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    लूप लपेटा फिल्म रिव्यू- इस रीमेक को अपने अभिनय से बांधकर रखते हैं तापसी और ताहिर

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    Rating:
    3.0/5

    निर्देशक- आकाश भाटिया
    कहानी, पटकथा और संवाद- आकाश भाटिया, केतन पेडगांवकर, विनय छवल, अर्णव नंदुरी
    कलाकार- तापसी पन्नू, ताहिर राज भसीन
    प्लेटफार्म- नेटफ्लिक्स

    "सिर्फ एक लम्हा लगता है कि लाइफ बदलने में.. और उस लम्हे में आप क्या करते हो, सबकुछ उस पर निर्भर करता है।" 'लूप लपेटा' इसी एक लम्हे और उस लम्हे में लिये गए फैसले की कहानी है। सावी (तापसी पन्नू) को अपने बॉयफ्रैंड सत्या (ताहिर राज भसीन) को बचाने के लिए समय के खिलाफ दौड़ लगानी है, जो एक गैंगस्टर से लिए 50 लाख की रकम खो देता है।

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    'लूप लपेटा' क्लासिक जर्मन फिल्म 'रन लोला रन' की आधिकारिक हिंदी रीमेक है। हालांकि ओरिजनल फिल्म से यहां कुछ बदलाव किये गए हैं। जो सबसे बड़ा बदलाव है, वो है फिल्म की अवधि। 'लूप लपेटा' ओरिजनल फिल्म से लगभग एक घंटे ज्यादा लंबी है। फिल्म की कहानी का मुख्य बिंदु है टाइम-लूप, जो उसे अलग-अलग तरीकों से 50 लाख का जुगाड़ करने और जिंदा रहने के लिए सावी को तीन प्रयास देता है। टाइम के खिलाफ यह थ्रिलर कॉमेडी रेस कैसे सुलझती है? यही है 'लूप लपेटा'..

    कहानी

    कहानी

    "50 लाख, 50 मिनट और एक यूजलेस बॉयफ्रैंड की जान मेरे भरोसे है.. रन सावी रन.." और वो गोवा की सड़कों और गलियों में दौड़ती है। सावी एक एथलीट थी, एक दुर्घटना की वजह से उसे अपनी पिछली जिंदगी को छोड़ना पड़ता है और अब वह है अपने बॉयफ्रैंड सत्यजीत उर्फ सत्या के साथ। सत्या का मानना है कि जिंदगी बदलने के लिए एक दिन ही काफी होता है और इसीलिए वो रोज कसीनो जाता है। उसका मानना है कि किसी ना किसी दिन तो उसकी लॉटरी लगेगी। खैर, लॉटरी तो नहीं लगती है, लेकिन सत्या की जिंदगी में एक दिन ऐसा आता है जब वो जिंदगी और मौत के बीच खड़ा होता है। उसे अपनी जान बचाने के लिए 50 लाख का जुगाड़ करना है और सिर्फ 50 मिनट में। इसके लिए वो सावी की मदद मांगता है.. अब सावी कैसे उसकी जान बचाती है! बचा भी पाती है या नहीं.. यही है फिल्म की कहानी।

    निर्देशन

    निर्देशन

    क्या होगा यदि जिंदगी आपको चीजों को सुधारने और मौत से बचने के लिए तीन प्रयास देगी? आकाश भाटिया के निर्देशन में बनी 'लूप लपेटा' ऐसी ही कहानी कहती है। सावित्री और सत्यवान की पौराणिक कथा से सावी और सत्या की जिंदगी को जोड़ना काफी दिलचस्प है। फिल्म में संस्पेंस फैक्टर काम करता है, लेकिन कुछ कॉमेडी सीन सपाट जाते हैं। चेज़ सीन या पीछा करने वाले सीन भी कहीं कहीं काफी लंबे हैं। लूप लपेटा ओरिजनल फिल्म से एक घंटे लंबी है और ये बात फिल्म देखने के दौरान भी महसूस होती है। फिल्म टाइम लूप दिखाती है, लिहाजा जाहिर है कि एक ही दृश्य कई बार सामने आते हैं। लेकिन यहां रोमांस की कमी है। खैर, परफॉर्मेंस और तकनीकी पक्ष फिल्म को बचाते हैं।

    अभिनय

    अभिनय

    तापसी पन्नू फैंस के दिल में अपनी हर फिल्म के साथ कुछ नया, कुछ अलग करने की उम्मीद जगाती हैं और वो यहां निराश नहीं करती है। सावी के किरदार में वो फिल्म को मजबूत बनाती हैं। वहीं, ताहिर राज भसीन ने अपने अभिनय से खासा इंप्रेस किया है। इनके अलावा फिल्म में श्रेया धनवंतरी, राजेंद्र चावला, समीर केविन रॉय और दिब्येंदु भट्टाचार्य ने महत्वपूर्ण सहायक भूमिकाएँ निभाई हैं। सभी कलाकारों ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है।

    संगीत

    संगीत

    संगीत इस फिल्म में एक महत्वपूर्ण निभाता है। यह कहानी के गतिशील होने का आभास देता है। राहुल पायस और नरीमन खंभट्टा ने फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर दिया है, जो कि काफी अच्छा है। फिल्म के गाने कहानी के साथ साथ ही चलते हैं, लिहाजा कहीं भी कहानी में रूकावट नहीं लगते हैं।

    तकनीकी पक्ष

    तकनीकी पक्ष

    आकाश भाटिया, केतन पेडगांवकर, विनय छवल और अर्णव नंदुरी ने फिल्म की पटकथा और संवाद पर काम किया है। ओरिजनल फिल्म से लगभग एक घंटे लंबी लूप लपेटा अपने किरदारों को स्थापित करने में काफी समय देती है। चूंकि ये फिल्म नेटफ्लिक्स पर आई है, बता दें इस ओटीटी प्लेटफॉर्म पर टाइम लूप से जुड़ी कई फिल्में और शोज हैं। ऐसे में लूप लपेटा कुछ नया और एक्सपेरिमेंटल नहीं दिखाती है। लेकिन हां, हिंदी फिल्मों के दर्शकों के लिए यह शैली अभी भी अपेक्षाकृत नई है। यश खन्ना की सिनेमेटोग्राफी काफी प्रभावी है। वहीं, प्रियांक प्रेम कुमार ने एडिटिंग में अच्छा काम किया है।

    देंखे या ना देंखे

    देंखे या ना देंखे

    कॉमेडी- थ्रिलर- संस्पेंस में कुछ अलग, कुछ नया देखना चाहते हैं तो 'लूप लपेटा' एक बार जरूर देखी जा सकती है। फिल्म में तापसी पन्नू और ताहिर राज भसीन ने अच्छा काम किया है। फिल्मीबीट की ओर 'लूप लपेटा' को 3 स्टार।

    English summary
    Taapsee Pannu and Tahir Raj Bhasin starring Looop Lapeta is a remake of classic German film Run Lola Run. It's a refreshing attempt with style and substance, but looses grip in some places.
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