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आरक्षण : शिक्षा और व्यवसाय की राजनीति
निर्माता : प्रकाश झा, फिरोज नाडियाडवाला
निर्देशक : प्रकाश झा
संगीत : शंकर-अहसान-लॉय
कलाकार : अमिताभ बच्चन, सैफ अली खान, दीपिका पादुकोण, मनोज बाजपेयी, प्रतीक बब्बर
रेटिंग : 3/5
हमेशा ही सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों को अपनी फिल्म में दर्शकों के सामने लाने वाले फिल्म निर्देशक प्रकाश झा अपनी नयी फिल्म आरक्षण को लेकर आज दर्शकों के सामने हाजिर हैं। इनकी फिल्म ने प्रदर्शन के पहले ही पूरे देश में आरक्षण को लेकर जो आग लगाई है वो अभी तक नही बुझी है। प्रकाश झा के फिल्मों की यही खासियत है कि वो हमेशा ही पर्दे पर सच को बयां करती हैं। इस बार ये दिन ब दिन खोखली होती शिक्षा व्यवस्था का सच लोगों के सामने ला रहें हैं। इससे पहले ये अपनी फिल्म राजनीति को लेकर भी खासे चर्चा में रह चुके हैं। आरक्षण पर उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और पंजाब में रोक लगा दी गयी है लेकिन इसके बाद भी इनकी फिल्म दिल्ली, मुंबई समेत कई राज्यों में आज दिखाई जा रही है।
फिल्म की कहानी भोपाल के एक कॉलेज से शुरू होती है जिसके प्रिसिंपल डॉ. प्रभाकर आनंद (अमिताभ बच्चन) हैं जिनके लिए उनके आदर्शवादी सिद्धांतों और नियम ही सबकुछ हैं। इनका मानना है कि शिक्षा पर सब का समान हक है। रिजर्वेशन सिस्टम पर की गयी टिप्पणी के चलते उन्हें कॉलेज के प्रिसिंपल पद हटा दिया जाता है। ऐसे में उनकी मदद करने के लिए सैफ अली खान आगे आते हैं जो इस फिल्म में दीपक के रोल में हैं। दीपक आनंद सर के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। प्रभाकर के हटते ही कॉलेज कार्यभार मिथिलेश सिंह (मनोज वाजपेयी) को सौप दिया जाता है। मिथिलेश शिक्षा में नहीं व्यवसाय पर विश्वास करता है। आनंद सर का एक और स्टूडेंट है प्रतीक बब्बर जो उच्च वर्ग से संबंध रखता है, लेकिन कुछ ऐसा हो जाता है कि वह भी आनंद सर के खिलाफ खड़ा हो जाता है। यहीं से शुरू यहां से शुरू होती है शिक्षा और व्यावसाय की राजनीति। यह आज की शिक्षा व्यवस्था का आईना ही है।
अमिताभ बच्चन ने कॉलेज के आदर्शवादी प्रिंसिपल डॉ. प्रभाकर आनंद के रूप में गहरी छाप छोड़ी है। इस पूरी फिल्म में वो ऐसे किरदार के रूप में नज़र आते हैं जो मेरिट में यकीन करते हैं, साथ ही पिछड़े लोगों को भी शिक्षा का अवसर देना चाहते हैं। इस फिल्म में दीपिका पादुकोण ने अमिताभ बच्चन की बेटी पूर्वी की भूमिका में हैं जो सैफ अली खां को पसंद करती है।
फिल्म में कई जगहों पर हुई बहस और विवाद दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देते हैं। इसके बाद अगर किसी का दमदार रोल है तो वो हैं मनोज वाजपेयी, जो निगेटीव किरदार में काफी जमें हैं। वहीं प्रतीक बब्बर ने एकबार फिर साबित कर दिया है कि एक्टिंग उनके खून में है।
प्रकाश झा की इस फिल्म से यह बात तो तय है कि प्रकाश झा ही ऐसे डायरेक्टर हैं जो बेहद संवेदनशील मुद्दे को भी अपनी फिल्मों में उठा सकते हैं। किरदार चुनने के मामले में हर बार की तरह ये सफल रहें हैं। फिल्म का विषय काफी गंभीर है साथ ही इसके संवाद भी पैने हैं। प्रकाश झा नें फिल्म के जरिए ही सहीं लेकिन इस संवेदनशील मुद्दे को लोगों के दिलों दिमाग में पहुंचा ही दिया है, और यही फिल्म की असली सफलता है, इस फिल्म को लेकर पहले से ही काफी बवाल मच चुके हैं। कहा भी गया है बदनाम हुए तो क्या नाम ना हुआ ।