Just In
- 44 min ago
सोहा अली खान - कुणाल खेमू ने शादी की सालगिरह पर शेयर की बेहद क्यूट तस्वीरें
- 1 hr ago
वरुण धवन ने शेयर की नताशा दलाल के साथ मेंहदी सेरेमनी की PHOTOS, पत्नी को KISS करते नजर आए
- 2 hrs ago
वरुण धवन और नताशा दलाल की पुरानी फोटो हुई वायरल, तब और अब में कितना बदल गया लुक- पहचानना मुश्किल
- 3 hrs ago
करीना कपूर खान ने बेबी बंप को फ्लॉन्ट करते हुए किया योगा, सोशल मीडिया पर तस्वीरें वायरल
Don't Miss!
- Sports
ISL 2020-21: इस्मा की पेनाल्टी ने मुंबई को हार से बचाया, चेन्नइयन के खिलाफ खेला ड्रॉ
- News
पद्म पुरस्कारों का ऐलान, 10 लोगों को मिला पद्म भूषण अवॉर्ड, देखिए पूरी लिस्ट
- Automobiles
Green Tax On Old Vehicles: पुराने वाहनों पर अब लगेगा ग्रीन टैक्स, स्क्रैपेज पॉलिसी को मिली मंजूरी
- Education
Republic Day 2021 Speech: 72वें गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद का भाषण
- Finance
Shares : सिर्फ 3 से 5 हफ्तों में हो जाएंगे मालामाल, जानिए कहां लगाएं पैसा
- Lifestyle
जीभ से खून निकलने के पीछे हो सकती हैं ये वजह, जाने कारण और उपाय
- Technology
OnePlus Nord का प्री-ऑर्डर अमेज़न पर 15 जून से होगी शुरू; इसको खरीदने वाले पहले बने
- Travel
ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का संगम : पठानकोट
तोरबाज़ फिल्म रिव्यू: अच्छे विषय पर बनी बोझिल फिल्म- क्रिकेट और संजय दत्त भी नहीं बचा पाए
निर्देशक- गिरीश मलिक
स्टारकास्ट- संजय दत्त, नरगिस फ़ाखरी, राहुल देव
प्लैटफॉर्म- नेटफ्लिक्स
अफगानिस्तान के रिफ्यूजी कैंप में सेना का एक पूर्व डॉक्टर बच्चों को क्रिकेट के जरीए खुशी देना चाहता है.. पर वह जल्द ही समझ जाता है कि बात सिर्फ खेल की नहीं रह गई है। जिस देश में बच्चों ने किताबें और बल्ले से ज्यादा आतंकवाद को देखा है, वहां क्रिकेट को बढ़ावा देना असंभव सा टास्क है।
गिरिश मलिक के निर्देशन में बनी फिल्म 'तोरबाज़' उम्मीद की कहानी है। उम्मीद.. सुकुन भरी जिंदगी की, इंसानियत की, ख्वाबों को पूरा करने की, एक बेहतर कल की।
अफगानिस्तान में हो रहे आतंकी गतिविधियों के इर्द गिर्द घूमती इस फिल्म का विषय बढ़िया है। लेकिन कहानी निर्देशन में मार खा जाती है।
क्रिकेट की दुनिया में अफगानिस्तान की टीम जब अचानक से उभरकर आई थी तो पूरी दुनिया हैरान रह गई थी। आज वह ICC के मेंबर भी हैं। लेकिन सालों से आतंकवाद से जूझ रहे इस देश के खिलाड़ियों के लिए यह सफर आसान नहीं रहा होगा। अपने फिल्म के माध्यम से निर्देशक रिफ्यूजी कैंप में रह रहे बच्चों की जिंदगी से रूबरू होने का मौका देते हैं।

फिल्म की कहानी
पूर्व आर्मी डॉक्टर (नासीर खान) भारत से अफगानिस्तान वापस आता है, जहां आतंकवाद का साया इस कदर गहराया हुआ है कि लोगों के जुबान पर हर दिन मरने वालों के आंकड़े भी रटे हुए हैं। इस बार आतंकवादियों के निशाने पर खासकर छोटे बच्चे हैं, जिन्हें सुसाइड बम बनाकर बड़ी साजिशों को अंजाम दिया जाता है। नासिर ने अफगानिस्तान में ही एक बम ब्लास्ट में अपने परिवार को खोया था। वह यहां एक एनजीओ से जुड़ते हैं, जो उसकी पत्नी के साथ मिलकर आएशा (नरगिस फ़ाखरी) ने शुरु किया था। ये एनजीओ रिफ्यूजी कैंप के लिए काम करता है। कैंप में रह रहे बच्चों की जिंदगी उसे बेचैन करती है। वह नहीं चाहता कि किसी बच्चे को बेबसी में सुसाइड बम बनना पड़े या आतंकवाद के रास्ते जाना पड़े। बच्चों को जिंदगी में एक लक्ष्य और उम्मीद देने के लिए नासिर क्रिकेट का सहारा लेता है। वह रिफ्यूजी कैंप के बच्चों को लेकर एक टीम बनाता है और नाम रखता है- 'तोरबाज़'। लेकिन क्या बच्चों के हाथों से बंदूकें हटाकर बल्ला थमाना, उन्हें एक उम्मीद देना नासिर के लिए एक आसान टास्क होगा?

निर्देशन
तोरबाज़ दिल को छूने वाली कहानी है जो आंकतवाद से जूझ रहे लोगों और रिफ्यूजी कैंप्स में रह रहे बच्चों की मनोदशा दिखाते हैं। किस तरह आंतकवादियों द्वारा बच्चों का ब्रेनवाश किया जाता है, उसका उन पर और उनके परिवार पर क्या प्रभाव पड़ता है। यह सब फिल्म में दिखाया गया है। लेकिन गिरिश मलिक द्वारा लिखी पटकथा काफी कमजोर है और दो घंटों तक बांधे रखने में असफल रहती है। निर्देशक इस संवेदनशील कहानी के साथ भी प्रभावशाली नहीं रहे। इसकी एक बड़ी वजह लंबाई भी है। शुरुआती एक घंटे फिल्म सिर्फ कहानी स्थापित करने में लेती है। कहानी बेहद धीमी गति से आगे बढ़ती है। वहीं, सेकेंड हॉफ में जाकर कहानी तेजी पकड़ती है, लेकिन क्लाईमैक्स में फिर ताश के पत्ते की तरह बिखर जाती है।

अभिनय
नसीर खान के किरदार में संजय दत्त जंचे हैं। बच्चों के साथ उनकी तालमेल अच्छी लगी है.. खासकर भावुक दृश्यों में। हालांकि बतौर क्रिकेट कोच कुछ कमी रही। वहीं, जब फिल्म में संजय दत्त हों तो कुछ एक्शन सीन्स की भी उम्मीद रहती है, लेकिन यहां निराशा मिलती है। छोटे से रोल में नरगिस फ़ाखरी खोई सी लगती हैं। आतंकवादी अब्दुल कज़र के किरदार में राहुल देव के टैलेंट को भी निर्देशक ने पूरी तरह से गंवाया है। खैर, फिल्म के सबसे मजबूत पक्ष बच्चे हैं.. जो 'तोरबाज़' टीम का हिस्सा हैं.. खासकर एशान जावेद मलिक, रेहान शेख और रूद्र सोनी।

तकनीकि पक्ष
अच्छे विषय और कुछ बढ़िया परर्फोमेंस के साथ साथ फिल्म की सिनेमेटोग्राफी भी अच्छी है। तोरबाज़ की शूटिंग अफगानिस्तान और बिश्केक में हुई है और हीरू केशवानी ने अपने कैमरे से दोनों जगहों को बखूबी कैप्चर किया है। बहरहाल, फिल्म का सबसे कमजोर पक्ष जो है, वह है एडिटिंग, जिसे किया है दिलीप देव ने। फिल्म में कई ऐसे दृश्य हैं, जो कहानी के लिए कोई अहमियत नहीं रखते.. बल्कि सिर्फ उसे बोझिल बनाते हैं।

संगीत
बिक्रम घोष द्वारा दिया गया संगीत ढूंसा गया लगता है। सामने चल रही बम ब्लास्ट और आतंकवादी गतिविधियों के दृश्यों के बीच बैकग्रांउड में दिये गाने बेवजह लगते हैं।

क्या अच्छा, क्या बुरा
फिल्म का विषय और उसके पीछे की सोच अच्छी है.. पॉजिटिव है। आकंतवाद और क्रिकेट का साथ लाना भी दिलचस्प है। लेकिन स्क्रीन तक आते आते फिल्म की आत्मा नहीं रह जाती है। 'तोरबाज' को दो घंटों तक जो देखने लायक बनाता है, वह हैं इसके बच्चे।

देंखे या ना देंखे
अच्छे विषय पर बनी बोझिल फिल्म है तोरबाज़.. लिहाजा, इसमें दो घंटें देना समय की बर्बादी होगी। संजय दत्त के फैन हैं तो एक दफा देख डालिये।
दुर्गामती फिल्म रिव्यू: राजनीतिक भ्रष्टाचार के ताने बाने में उलझी हॉरर- संस्पेंस कहानी, बेदम