जानकारी देती हैं। हर दिन हजारों फोन कॉल संभालती हैं। लेकिन एक दिन उनके हेल्पलाइन पर एक ऐसा कॉल आता है.. जो उनकी जिंदगी की सबसे दर्दनाक पल को उजागर कर जाता है।

    वॉर रूम की कहानी रोमांचक लगती है, लेकिन प्रभाव छोड़ने में सफल नहीं होती। कहीं कुछ अधूरा सा लगता है। बहरहाल, गीतांजलि कुलकर्णी अपने किरदार में दमदार लगी हैं।

    तीसरी फिल्म- तीन तिगाड़ा

    तीसरी फिल्म- तीन तिगाड़ा

    ये कहानी है तीन चोरों की.. जो चोरी का माल लेकर एक फैक्ट्री में छिपे हैं या यूं कह लें कि फंसे हैं। वो लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार करते हैं, ताकि माल बेचकर पैसे बांटें और अपनी अपनी जिंदगी में वापस लौट जाएं। लेकिन उनके लिए ये समय इतना आसान नहीं होता। एक दूसरे के साथ कलेश करने से लेकर भाईचारे तक उनका सफर दिलचस्प है। साकिब सलीम, आशीष वर्मा और सैम मोहन की तिकड़ी इस कहानी का सबसे मजबूत पक्ष है। रुचिर अरुण निर्देशित इस कहानी में कहीं कहीं दोहराव सा लगता है, लेकिन क्लाईमैक्स तक जाते जाते यह प्रभाव छोड़ती है।

    चौथी फिल्म- गोंद के लड्डू

    चौथी फिल्म- गोंद के लड्डू

    लॉकडाउन की वजह से सुशीला त्रिपाठी (नीना कुलकर्णी) अपनी बेटी के पास नहीं जा पा रही हैं, जो नई नई मां बनी है। नानी का दिल अपने नाती को देखने के लिए बेसब्र है, लेकिन कोरोना ने सभी को चारदीवारी में बांधकर रखा है। ऐसे में वो बेटी के लिए अपनी हाथों से गोंद के लड्डू बनाती हैं और ऑनलाइन कूरियर करने की सोचती हैं। जो मां आज तक तकनीक से दूर थीं.. उनके लिए ऑनलाइन कूरियर करना भी एक बड़ा संघर्ष होता है, कई उलट पलट के बाद.. आखिरकार वो सफल रहती हैं।

    मां के प्यार और लगाव के साथ साथ निर्देशक दूसरी ओर कूरियर सर्विस वालों की जिंदगी की झलक भी दिखाते हैं। लॉकडाउन में सभी ने किसी ना किसी रूप में दूसरे को प्रभावित किया है। शिखा माकन के निर्देशन में बनी ये फिल्म सीधे दिल छूती है। फिल्म की पटकथा बेहद कसी हुई है, जिसे खुद शिखा माकन ने ही लिखा है। नीना कुलकर्णी, दर्शना राजेंद्रन और लक्षवीर सिंह सरन तीनों ने अपने किरदारों के साथ न्याय किया है।

    पांचवी फिल्म- वैकुंठ

    पांचवी फिल्म- वैकुंठ

    "यहां अमीर और गरीब का बिस्तर एक ही होता है".. श्मशान की दीवार पर लिखी ये लाइन बार बार ध्यान आकर्षिक करती है। वहीं काम करता है विकास (नागराज मंजुले), जो हर दिन शवों को श्मशान में आते, जलते देख भावना शून्य हो चुका है। मकान मालिक द्वारा घर से निकाले जाने के बाद वह अपने बेटे के साथ श्मशान में ही रहता है। इस दौरान पिता और बेटे के बीच का रिश्ता दिल छूने वाला है। हर दिन एंबुलेंस आता और साथ लाता शव.. कोरोना संक्रमण की वजह से मृत लोगों की। इन शवों को देखकर उसके मन के अंदर में छिपा भय भी आंखों में झलक उठता। उसके वृद्ध पिता भी कोरोना की वजह से अस्पताल में भर्ती थे। हर दिन जलते शवों के बीच रहकर भी विकास किस तरह अपने मन में सकारात्मकता बनाए रखता, इसी के इर्द गिर्द घूमती है फिल्म।

    कोरोना जब अपने चरम पर थी, देश में हर दिन लाखों लोग मर रहे थे, श्मशान में एक साथ शव जलाए जा रहे थे। इस दर्दनाक मंजर को कुछ लोगों ने अखबारों में पढ़ा, कुछ ने टेलीविजन पर देखा.. तो कुछ इन परिस्थितियों से गुजरे। लेकिन उनका हाल क्या था, जो इन श्मशान में काम करते हैं। निर्देशक नागराज मंजुले श्मशान के दृश्यों को दर्शकों के सामने लेकर आए हैं, जो दिल दहला देने वाला है। ये फिल्म आशा और निराशा के बीच एक अनूठे संतुलन को दिखाती है। हर्षवर्धन वाघधरे का कैमरा वर्क प्रभावशाली है। कुतुब ईनामदार की एडिटिंग कहानी को एक मजबूती देती है।

    देंखे या ना देंखे

    देंखे या ना देंखे

    महामारी और लॉकडाउन के इर्द-गिर्द बुनी गई इन 5 अलग-अलग कहानियों के साथ, यह एंथोलॉजी याद दिलाती है कि अंधेरी रात के बाद सुबह का उजाला भी होता है। प्यार, डर, दोस्ती, माफी और भरोसे को समेटे 'अनपॉज्ड: नया सफर' दिखाती है कि किस तरह महामारी ने हमें अंदर तक बदल दिया है। इसने हमारी जिंदगी और भावनाओं को अधिक मूल्यवान बना दिया है। फिल्मीबीट की ओर से 'अनपॉज्ड: नया सफर' को 3.5 स्टार।

    English summary
    Unpaused: Naya Safar review- With 5 different stories weaved around pandemic and lockdown, this anthology is a heartfelt reminder that there is always light at the end of dark tunnel.
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