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महिला दिवस विशेष: बॉलीवुड में महिलाओं के युग की लहर
रूपहले पर्दे पर महिला किरदारों को ज्यादातर मजबूर मां, विनम्र पत्नी, समर्पित प्रेमिका, बहुत ज्यादा ध्यान रखने वाली बहन, आज्ञाकारी बेटी या एक खराब महिला के रूप में ही प्रस्तुत किया जाता रहा है। विशाल भारद्वाज और अलंकृता श्रीवास्तव जैसे निर्देशकों ने अपनी फिल्मों में महिलाओं की अलग तस्वीर पेश कर उनकी परम्परागत छवि को तोड़ने की कोशिश की है।
राजकुमार गुप्ता की फिल्म 'नो वन किल्ड जेसिका' अपनी बहन की हत्या के लिए इंसाफ मांगने वाली सबरीना लाल की लम्बी कानूनी लड़ाई की तस्वीर पेश करती है। विद्या बालन और रानी मुखर्जी के अभिनय से सजी यह फिल्म 1999 के जेसिका लाल हत्याकांड पर आधारित है। गुप्ता कहते हैं "मेरी फिल्म में मुख्य पात्र दो महिलाएं हैं जो बहुत सशक्त भूमिका में हैं। इस तरह के विषय पर फिल्म बनाना आसान नहीं था लेकिन समय बदल रहा है और लोग बाहें फैलाकर ऐसी फिल्मों का स्वागत कर रहे हैं।"
साल 1999 में कई राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्म 'गॉडमदर' पेश कर चुके निर्देशक विनय शुक्ला आगे के वर्षो में और भी महिला केंद्रित फिल्में बनने की उम्मीद करते हैं। विनय शुक्ला ने मिर्च फिल्म पेश की थी। इसमें राइमा सेन और कोंकणा सेन शर्मा मुख्य किरदारों में थीं। वह कहते हैं, "इस समय महिला-केंद्रित फिल्मों की संख्या कम है लेकिन समय के साथ ऐसी फिल्में बढ़ेंगी। आजकल की अभिनेत्रियों में इतनी क्षमता है कि वे अपने दम पर फिल्मों को सफल बना सकती हैं।"
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