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    फिर वही कहानी...

    By Staff
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    फिर वही कहानी...
    साइमा इक़बाल

    बीबीसी संवाददाता

    सास-बहू की घिसी-पिटी कहानियों से कुछ अलग दिखाने के उद्देश्य से शुरु हुए टीवी धारावाहिक भी अब निराश कर रहे हैं. बाल विवाह जैसी गंभीर सामाजिक समस्या पर रोशनी डालता सीरियल 'बालिका वधु' भी अब अपने उद्देश्य से भटक कर बाल पति-पत्नी की प्रेम कहानी और ससुराल के ड्रामा पर अटक गया है.

    'मन की आवाज़ प्रतिज्ञा' शुरु हुआ आत्मविश्वास से भरी प्रतिज्ञा के एक गुंडे को चांटा मारने से. ऐसा लगा जैसे ये सीरियल नारी शक्ति के बारे में बात करेगा. लेकिन घूम-फिर के कहानी फिर भटक गई. प्रतिज्ञा उसी लड़के से शादी कर बैठी है जो उसे परेशान करता है और उसका परिवार महिलाओं से अच्छा व्यवहार नहीं करता.

    इसी तरह 'बैरी पिया' और 'न आना इस देस लाडो' भी सामाजिक समस्याओं और ग़रीबों के सशक्तिकरण के मुद्दे को लेकर शुरु हुए थे. लेकिन ये भी कुछ नया नहीं कर पाए.

    इस बारे में पत्रकार पूनम सक्सेना कहती हैं, "ये धारावाहिक बनाने वाले कहते हैं कि उनका संदेश लोगों तक पहुंच रहा है और समाज पर इसका अच्छा असर पड़ रहा है. लेकिन मुझे नहीं लगता कि ये अपना संदेश ठीक ढंग से लोगों तक पहुंचा पाते हैं. अगर इससे समाज पर कोई असर पड़ा भी है तो मुझे नहीं लगता वो बहुत बड़ा असर है."

    वह कहती हैं, "मसलन 'बालिका वधु' में ये दिखाने के बजाय कि बाल विवाह एक अपराध है और इसका बुरा असर पड़ता है, ये दिखाया जा रहा है कि बाल वधु का ससुराल में जीवन कैसे बीत रहा है. उसकी दादी-सास तो क्रूर है लेकिन उसकी सास अच्छी है. इस कहानी से कैसे कोई संदेश पहुंच सकता है. इससे तो ऐसा लगता है कि अगर छोटी उम्र में भी शादी हो जाए और अगर ससुराल वाले अच्छे हैं तो कोई परेशानी की बात नहीं."

    टीआरपी की दौड़

    पिछले कुछ सालों में सामाजिक समस्याओं पर आधारित कई टीवी धारावाहिक आए हैं. लेकिन टीआरपी की दौड़ में सभी चैनल इनकी कहानी में मसाला डाल देते हैं.

    थियेटर कलाकार दानिश इक़बाल कहते हैं, "इन धारावाहिकों से समाज पर कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता. हां कुछ लोग जिनकी अपनी ख़ुद की सोच नहीं है वो इससे प्रभावित हो सकते हैं."

    वह कहते है, "एक ज़माने में दूरदर्शन पर 'रामायण' आता था और तब सभी शहरों में जैसे कर्फ्यू लग जाता था क्योंकि सब इसे देख रहे होते थे. लेकिन इससे समाज में कोई बदलाव तो आया नहीं. सभी रावण तो नहीं मर गए."

    'मन की आवाज़ प्रतिज्ञा की प्रतिज्ञा' यानि पूजा गौड़ अपने किरदार के बचाव में कहती हैं, "ये एक बहुत ही आत्मसम्मान से भरी लड़की है. वो किसी ग़लत चीज़ को सहन नहीं कर सकती. न ही वो बेसहारा बहुओं की तरह आंसू बहाती है."

    पूजा का कहना है, "प्रतिज्ञा ने उस लड़के से इसलिए शादी कि जिससे वो नफ़रत करती थी क्योंकि वो अपने परिवार को शांत और सुरक्षित देखना चाहती थी. वो उस लड़के को एक सबक सिखाना चाहती थी."

    केवल मनोरंजन

    ये सीरियल दिखाने वाले टीवी चैनलों का इस बारे में अलग ही नज़रिया है. स्टार प्लस चैनल के प्रवक्ता अनुपम वासुदेव का कहना है, "सीरियल की पृष्टभूमि में कोई सामाजिक संदेश हो सकता है लेकिन उसका मूल उद्देश्य मनोरंजन ही है. ये सीरियल सामाजिक परिवर्तन के उद्देश्य से नहीं बनाए जाते. ये तो लोगों के जीवन की कहानियां हैं."

    अनुपम वासुदेव के मुताबिक, "ये सभी कहानियां काल्पनिक हैं लेकिन समाज में जो हो रहा है उसे भी दर्शाती हैं. इससे ज़्यादा इनका कोई मकसद नहीं." लेकिन सोचने वाली बात ये है कि इन सीरियलों के ज़रिए सामाजिक बुराइयों और अन्याय के ख़िलाफ़ जो जंग शुरु होने की उम्मीद थी, वो पूरी नहीं हुई है.

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