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ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों का संगम : पठानकोट
काव्या बनीं 'स्पेलिंग बी' चैंपियन
प्रतियोगिता में कुल मिलाकर 293 प्रतिस्पर्धियों ने हिस्सा लिया. इनमें 28 प्रतियोगी ग़ैर-अमरीकी देशों के भी थे.
आख़िरी दौर में काँटे की टक्कर हुई, लेकिन बाज़ी काव्या के हाथ लगी. उन्होंने ‘laodicean’ शब्द की सही स्पेलिंग बताई और ख़िताब पर कब्ज़ा किया.
प्रतियोगिता की ख़ासियत ये है कि इसमें भारतीय मूल के अमरीकियों का जलवा रहा है. पिछले 11 वर्षों में वह भारतीय मूल की सातवीं अमरीकी हैं, जिन्हें चैंपियन बनने का गौरव हासिल हुआ है.
दबदबा
प्रतियोगिता में नौ से 15 साल की उम्र के छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया. दिलचस्प तथ्य ये है कि 33 प्रतियोगियों की मुख्य भाषा अँगरेज़ी नहीं थी.
काव्या पहले भी तीन बार इस प्रतियोगिता के टॉप 10 में पहुँच चुकीं थीं, लेकिन उन्हें ख़िताब नहीं मिल सका था.
मुझे यक़ीन ही नहीं हो रहा है. ऐसा नहीं लगता कि सचमुच में ऐसा हुआ है काव्या शिवशंकर
मुझे यक़ीन ही नहीं हो रहा है. ऐसा नहीं लगता कि सचमुच में ऐसा हुआ है |
काव्या को पुरस्कार के रूप में एक चमचमाती ट्रॉफ़ी के अलावा 30 हज़ार डॉलर का नक़द इनाम भी मिला.
ख़िताब जीतने के बाद काव्या ने कहा, “मुझे यक़ीन ही नहीं हो रहा है. ऐसा नहीं लगता कि सचमुच में ऐसा हुआ है.”
काव्या की माँ मिर्ले भी अपनी बेटी की इस उपलब्धि से गदगद हैं. उन्होंने कहा, “ये किसी सपने के सच होने जैसा है. हम इस लम्हे का इंतज़ार कर रहे थे.”
वो कहती हैं, “हमने खाना-पीना नहीं छोड़ा था. ऐसा भी नहीं था कि हमें नींद नहीं आ रही थी, लेकिन हमारा लोगों से मिलना-जुलना बहुत कम हो गया था.”
काव्या ने इस प्रतियोगिता के लिए कड़ी मेहनत की और गहन प्रशिक्षण लिया. यही वजह रही कि माता-पिता काव्या का जन्मदिन भी नहीं मना सके.
काव्या कहती हैं, “स्पेलिंग मेरे जीवन में बहुत मायने रखती हैं.”
उनका कहना है कि वो न्यूरोसर्जन बनना चाहती हैं, लेकिन स्पेलिंग की जगह कोई नहीं ले सकता.
और जब ‘acrocephaly’, ‘glossopharyngeal’ और ‘vestibulocochlear’ जैसे शब्द न्यूरोसर्जरी से जुड़े हों, तो काव्या को फ़िक्र करने की क्या ज़रूरत है.
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