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    राजकपूर थे वास्तविक 'शोमैन'

    By अंकुर शर्मा
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    Raj Kapoor
    प्यार का अनूठा संगम, दिलों के रिश्ते और खूबसूरत हीरोईन को एक साथ देखना हो तो राजकपूर की फिल्में देखें। क्योंकि उनकी फिल्मों में ही आपको तीनों बातों का संगम देखने को मिलेगा। चाहे कहानी को फिल्माने का अंदाज हो या कर्ण प्रिय संगीत ये सब आपको आरके बैनर में ही देखने को मिलेगा। हिन्दी फिल्मों में राजकपूर को पहला शोमैन माना जाता है क्योंकि उनकी फिल्मों में वो सब कुछ होता था जो लोगों को चाहए होता था। यानी मौज-मस्ती, प्रेम, हिंसा , अध्यात्म और समाजवाद ।

    राजकपूर हिंदी सिनेमा के महानतम शोमैन थे जिन्होंने कई बार सामान्य कहानी पर इतनी भव्यता से फिल्में बनाईं कि दर्शक बार-बार देखकर भी नहीं अघाते। है। राजकपूर वास्तविक शोमैन थे। उनकी फिल्म में हमें समाजिक बुराइयां और उनके समाधान की भी बातें हमें देखने को मिली। आवारा, श्री 420, जिस देश में गंगा बहती है , प्रेम रोग, सत्यम शिवम सुदंरम जैसी इस बात की प्रमाणिकता को साबित करती हैं।

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    राजकपूर में हमें महान अभिनेता चार्ली चैपलिन की झलक दिखायी देती है ।उन्होंने चैपलिन को भारतीय जामा पहनाया जो बेहद लोकप्रिय और आकर्षक था,जिसने देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी धाक मनवाई। राजकपूर ही थे जिन्हें विदेश में भी लोकप्रियता हासिल हुई, रूस के लोग आज भी इस महानायक को याद करते हैं। राजकपूर एक संपूर्ण फिल्मकार के रूप में हिंदी सिनेमा का महत्वपूर्ण हिस्सा बने रहे। उनकी फिल्मों मे शंकर जयकिशन, ख्वाजा अहमद अब्बास, शैलेंद्र, हसरत जयपुरी, मुकेश, राधू करमाकर सरीखे नामों की अहम भूमिका रही। वे केवल फिल्मकार ही नहीं बल्कि एक संयोजक भी थे।

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    राजकपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर अपने दौर के प्रमुख सितारों में से थे लेकिन फिल्मों में राजकपूर की शुरुआत चौथे असिस्टेंट के रूप में हुई थी। समीक्षकों के अनुसार उनकी फिल्मों को मोटे तौर पर दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। एक ओर प्रेम प्रधान फिल्में हैं जिनमें आग, बरसात, संगम, बॉबी आदि हैं। दूसरी श्रेणी उन फिल्मों की है जिनमें स्वतंत्रता के बाद की पीढ़ी के सपने नजर आते हैं और आजादी के बाद सब कुछ ठीक हो जाने का सपना है।

    बतौर निर्माता-निर्देशक राजकपूर अंत तक दर्शकों की पसंद को समझने में कामयाब रहे। 1985 में प्रदर्शित राम तेरी गंगा मैली की कामयाबी से इसे समझा जा सकता है जबकि उस दौर में वीडियो के आगमन ने हिंदी सिनेमा को काफी नुकसान पहुंचाया था और बड़ी-बड़ी फिल्मों को अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल रही थी। राम तेरी गंगा मैली के बाद वह हिना पर काम कर रहे थे पर नियति को यह मंजूर नहीं था और दादा साहब फाल्के सहित विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित महान फिल्मकार का दो जून 1988 को निधन हो गया।

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    आज हमारे बीच में राजकपूर नहीं है लेकिन उनकी सोच और विचार जरूर हमारे बीच में हैं, हां इसे समय की मार कहेंगे या दुर्भाग्य की आज आरके बैनर की हालत बेहद दयनीय है, आर के स्टूडियो ने आ अब लौट चले के बाद कोई फिल्म नहीं बनायी है लेकिन हां अब राजकपूर की नवासी करीना कपूर ने फिर से आर के स्टूडियो यानी राजकपूर के सपने को जिंदा करने की कोशिश की है।

    खबर है कि करीना स्टूडियो को फिर से चलाने जा रही है और राजकपूर के बेटे ऋषि कपूर एक फिल्म डायरेक्ट करने जा रहे हैं जिसमें उनके बेटे रणबीर कपूर लीड रोल में होंगे। चलिए देर से सही लेकिन कपूर खानदान ने ये कदम उठाया जो वाकई में तारीफे काबिल है। जो उनका अपने प्रिय पिता और शो मैन राजकपूर के प्रति सच्ची निष्ठा और प्रेम का सबूत है।

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