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    अभी न जाओ छोड़कर.....

    By Bbc
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    अभी न जाओ छोड़कर.....

    वंदना

    बीबीसी संवाददाता

    'अभी न जाओ छोड़कर कि दिल अभी भरा नहीं"..... प्यार और इंतज़ार का रस लिए 60 के दशक की फ़िल्म हम दोनों का ये गाना आज भी दिल में अजीब सी कसक छोड़ जाता है.शुक्रवार को इस ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्म को क्लर में रिलीज़ किया गया.

    हम दोनों का प्रीमियर

    साठ के दौर के जवान देव आनंद, साधना की दिलकश अदा और नंदा की मासूमियत..गुज़रे ज़माने की फ़िल्म को मल्टीपलेक्स में बड़े पर्दे पर देखना रूमानियत भरा एहसास रहा.

    इठलाते, झूमते, सिग्रेट के धुँए को छल्ले में उड़ाते देव आनंद हम दोनों में एक नहीं बल्कि डबल रोल में है.देव आनंद मानते हैं कि फ़िल्म का गाना ...मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फ़िक्र को धुँए में उड़ाता चला गया..उनके लिए गीत भर नहीं बल्कि जीवन का फ़लसफ़ा बन गया.

    फ़िल्म में देव आनंद की सिग्रेट और साधना द्वारा उपहार में दिया म्यूज़िकल लाइटर एक किरदार की तरह है जो बार-बार फ़िल्म में आते हैं. आज के सेंसर बोर्ड का इस पर क्या रुख़ होता पता नहीं जब धूम्रपान के दृश्य दिखाना मना है.

    फ़िक्र को धुएँ में...

    वैसे फ़िल्म देखते समय दिमाग़ में ये विचार बार-बार कौंधता रहा कि मौजूदा दौर और पुराने दौर की फ़िल्में कितनी एक जैसी हैं और कितनी अलग-अलग हैं.जवाब मेरे पीछे वाली सीट पर बैठी एक महिला की बातों से इंटरवल में मिला. उनका कहना था कि आज की फ़िल्मों से तुलना करें तो फ़िल्म बहुत धीमी है, न मुन्नी है न शीला.आज के बच्चे शायद ही देखें.

    बात तो सही कही..फ़िल्म में न शीला की जवानी थी न बदनाम मुन्नी. बस थी तो मासूम साधना और नंदा.

    देव आनंद-साधना के रोमांटिक सीन के साथ फ़िल्म की शुरुआत होती है. फ़िल्म के पहले चिंद मिनटों में दोनों के बीच कोई गुफ़्तगू नहीं, कोई स्पर्श नहीं...केवल आँखों से बातें होती हैं और फिर आशा भोंसले-मोहम्मद रफ़ी का रोमांटिक गीत- अभी न जाओ छोड़कर.

    और कहाँ आज का मॉर्डन हीरो जो चीख-चीखकर गाता है -शर्माना छोड़ डाल, राज़ दिल का खोल डाल, आजू बाजू मत देख, आई लव यू बोल डाल.

    फिर भी सिनेमाघर में ये देखकर हैरानी हुई कि 60 के दशक की इस फ़िल्म को देखने की दिलचस्पी आज की पीढ़ी के कुछ लोगों में थी.

    वहीं थिएटर में कुछ ऐसे जोड़े भी थे जिन्होंने जवानी के रंगीन दिनों में ये ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्म देखी थी.

    अब भले ही इन लोगों की रंगत फ़ीकी पड़ गई है, चाल में वो फ़ुर्ती नहीं, काले स्याह बालों की जगह सफ़ेद चाँदी से बालों ने ले ली है पर पुरानी यादें ताज़ा करने ये सिनेमाघर तक खिचे चले आए.

    फ़िल्म शुरु होने से पहले देव आनंद इंट्रोडक्शन में बताते हैं कि 1961 में आई हम दोनों उनकी आख़िरी ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्म थी.

    देव आनंद उस समय अपने पूरे शबाब पर थे. फ़िल्म के एक दृश्य में देव आनंद शर्टलेस नज़र आते हैं तो लोगों ने काफ़ी तालियाँ बजाई जैसे शायद सलमान खान के लिए बजाते हैं.डबल रोल में देव आनंद ने बेहतरीन अभिनय किया था, ख़ासकर मूँछों वाले देव आनंद.

    फ़िल्म विश्व युद्ध की परछाईं में आगे बढ़ती है जब दो हमशक्ल सैनिक मिलते हैं और दोनों की दोस्ती होती है, कुछ हँसी मज़ाक होता है और फिर हालात के फेर में दोनों की ज़िंदगियाँ उलझ कर रह जाती हैं.

    अभिनेत्री साधना लव इन शिमला की सफलता के साथ इंडस्ट्री में उस समय नई-नई थी. वहीं नंदा पर फ़िल्माया गया भजन अल्लाह तेरो नाम आज भी कर्णप्रिय लगता है. कुछ दिन पहले फ़िल्म के प्रीमियर में दोनों में से कोई अभिनेत्री नहीं आई. देव आनंद ने बताया कि उन्होंने आमंत्रण दिया था लेकिन दोनों ने कहा कि अब वे लाइमलाइट से दूर ही रहना पसंद करती हैं.

    जयदेव ने इस फ़िल्म में कई सुंदर गीत दिए हैं- कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया भी इसी फ़िल्म का गाना है.

    स्क्रीनप्ले और डायलॉग विजय आनंद के थे और उनकी छाप फ़िल्म पर साफ़ नज़र आती है. नवकेतन बैनर की फ़िल्म हम दोनों 1962 में बर्लिन फ़िल्म फ़ेस्टिवल में नामांकित हुई थी.ब्लैक एंड व्हाइट को रंगीन करने के बहाने ही सही ऐसे नायाब तोहफ़े फ़िल्म प्रेमियों को वक़्त वे-वेवक़्त मिलते रहें तो अच्छा है.

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