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मद्रास कैफे: दफनाये गये इतिहास की कहानी
बैंगलोर। इस बार राजीव गांधी जयन्ती पर मुझे अपने जीवन की कई पुरानी बातें याद आयी लेकिन इसका कारण निश्चित रूप से अखबारों में दिये जाने वाले उनके विज्ञापनों के कारण नहीं था। मैं सोंचता हूं कि सरकार उनके नाम पर अखबारों में करोड़ों के विज्ञापन देती है, इनको कोई हक नहीं है कि आप जनता के टैक्स के पैसे को इतनी आसानी से खर्च करें। भारतीय स्वभाव से ही विनम्र होते हैं जो कि सरकार से सवाल नहीं करते। ये लोग कैसे करोड़ों खर्च कर गांधी नेहरू वंश के नाम पर योजनाएं चलाते हैं। आज के समय में तो किसी भी राजनेता की जयन्ती के मौके पर इस तरह के लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा की जाती है। इन दिनों मैं 'राजीव गांधी आवास योजना के बारे में सुन रहा हूं जिसमें वादा किया गया है कि शहरी गरीबों को घर उपलब्ध करवाने के लिए कम दरों पर धन उपलब्ध करवाया जायेगा।
पिछले दिनों मैं फिल्म 'मद्रास कैफे' के प्रीमियर पर गया। मैं उस रास्ते से होकर गया जहां प्रधानमंत्री आवास है, मुझे याद है कि पहले आप रेस कोर्स रोड पर कार ड्राइव कर सकते थे लेकिन अब इंदिरा गांधी और राजीव गांधी पर हुए जानलेवा हमले के बाद अब यहां भारी सुरक्षा लगा दी गई है। मैं फिल्म के प्रीमियम पर पहुंचा जहां पहले से ही शशि थरूर अपनी पत्नी के साथ मौजूद थे, कुछ समय बाद वहां जॉन अब्राहम, मेरे दोस्त रजत शर्मा के साथ आ गये। जॉन ने मुझसे कहा कि मुझे उम्मीद है कि आपको यह फिल्म पसंद आयेगी हालांकि आप इसमें किसी आइटम सांग की उम्मीद नहीं कर सकते हैं।
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फिल्म के शुरू होने के कुछ समय बाद ही पता चल गया कि यह फिल्म उन हालातों का चित्रण करती है जो कि भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या का कारण बने। फिल्म में तमिलों द्वारा एक अलग जमीन की मांग के संघर्ष को दर्शाया गया है जिसमें उन जंगलों का भी चित्रण किया गया है जहां तमिलों के अंडरग्राउंड हेडक्वार्टर बनाये गये थे। कुछ समय बाद मैं भूल गया कि मैं एक फिल्म देख रहा हूं। फिल्म से श्रीलंका के उन हालातों का पता चलता है जो कि लिट्टे द्वारा बनाये गये थे साथ ही यह भी कि किस तरह भारत के आला अधिकारियों ने राजीव गांधी से धोखा किया। श्रीलंका के लिट्टे द्वारा उत्पन्न स्थितियों में हस्तक्षेप करने के बावजूद उन अधिकारियों ने आगामी मुश्किलों पर गौर नहीं किया।
राजीव गांधी राजनीति में नौसिखिया ही साबित हुए, इसी तरह वह विदेश नीति के बेहतर जानकार नहीं थे, ऐसे में उन्हें श्रीलंका में शांति सेनाएं भेजने की अपनी अधिकारियों की सलाह पर भरोसा करना पड़ा। लिट्टे द्वारा उत्पन्न समस्याओं को शांत करने के लिए उन्होने जो 'शांति सेना' के रूप में अपने सैनिक भेजे उनमें से 1500 शहीद हो गये और बाद में राजीव को भी इसी समस्या ने निगल लिया।
यह भी एक सच है कि भारत ने श्रीलंका में इंदिरा गांधी के समय से ही हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था। इंदिरा ने ही जे जयवर्द्धने के आर्थिक सुधारों के विचार को अस्वीकृत कर दिया था, यह सुधार इतने प्रभावी थे जो कि श्रीलंका को दक्षिण एशिया का सिंगापुर बना सकते थे। इसका एक कारण यह भी था कि पश्चिमी निवेश के विचार को भारत से पहले श्रीलंका ने स्वीकृत करने की सोंची। भारत ने श्रीलंका के घरेलू मामलों में इस तरह हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था जैसे आज पाकिस्तान अपने जेहादी समूहों को भारत भेज कर घरेलू मामलों पर प्रभाव डाल रहा है।
मद्रास कैफे की कहानी इन्हीं बातों का चित्रण करती है जो कि अब वक्त के साथ दफन हो गयी हैं , लेकिन मैं इतना जरूर कहूंगा कि यह एक शानदार फिल्म थी।
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