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'हर कोई फ़िल्मों में वापसी चाहता है'
बाद के दिनों में द्विअर्थी संवादों वाली डेविड धवन मार्का फ़िल्मों से लेकर राजा हिन्दुस्तानी, दिल तो पागल है, फ़िजा, जुबैदा और शक्ति जैसी फ़िल्में करके राष्ट्रीय पुरस्कार तक जीतने का उनका सफ़र आसान नहीं रहा.
जब वे अपने करियर की ऊँचाइयाँ छू रही थीं तो उन्हें अपनी बहिन करीना को स्थापित करने की जद्दोजहद करनी पड़ी. फिर अभिषेक बच्चन के साथ व्यक्तिगत संबंधों में दरार आ गई. फिर अचानक उन्होंने विवाह करके इंडस्ट्री को अलविदा कह दिया.
इसके बाद वे चर्चा और विवादों में तब आई जब उनके संबंध अपने पति के साथ पहले अख़बारों की सुर्खियाँ बनी और बाद में अदालत की दहलीज़ तक पहुँची.
पिछले साल जब वे टीवी पर एक नाचने के शो में बतौर जज दिखाई दीं तो चर्चा चली कि वो अभिनय की दूसरी पारी शुरू करेंगी, पर ऐसा नहीं हुआ. एक बार फिर वो एक टीवी शो में जज बनी हैं. यही नहीं इस बार उनकी चर्चा इसलिए भी हो रही है कि वे अपने पसंदीदा फ़िल्म निर्देशक डेविड धवन के साथ मैदान में हैं. इसी संदर्भ में उनसे विस्तृत बातचीत के अंश:
आप डेविड धवन के साथ टीवी के एक शो- हंस बलिए में जज हैं, पर कई हिट फ़िल्में देने के बाद भी आप उनकी फ़िल्में नहीं कर रही हैं, जबकि उन्होंने गोंविदा को दोबारा लिया है?
उन्होंने मुझे कई प्रस्ताव दिए हैं. दूसरे कई निर्देशकों की कई पटकथाएं भी मैं पढ़ रही हूँ पर अभी तक मुझे कोई ऐसी कहानी नहीं मिली जिससे मैं माधुरी या काजोल की तरह वापसी कर सकूँ. वैसे भी हमारे यहाँ अभिनेत्रियों की वापसी का इतिहास सुखद नहीं रहा.
कौन कहता है! हमारे यहाँ शर्मीला टैगौर से लेकर सायरा बानो, वहीदा रहमान और नूतन तक इसके उदहारण हैं?
अब हमारी इंडस्ट्री और सिनेमा बदल गया है. लोग अभिनेत्री यह कह कर नकार देते हैं कि उसकी शादी हो गई. जबकि हमारे यहाँ अब पहले से ज़्यादा और कई तरह की सोच वाला सिनेमा बन रहा है. फिर अब मैं पेड़ों के इर्दगिर्द नाचते हुए जोड़ी नंबर वन जैसी फ़िल्में नहीं कर सकती. मैं अब बीवी नंबर वन और पार्टनर जैसी फ़िल्मों से अलग कुछ चाहती हूँ. अब दर्शक बदल गए हैं और शक्ति या राजा हिदुंस्तानी जैसी फ़िल्में कम बनती हैं.
आप टीवी दूसरी बार कर रही हैं. पर अब इसमें सब कुछ एक जैसा है तो फिर आपके लिए इसमें नया क्या निकल आया?
मैंने एक बार पहले भी आपसे कहा था कि मैं टीवी पर करिश्मा या डेस्टिनी की तरह अभिनय करने नहीं आ रही हूँ. यह वास्तविक जीवन की वास्तविक जोड़ियों के साथ किया जाने वाला शो हैं. नच बलिए में मैंने जज की भूमिका की थी और वह एक ब्रांड बन गया है. मैं रियेलटी शो पसंद करती हूँ और इसमें मुझे डेविड के साथ हँसने हँसाने का मौक़ा मिल रहा है बस.
करिश्मा ने राजा हिन्दुस्तानी, दिल तो पागल है, फ़िजा, जुबैदा जैसी कामयाब फ़िल्में दी हैं
कहा जा रहा है कि आपको इसके फ़ॉर्मेट में बदलाव की ज़रूरत महसूस हो रही है और आप इसे छोड़ने का मन बना रही हैं?
अभी तो यह शुरू हुआ है. मैं वैसे भी किसी काम को तब तक हाथ में नहीं लेती जब तक मुझे उसमें विस्तार और रचनात्मकता की गुंजाइश नज़र नहीं आती. फ़िलहाल तो मैं इसका मज़ा ले रही हूँ.
सहारा का धारावाहिक करिश्मा- द मिरेकल ऑफ़ डेस्टिनी टीवी की दुनिया का सबसे महँगा और बड़ा धारावाहिक था उसके बाद आपकी फ़िल्मों का भी हाल बेहतर नहीं रहा?
मुझे दुख हुआ था कि भारतीय टीवी पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के ऐसे धारावाहिकों की शुरूआत नहीं हो सकी. वह बारबरा टेलर ब्रेडफोर्ड के वूमैन आफॅ सब्सटैंस पर आधारित एक ऐसा धारावाहिक था जो मुझे अपने करियर की सबसे अहम और चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं करने का मौक़ा देता था.
उस धारावाहिक में मैंने एक महिला की तीन पीढियों की भूमिकाएँ कीं. वह न्यूज़ीलैंड जैसे देशों में शूट किया गया. पर ज़िंदगी में हमेंशा ऐसा नहीं होता जैसा आप सोचते हैं. जीवन में करियर और वास्तविक जीवन से जुड़े कई उतार-चढ़ाव शुरू हो गए और फिर सब कुछ बदल गया.
क्या विवाह करना और संबंधों में आए विवादों की वजह से ऐसा हुआ?
पता नहीं. मैं हैरान थी. मैंने अपनी पूरी ईमानदारी से सब कुछ किया था. मैं अपने परिवार और घर को समय देना चाहती थी. फिर कुछ ग़लतफ़हमियों के चलते जीवन उतार-चढावों से भरा रहा. उधर करीना का करियर भी शुरू हो रहा था. इसलिए मैंने ब्रेक ले लिया. अब जब सबकुछ ठीक हो गया और मेरी बेटी भी बड़ी हो गई तो मैं लौट आई. लेकिन अभी मेरा फ़िल्मों के बारे में कोई बड़ा इरादा नहीं है.
हालाँकि अब ऐसा आसानी से हो सकता. अब लोग माधुरी जैसी अभिनेत्री को नकार देते हैं लेकिन काजोल को स्वीकार भी कर लेते हैं. पहले कोई हीरो हीरोइन किसी एक फ़िल्म में भाई बहन की भूमिका करने के बाद दोबारा हीरो हीरोइन नहीं बन पाते थे, लेकिन अब जोश और उसके बाद देवदास जैसी फ़िल्में हमें इसका आधुनिक रूप दिखाने लगी हैं. अब देव डी में पारो ही अपनी शादी में नाच सकती है और देवदास चंदा के साथ दोबारा शादी कर सकता है.
तो क्या हमारा हिंदी सिनेमा बदल गया है?
हिंदी नहीं, पूरा भारतीय सिनेमा ही बदल गया है. अब सिनेमा में किसी भी तरह की फ़िल्म कर लेने के ख़तरे कम हैं. सबके लिए जगह है. मैंने अपने करियर में फिज़ा और जुबैदा जैसी फ़िल्में और टीवी तब किया जब मैं अपने करियर के शीर्ष पर थी, जबकि अभिनेत्रियाँ आमतौर पर ऐसा तब करती हैं जब वे उम्र, काम और करियर के अंतिम दौर में होती हैं.
आप अपने परिवार की परंपरा के विरूद्व फ़िल्मों में आईं?
ऐसा होना ही था. हम फ़िल्में देखते हुए बड़े हुए थे. कई दशकों से मेरा पूरा परिवार इससे जुड़ा है. इस मामले में मेरी माँ ने मेरी मदद की. मेरे पिता मशहूर अभिनेता रहे हैं. मेरी माँ खुद मशहूर अभिनेता रहे हरि शिवदसानी की बेटी और साधना की रिश्ते की बहन हैं. फ़िल्में मेरे ख़ून में हैं. इसलिए मैं केवल फ़िल्में ही करना चाहती थी. लेकिन मेरी कोशिश और संघर्ष का परिणाम दर्जन भर फ्लॉप फ़िल्मों के बाद ही दिखाई दिया.
फ़िल्मों की दुनिया बदल गई है पर टीवी की दुनिया भी तेजी से बदल गई है क्या फ़र्क महसूस करती हैं?
करिश्मा कपूर ने टीवी पर जज की भी भूमिका निभाई है
बहुत ज़्यादा फ़र्क नहीं दिखता. बस एक में एक्शन बोलना पड़ता है और दूसरे में रोल. लेकिन फ़िल्म में जहाँ मुझे सुबह से शाम तक कुछ ही शोट देने पड़ते थे वहीँ टीवी के लिए दो-दो एपिसोड शूट करने पड़ते थे.
दुबारा कभी करिश्मा द मिरेकल ऑफ़ डेस्टिनी जैसे शो को करने के बारे में नहीं सोचती?
नहीं. यह समय बहुत लेता है. मैं केवल रिएलिटी शोज में ही काम करना पंसद करती हूँ.
आपने हाल ही में एक तमिल फ़िल्म भी की थी?
वो मैंने बहुत समय पहले की थी लेकिन कोडीसवरन नाम की इस फ़िल्म में मेरी मेहमान की भूमिका थी.
अपनी कौन-सी फ़िल्में याद करती हैं?
मैंने करीब साठ फ़िल्में कीं. लेकिन संघर्ष, राजा हिंदुस्तानी, साजन चले ससुराल, दिल तो पागल है, जोड़ी नंबर वन, बीवी नंबर वन, हीरो नंबर वन, हसीना मान जाएगी, जानवर, जुबैदा, फिज़ा और शक्ति जैसी फ़िल्में मेरे करियर की मह्तवपूर्ण फ़िल्में हैं.
आपके परिवार में इतिहास दोहराया जा रहा है. करीना सबसे लोकप्रिय अभिनेत्री हैं और रणबीर कपूर की मांग बढ़ गई है?
मुझे ख़ुशी होती है जब में इनके बारे में सुनती हूँ. मैं करीना को हमेंशा से नए मुक़ाम पर देखना चाहती थी. जहाँ तक रणबीर की बात है तो वो हमारे परिवार की पुरानी परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं.