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बाजीराव-मस्तानी क्यों हैं संजय लीला भंसाली का ड्रीम प्रोजेक्ट
[नवीन निगम] पिछले 10 सालों से अपने ड्रीम प्रोजेक्ट बाजीराव-मस्तानी को क्यों बनाना चाहते हैं संजय लीला भंसाली। इसका जवाब यदि आपको पाना है तो आपको इतिहास के पन्नों में झांकना पड़ेगा। लैला-मजनू, शीरी-फरहाद, हीर राझां जैसी प्रेम कहानियां काल्पनिक कहांनियां है लेकिन बाजीराव-मस्तानी एक ऐसी प्रेम कहानी है जो इतिहास में तारीख के साथ दर्ज है। इस लव-स्टारी में वो सबकुछ है जो एक कार्मिशयल फिल्म में होना चाहिए। सलमान खान को बाजीराव बनाने पर अड़े भंसाली अब सलमान की जगह अजय देवगन को ले रहे हैं क्योंकि सल्लू मियां के चेहरे को वह अब 20 साल के पेशवा का चेहरे में फिट नहीं कर सकते हैं।
फिल्म ब्लैक की शिमला में शूटिंग के दौरान भंसाली से जब बातचीत हुई तब भी वो अपनने इस प्रोजेक्ट को लेकर काफी संजीदा थे और उस समय ऐश्वर्या के मस्तानी न बनने पर उनसे नाराज भी। अब क्योंकि सलमान की जगह अजय देवगन बाजीराव बनने जा रहे है तो मस्तानी का रोल कैटरीना कैफ को मिलने ज रहा है। अब भंसाली उम्रदराज अजय देवगन के चेहरे पर 20 साल के पेशवा बाजीराव का चेहरा कैसे फिट कर पाएंगे यह तो भंसाली ही बताएंगे? आइये हम आपको बताते है कि बाजीराव-मस्तानी की वह कहानी जो इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
18वीं शताब्दी के पूर्व मध्यकाल में मराठा इतिहास में मस्तानी का विशेष उल्लेख मिलता है। मस्तानी अफगान और गूजर जाति की थी। इनका जन्म नृत्य करनेवाली जाति में हुआ था। गुजरात के गीतों में इन्हें नृत्यांगना के नाम से संबोधित किया गया है। मस्तानी अपने समय की अद्वितीय सुंदरी एवं संगीत कला में प्रवीण थी। उसने घुड़सवारी और तीरंदाजी में भी शिक्षा प्राप्त की थी। गुजरात के नायब सूबेदार शुजाअत खाँ और मस्तानी की प्रथम भेंट 1724 ई. के लगभग हुई।
चिमाजी अप्पा ने उसी वर्ष शुजाअत खान पर आक्रमण किया। युद्ध क्षेत्र में ही शुजाअत खाँ की मृत्यु हुई। लूटी हुई सामग्री के साथ मस्तानी भी चिमाजी अप्पा को प्राप्त हुई। चिमाजी अप्पा ने उन्हें बाजीराव के पास पहुँचा दिया। उसके बाद मस्तानी और बाजीराव एक दूसरे के लिए ही जीवित रहे। 1727 ई. में प्रयाग के सूबेदार मोहम्मद खान बंगश ने राजा छत्रसाल (बुंदेलखंड) पर चढ़ाई की। राजा छत्रसाल ने तुरंत ही पेशवा बाजीराव से सहायता माँगी। बाजीराव अपनी सेना सहित बुंदेलखंड की ओर बढ़े। मस्तानी भी बाजीराव के साथ गई। मराठे और मुगल दो बर्षों तक युद्ध करते रहे। बाजीराव जीते।
छत्रसाल अत्यंत आनंदित हुए। उन्होंने मस्तानी को अपनी पुत्री के समान माना। बाजीराव ने जहाँ मस्तानी के रहने का प्रबंध किया उसे मस्तानी महल और मस्तानी दरवाजा का नाम दिया। मस्तानी ने पेशवा बाजीराव के हृदय में एक विशेष स्थान बना लिया था। उसने अपने जीवन में हिंदू स्त्रियों के रीति रिवाजों को अपना लिया था। बाजीराव से संबंध के कारण मस्तानी को भी अनेक दुख झेलने पड़े पर बाजीराव के प्रति उसका प्रेम अटूट था। मस्तानी के 1734 ई0 में एक पुत्र हुआ। उसका नाम शमशेर बहादुर रखा गया। बाजीराव ने काल्पी और बाँदा की सूबेदारी उसे दी। 1761 ई. में शमशेर बहादुर मराठों की ओर से लड़ते हुए पानीपत की तीसरी लड़ाई में मारा गया।
1739 ई. के आरंभ में पेशवा बाजीराव और मस्तानी का संबंध विच्छेद कराने के असफल प्रयत्न किए गए। 1739 ई. के अंतिम दिनों में बाजीराव को आवश्यक कार्य से पूना छोडऩा पड़ा। मस्तानी पेशवा के साथ न जा सकी। चिमाजी अप्पा और नाना साहब ने मस्तानी के प्रति कठोर योजना बनाई। उन्होंने मस्तानी को पर्वती बाग में (पूना में) कैद किया। बाजीराव को जब यह समाचार मिला, वे अत्यंत दुखी हुए। वे बीमार पड़ गए। इसी बीच अवसर पा मस्तानी कैद से बचकर बाजीराव के पास 4 नवंबर, 1739 ई. को पटास पहुँची। बाजीराव निश्चिंत हुए पर यह स्थिति अधिक दिनों तक न रह सकी। शीघ्र ही पुरंदरे, काका मोरशेट तथा अन्य व्यक्ति पटास पहुँचे। उनके साथ पेशवा बाजीराव की माँ राधाबाई और उनकी पत्नी काशीबाई भी वहाँ पहुँची। उन्होंने मस्तानी को समझा बुझाकर लाना आवश्यक समझा।
मस्तानी पूना लौटी। 1740 ई0 के आरंभ में बाजीराव नासिरजंग से लडऩे के लिए निकल पड़े और गोदावरी नदी को पारकर शत्रु को हरा दिया। बाजीराव बीमार बड़े और 28 अप्रैल, 1740 को उनकी मृत्यु हो गई। मस्तानी बाजीराव की मृत्यु का समाचार पाकर बहुत दुखी हुई और उसके बाद अधिक दिनों तक जीवित न रह सकी। आज भी पूना से 20 मील दूर पाबल गाँव में मस्तानी का मकबरा उनके त्याग, दृढ़ता तथा अटूट प्रेम का स्मरण दिलाता है।
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