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शार्टकट: निर्देशक ने मारा शार्टकट
निर्देशक : नीरज वोरा
कलाकार: अक्षय खन्ना, अरशद वारसी, अमृता राव, सिद्धार्थ रंडेरिया, चंकी पांडे
शेखर (अक्षय खन्ना) एक मेहनती सहायक निर्देशक है वह खुद अपनी एक फिल्म बनाना चाहता है। वह मुम्बई के एक चाल में रहता है। चाल में रहने वाले सभी लोग यहां तक कि चाल का मालिक कांतिभाई (सिद्धार्थ रंडेरिया) भी शेखर को बहुत मानते है, क्योकि वह बहूत सीधा साधा और ईमानदार है। प्रसिद्ध अभिनेत्री मानसी (अमृता राव) शेखर से प्यार करती है लेकिन मानसी के लालची माता पिता इस रिश्ते के खिलाफ है।
शेखर किसी तरह से एक अच्छी पटकथा लिखने में कामयाब हो जाता है जिससे उसे एक अच्छा ब्रेक मिलने का चांस है। इसी बीच एक संघर्षशील हीरो राजू (अरशद वारसी) उसके घर पर रहने के लिए आ जाता है क्योंकि उसका मकान मालिक उसे निकाल देता है।
राजू को एक फिल्म निर्माता साइन करने के लिए तैयार हो जाता है लेकिन शर्त यह रखता है कि वह एक अच्छी पटकथा लाकर दे। इस बीच शेखर की पटकथा पर भी एक निर्माता पैसा लगाने के लिए तैयार हो जाता है और उसे साइनिंग अमाउंट भी दे देता है।
राजू लालच में आकर शेखर की पटकथा को चुराकर निर्माता तोलानी (टिकू तलसानियां) को बेच देता है। राजू के बुरे अभिनय से दुखी होकर तोलानी एक अभिनय अध्यापक गुरू कपूर (चंकी पांडे) को बुलाता है। राजू अपनी बातों से गुरू को प्रभावित करके अपने अभिनय गुरू के साथ साथ बिजनेस मैनेजर भी बना लेता है, यानि वो हमेशा शार्टकट से सफलता हासिल करने में लगा रहता है।
राजू की फिल्म का ट्रायल देखकर शेखर को पता चल जाता है कि यह उसकी पटकथा है जो चोरी हो गई थी। वह तुलानी पर केस करने की धमकी देता है। तुलानी शेखर से गिड़गिड़ाता है कि केस न करें क्योंकि उसकी पिछली सभी फिल्में फ्लाप हो गई है। इस बीच मानसी अपना घर छोड़कर शेखर से शादी करके रहने उसके साथ रहने लगती है। शेखर राजू के धोखे से काफी निराशा में रहने लगता है।
राजू अपनी पहली ही फिल्म से सुपरहिट हीरो बन जाता है जबकि शेखर अभी तक धोखे से उबर नही पाया है। वह अपने काम में ध्यान नही दे पाता है। शेखर काफी आर्थिक संकट में चला जाता है। उसके और मानसी के रिश्ते काफी खराब हो जाते है मानसी उसे छोड़कर चली जाती है।
तब शेखर अपने आपको मजबूत करता है और कड़ी मेहनत से फर्श से अर्श तक पहंचता है जिसमें उसके चाल के लोग और मकान मालिक उसका साथ देते है। शेखर राजू को भी सबक सीखाता है, मानसी को घर वापस लाने में कामयाब होता है।
जहां फिल्म के प्रमोज देखकर लगता है कि यह कामेडी फिल्म है वैसा फिल्म को देखकर नही लगेगा। नीरज वोरा ने अदाकारों के संवाद अदायगी पर ध्यान नही दिया है सबके संवाद एकदम सपाट चलते है। फिल्म का पहला हाफ ठीक लगेगा लेकिन उसके बाद अंत में जाकर ध्यान खींचती है। शंकर एहसान लाय का संगीत साधारण है और संजय दत्त और अनिल कपूर पर फिल्माया आइटम सांग जबरदस्ती ठूंसा हुआ लगता है।
अक्षय खन्ना ने खुद को दोहराया है, वहीं अरशद काफी जंचे है। अमृता का सेक्सी लुक लोगो को भाएगा। कुल मिलाकर कहा जाए तो एक अच्छी कहानी थी तो बेहतर ढंग से पेश की जा सकती थी लेकिन मौका गंवा दिया गया यानि निर्देशक ने खुद ही शार्टकट मार लिया।