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    अक्षय कुमार के साथ एक मुलाक़ात

    By Staff
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    अक्षय कुमार के साथ एक मुलाक़ात

    बीबीसी हिंदी सेवा के विशेष कार्यक्रम 'एक मुलाक़ात' में हम भारत के जाने-माने लोगों की ज़िंदगी के अनछुए पहलुओं से आपको अवगत कराते हैं. हम आपकी मुलाक़ात करवा रहे हैं बहुत ही ख़ास मेहमान से, जो जितने हैंडसम और सेक्सी हैं उससे भी ज़्यादा फ़िट हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड स्टार अक्षय कुमार की. आपका नाम ध्यान में आते ही ज़हन में पहला सवाल आता है कि कोई आदमी लगातार इतना फ़िट कैसे रह सकता है. ज़िदगी में एक चीज़ होती है जिसका नाम लालच है और मुझे लगातार अच्छा काम करने का लालच है. आज मैंने जो कुछ भी पाया है, जिस मुक़ाम पर पहुँचा हूँ भगवान की देन है, प्रशंसकों का प्यार और माँ-बाप का आशीर्वाद है. इन सभी बातों को ध्यान में रखकर मैं अपने आपको फ़िट रखने की कोशिश करता हूँ ताकि मेरे प्रशंसकों को मेरा काम देखकर निराश न होना पड़े. उन्हें ऐसा न लगे कि मज़ा नहीं आया. मैंने आज तक जितनी भी फ़िल्में की हैं उसमें कमर्शियलिटी को हमेशा दिमाग में रखा है और कमर्शियली हीरो को फ़िट होना ही चाहिए. इसके लिए मैं हमेशा नई-नई चीज़ें करता रहता हूँ. फ़िलहाल मैं पाको की ट्रेनिंग ले रहा हूँ. मैं पाँच साल बाद एक बार फिर एक्शन करने जा रहा हूँ. पिछले पाँच साल के दौरान मैंने या तो कॉमेडी की या इमोशनल रोल किया है. लोग शुरू कहते थे कि अक्षय कुमार सिर्फ़ एक्शन कर सकता है तो मुझे यह दिखाना था कि मैं ये भी कर सकता हूँ लेकिन अब मैं फिर एक्शन करना चाहता हूँ.

    बीबीसी हिंदी सेवा के विशेष कार्यक्रम 'एक मुलाक़ात' में हम भारत के जाने-माने लोगों की ज़िंदगी के अनछुए पहलुओं से आपको अवगत कराते हैं.

    हम आपकी मुलाक़ात करवा रहे हैं बहुत ही ख़ास मेहमान से, जो जितने हैंडसम और सेक्सी हैं उससे भी ज़्यादा फ़िट हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड स्टार अक्षय कुमार की.

    आपका नाम ध्यान में आते ही ज़हन में पहला सवाल आता है कि कोई आदमी लगातार इतना फ़िट कैसे रह सकता है.

    ज़िदगी में एक चीज़ होती है जिसका नाम लालच है और मुझे लगातार अच्छा काम करने का लालच है. आज मैंने जो कुछ भी पाया है, जिस मुक़ाम पर पहुँचा हूँ भगवान की देन है, प्रशंसकों का प्यार और माँ-बाप का आशीर्वाद है. इन सभी बातों को ध्यान में रखकर मैं अपने आपको फ़िट रखने की कोशिश करता हूँ ताकि मेरे प्रशंसकों को मेरा काम देखकर निराश न होना पड़े. उन्हें ऐसा न लगे कि मज़ा नहीं आया.

    मैंने आज तक जितनी भी फ़िल्में की हैं उसमें कमर्शियलिटी को हमेशा दिमाग में रखा है और कमर्शियली हीरो को फ़िट होना ही चाहिए. इसके लिए मैं हमेशा नई-नई चीज़ें करता रहता हूँ. फ़िलहाल मैं पाको की ट्रेनिंग ले रहा हूँ. मैं पाँच साल बाद एक बार फिर एक्शन करने जा रहा हूँ. पिछले पाँच साल के दौरान मैंने या तो कॉमेडी की या इमोशनल रोल किया है. लोग शुरू कहते थे कि अक्षय कुमार सिर्फ़ एक्शन कर सकता है तो मुझे यह दिखाना था कि मैं ये भी कर सकता हूँ लेकिन अब मैं फिर एक्शन करना चाहता हूँ.

    अभी एक मैग्ज़ीन ने टॉप स्टार्स में आपको शामिल किया था. लेकिन ऐसा किया है कि इतना सफल होने के बावजूद आपको दुनिया से बड़ा स्टार कहलवाने में ज़्यादा ज़ोर लगाना पड़ा? आप दुरुस्त फ़रमा रहे हैं. मैंने कभी अपने आपको प्रमोट नहीं किया और अपने लिए पीआर एजेंसी नहीं रखी. शुरू में सिर्फ़ काम पर ध्यान दिया और मुझे लगता था कि काम बोलेगा. हालाँकि मुझे बाद में समझ में आया कि पीआर ज़रूरी है और अब मैंने इस पर ध्यान देना शुरू किया है. कभी आपने सोचा था कि इतने बड़े स्टार बनेंगे? बिल्कुल नहीं सोचा था. मुझे तो यह भी नहीं पता था कि स्टार क्या होता है. मैं मुंबई आया था लोगों को मार्शल आर्ट सिखाने फिर मॉडल बन गया. इसके बाद किसी ने पूछा फ़िल्मों में काम करोगे और मैं इसके लिए तैयार हो गया. मैंने ज़िंदगी में कैमरा पहली बार तब देखा था जब उसे फ़ेस करने के लिए आया. मेरे लिए तो सबसे बड़ी कामयाबी वो थी जब मेरी पहली फ़िल्म 'सौगंध' का ट्रायल देखने मेरे माँ-बाप और मेरी बहन आई थी. उसके बाद तो जो भी मिला है बोनस ही है. जैसे-जैसे वक़्त बढ़ता गया मेरा रोमांच तो ख़त्म हो गया लेकिन मेरे घर वाले हर फ़िल्म को लेकर उतना ही उत्साहित रहते हैं. फ़िल्म चाहे कितनी भी बड़ी फ़्लॉप क्यों न हो वे लोग तीन-चार बार ज़रूर देखते हैं. आपने कितनी ख़ूबसूरत बात कही है. दरअसल यह दिखाता है कि घरवालों से मिलने वाले प्यार को लेकर आप कितने संवेदनशील हैं. माँ-बाप का प्यार और आशीर्वाद सफलता के लिए ज़रूरी है. इसलिए जब भी कोई पूछता है कि आप अपने दर्शकों से क्या कहना चाहते हैं तो मैं हमेशा कहता हूँ कि अपने माँ-बाप का चरण छूकर दिन और ज़िंदगी शुरू करें. अगर आप ऐसा करते हैं तो सफलता आपके क़दम चूमेगी. यह मैंने अपनी ज़िंदगी में तो देखा ही है, कई दूसरे लोगों के बारे में भी यह अनुभव किया है. कामयाब लोगों के जीवन में यह आपको कॉमन दिखेगा. भगवान कहीं और नहीं होता है, वो आपके माँ-बाप में बसते हैं. आप किसी दूसरे देश में थे और बताया कि मुंबई मार्शल आर्ट सिखाने आए थे. फ़िल्मों में आने के बारे में कैसे सोचा? यह सब अचानक हो गया. प्रमोद चक्रवर्ती जी ने देखा और पूछा कि फ़िल्म करोगे? मैंने कहा बिल्कुल, तो उन्होंने पाँच हज़ार के चेक थमा दिया. इसकी भी एक कमाल की कहानी है. भगवान भी कमाल की स्क्रिप्ट लिखता है. हुआ यूँ कि मुझे मॉडलिंग के लिए शाम सात बजे की फ़्लाइट से बंगलौर जाना था. मैं और मेरे घर में सब बहुत खुश थे. इसके लिए 15 हज़ार मिलने वाले थे. उस दिन सुबह पाँच बजे उठा और वर्क-अप करने के बाद बैठा था कि साढ़े छह बजे मेरे फ़ोन की घंटी बजी और दूसरी तरफ से पूछा गया कि आप कहाँ है? मैंने कहा कि घर में हूँ. उधर से आवाज़ आई कि आपका दिमाग ख़राब हो गया है, आपको फ़्लाइट पकड़नी थी. दरअसल जिसे मैं शाम की फ़्लाइट समझ रहा था वह सुबह की फ़्लाइट थी. मैंने कहा कि मैं आता हूँ तब तक उधर से फ़ोन रख दिया गया. इसके बाद पूरा दिन मैं परेशान रहा. शाम को मैं नटराज स्टूडियो में एक मॉडल कॉर्डिनेटर को फ़ोटो दिखाने गया था. उसको फ़ोटो दिखाने के बाद प्रमोद चक्रवर्ती जी मिले, मेरे फ़ोटो देखे और पूछा कि फ़िल्म करोगे. मैंने कहा कि जी करूंगा, क्या करना होगा. उन्होंने कहा कि ये लो पाँच हज़ार का चेक. मैंने उस समय घड़ी देखी तो शाम के सात बज रहे थे. अगर मैंने वो फ़्लाइट पकड़ ली होती तो ये सब नहीं होता. इसके बाद मैंने पीछे पलटकर नहीं देखा. इसलिए मैंने कहा कि भगवान सबसे बड़ा स्क्रिप्ट राइटर है. आपको पहली बार कब यह महसूस हुआ कि आप स्टार बन गए है? क्या वो दिन आपको याद है? वो दिन बीतते गए, उस पर मैंने उतना ध्यान नहीं दिया. जीवन में कुछ विशेष दिन होते हैं जिसे आप हमेशा याद रखते हैं बाकी हिट-फ़्लॉप तो लगा ही रहता है. मैं ये ज़रूर कहँगा कि मेरा ग्राफ़ ऊपर-नीचे होता रहा है लेकिन अभी बहुत अच्छा चल रहा है. लोग कहते हैं कि 'लेडी किलर' हो तो अक्षय कुमार जैसा, यह टैग नाम के साथ जुड़ने से कैसे लगता है? यह सब शादी के पहले की बात है. शादी के बाद मुझे अपना यह क्राउन किसी दूसरे को देना पड़ा. अब मैं अपने परिवार के साथ ख़ुश हूँ और यह सब नहीं करना चाहता हूँ. अपना क्राउन किसको दिया? यह नहीं बताऊंगा. सीक्रेट है. वैसे तो यह सवाल मुझे किसी ऐसे व्यक्ति से पूछना चाहिए जो आपको बहुत पसंद करता हो लेकिन फ़िलहाल आपसे पूछता हूँ कि आप में ऐसा क्या है कि लड़कियाँ आप पर इतना मरती हैं? मैं लेडी किलर नहीं हूँ, मैं उन्हें आकर्षित करता हूँ. मैं उनका मनोरंजन करता हूँ और उन्हें अपना मुरीद बनाता हूँ. यह बात सिर्फ़ महिलाओं के साथ नहीं है, बच्चे और पुरुष भी मुझे पसंद करते हैं. मुझे लेडी किलर कहना सही नहीं है. शायद मेरी ईमानदारी. मैं हर काम को ईमानदारी से करने की कोशिश करता हूँ. चाहे एक्टिंग हो या आपके साथ इंटरव्यू हो, मैं हर चीज़ दिल से करता हूँ, जो कहना है कह देता हूँ और जोड़-तोड़ नहीं करता. कभी-कभी डिप्लोमैटिक भी होता हूँ ताकि दूसरों को कष्ट न पहुँचे. बड़े-बुज़ुर्गों की इज़्ज़त करता हूँ. मुझे लगता है कि इन सब चीज़ों से ही महिलाओं और दूसरों को आकर्षित कर पाता हूँ. मार्शल आर्ट में दिलचस्पी कैसे पैदा हुई? मेरे एक पड़ोसी की वजह से मार्शल आर्ट में दिलचस्पी पैदा हुई. मैंने देखा था कि वह मुझसे कमजोर हुआ करता था लेकिन मार्शल आर्ट शुरू करने के बाद मैंने उसमें कई बदलाव देखे. वह जीवन के प्रति काफ़ी सकारात्मक हो गया था. उससे प्रभावित होकर मैं भी करने लगा. मेरे पिताजी ने भी हमेशा समर्थन किया, वह सेना में थे. आपने कभी सेना में जाने के बारे में सोचा था? मैं मर्चेंट नेवी में जाने के बारे में सोचा था लेकिन जैसा कि मैंने पहले कहा कि ज़िंदगी ने कुछ और सोच रखा था. अच्छा ये बताइए कि फ़िल्म इंडस्ट्री ने आपको इतना कुछ दिया है लेकिन आपको इसके बारे में सबसे अच्छा क्या लगता है? हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री दुनिया में सबसे बड़ी है, हॉलीवुड से भी बड़ी. करोड़ों लोगों का मनोरंजन करती है. हिंदुस्तान में मनोरंजन का दो ही साधन है फ़िल्म और क्रिकेट. मुझे लगता है कि यह मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है कि मेरे पास इतने लोगों के मनोरंजन करने का मौक़ा है. और फ़िल्म इंडस्ट्री के बारे में बुरा क्या लगता है? जब फ़िल्म किसी वजह से लटक जाती है और प्रोड्यूसर का पैसा बर्बाद होता है तो बुरा लगता है. इसके अलावा लोग कई बार टेबल वर्क और स्क्रिप्ट पर बराबर काम नहीं करते हैं और कहते हैं कि फिर से शूटिंग करनी पड़ेगी तो बहुत बुरा लगता है. इन बातों का अगर ध्यान रखें तो बहुत सारे पैसे बच सकते हैं. लोग कहते हैं कि आप यारों के यार है और कई बार बहुत कम पैसे पर भी काम कर लेते हैं. जहाँ तक फ़िल्मों का सवाल है तो मेरा कितना भी क़रीबी दोस्त हो अगर मुझे स्क्रिप्ट पसंद नहीं आती तो मैं नहीं करता हूँ. क्योंकि मेरे हिसाब से वह फ़िल्म नहीं चलेगी और मैं नहीं चाहता कि किसी का नुक़सान हो. यह अलग बात है कि कई बार फ़िल्म चल भी जाती है. जहाँ तक पैसे की बात है तो जब मुझे लगता है कि प्रोड्यूसर का काफ़ी नुकसान हो रहा है तो फिर वह मेरा दोस्त न भी हो तो भी मैं इस मामले में नरमी बरतता हूँ. आपकी अपनी पसंदीदा फ़िल्में कौन सी हैं? 'संघर्ष', 'जानवर' और 'जानेमन'. ये अलग बात है कि संघर्ष चली नहीं लेकिन मैंने इसके लिए बहुत मेहनत की थी. कॉमेडी में टाइमिंग का बहुत बड़ा महत्व होता है. आप अपने भीतर इसको डेवलेप करते हैं या फिर ऐसे ही हैं? कॉमेडी करना बहुत कठिन काम है और यह रिस्की भी है. देखिए जब आप कोई गंभीर फ़िल्म देख रहे होते हैं तो बोर भी हो रहे होते हैं तो भी देखते हैं. लेकिन कॉमेडी फ़िल्म में अगर कोई हँस नहीं रहा होता है तो उसी वक़्त समझ में आ जाता है कोई गड़बड़ी हो गई है. गोविंदा, महमूद और संजीव कुमार इस मामले में ज़बरदस्त हैं. संजीव कुमार मेरे पसंदीदा हैं और सीरियस कॉमेडी किसे कहते हैं मैंने उनसे सीखी है. उनसे सीखा जा सकता है कि कैसे कोई कठिन दौर से गुज़रते हुए भी दूसरों को हँसा सकता है. मेरी फ़िल्म 'वेलकम' में कुछ-कुछ ऐसा ही है. मैं जिससे प्यार करता हूँ उससे शादी नहीं कर सकता क्योंकि मेरे ससुराल वाले अंडरवर्ल्ड से जुड़े हैं और मेरे घरवाले उस परिवार में शादी के लिए तैयार नहीं हैं. इस फ़िल्म में मैं एक एक्शन हीरो हूँ जो बहुत डरपोक होता है. मेरा रोल ऐसा है कि एक बार हीरोइन चारों तरफ से आग से घिर जाती है और महिलाएं मुझे उसे बचाने के लिए अंदर ढकेल देती हैं. लेकिन मैं बेहोश हो जाता हूँ और हीरोइन कैटरीन कैफ़ मुझे आग से बचाकर कंधे पर लेकर बाहर आती हैं.

    अभी एक मैग्ज़ीन ने टॉप स्टार्स में आपको शामिल किया था. लेकिन ऐसा किया है कि इतना सफल होने के बावजूद आपको दुनिया से बड़ा स्टार कहलवाने में ज़्यादा ज़ोर लगाना पड़ा?

    आप दुरुस्त फ़रमा रहे हैं. मैंने कभी अपने आपको प्रमोट नहीं किया और अपने लिए पीआर एजेंसी नहीं रखी. शुरू में सिर्फ़ काम पर ध्यान दिया और मुझे लगता था कि काम बोलेगा. हालाँकि मुझे बाद में समझ में आया कि पीआर ज़रूरी है और अब मैंने इस पर ध्यान देना शुरू किया है.

    कभी आपने सोचा था कि इतने बड़े स्टार बनेंगे?

    बिल्कुल नहीं सोचा था. मुझे तो यह भी नहीं पता था कि स्टार क्या होता है. मैं मुंबई आया था लोगों को मार्शल आर्ट सिखाने फिर मॉडल बन गया. इसके बाद किसी ने पूछा फ़िल्मों में काम करोगे और मैं इसके लिए तैयार हो गया. मैंने ज़िंदगी में कैमरा पहली बार तब देखा था जब उसे फ़ेस करने के लिए आया.

    मेरे लिए तो सबसे बड़ी कामयाबी वो थी जब मेरी पहली फ़िल्म 'सौगंध' का ट्रायल देखने मेरे माँ-बाप और मेरी बहन आई थी. उसके बाद तो जो भी मिला है बोनस ही है. जैसे-जैसे वक़्त बढ़ता गया मेरा रोमांच तो ख़त्म हो गया लेकिन मेरे घर वाले हर फ़िल्म को लेकर उतना ही उत्साहित रहते हैं. फ़िल्म चाहे कितनी भी बड़ी फ़्लॉप क्यों न हो वे लोग तीन-चार बार ज़रूर देखते हैं.

    आपने कितनी ख़ूबसूरत बात कही है. दरअसल यह दिखाता है कि घरवालों से मिलने वाले प्यार को लेकर आप कितने संवेदनशील हैं.

    माँ-बाप का प्यार और आशीर्वाद सफलता के लिए ज़रूरी है. इसलिए जब भी कोई पूछता है कि आप अपने दर्शकों से क्या कहना चाहते हैं तो मैं हमेशा कहता हूँ कि अपने माँ-बाप का चरण छूकर दिन और ज़िंदगी शुरू करें. अगर आप ऐसा करते हैं तो सफलता आपके क़दम चूमेगी. यह मैंने अपनी ज़िंदगी में तो देखा ही है, कई दूसरे लोगों के बारे में भी यह अनुभव किया है. कामयाब लोगों के जीवन में यह आपको कॉमन दिखेगा. भगवान कहीं और नहीं होता है, वो आपके माँ-बाप में बसते हैं.

    आप किसी दूसरे देश में थे और बताया कि मुंबई मार्शल आर्ट सिखाने आए थे. फ़िल्मों में आने के बारे में कैसे सोचा?

    यह सब अचानक हो गया. प्रमोद चक्रवर्ती जी ने देखा और पूछा कि फ़िल्म करोगे? मैंने कहा बिल्कुल, तो उन्होंने पाँच हज़ार के चेक थमा दिया. इसकी भी एक कमाल की कहानी है. भगवान भी कमाल की स्क्रिप्ट लिखता है.

    हुआ यूँ कि मुझे मॉडलिंग के लिए शाम सात बजे की फ़्लाइट से बंगलौर जाना था. मैं और मेरे घर में सब बहुत खुश थे. इसके लिए 15 हज़ार मिलने वाले थे. उस दिन सुबह पाँच बजे उठा और वर्क-अप करने के बाद बैठा था कि साढ़े छह बजे मेरे फ़ोन की घंटी बजी और दूसरी तरफ से पूछा गया कि आप कहाँ है?

    मैंने कहा कि घर में हूँ. उधर से आवाज़ आई कि आपका दिमाग ख़राब हो गया है, आपको फ़्लाइट पकड़नी थी. दरअसल जिसे मैं शाम की फ़्लाइट समझ रहा था वह सुबह की फ़्लाइट थी. मैंने कहा कि मैं आता हूँ तब तक उधर से फ़ोन रख दिया गया.

    इसके बाद पूरा दिन मैं परेशान रहा. शाम को मैं नटराज स्टूडियो में एक मॉडल कॉर्डिनेटर को फ़ोटो दिखाने गया था. उसको फ़ोटो दिखाने के बाद प्रमोद चक्रवर्ती जी मिले, मेरे फ़ोटो देखे और पूछा कि फ़िल्म करोगे. मैंने कहा कि जी करूंगा, क्या करना होगा. उन्होंने कहा कि ये लो पाँच हज़ार का चेक. मैंने उस समय घड़ी देखी तो शाम के सात बज रहे थे. अगर मैंने वो फ़्लाइट पकड़ ली होती तो ये सब नहीं होता. इसके बाद मैंने पीछे पलटकर नहीं देखा. इसलिए मैंने कहा कि भगवान सबसे बड़ा स्क्रिप्ट राइटर है.

    आपको पहली बार कब यह महसूस हुआ कि आप स्टार बन गए है? क्या वो दिन आपको याद है?

    वो दिन बीतते गए, उस पर मैंने उतना ध्यान नहीं दिया. जीवन में कुछ विशेष दिन होते हैं जिसे आप हमेशा याद रखते हैं बाकी हिट-फ़्लॉप तो लगा ही रहता है. मैं ये ज़रूर कहँगा कि मेरा ग्राफ़ ऊपर-नीचे होता रहा है लेकिन अभी बहुत अच्छा चल रहा है.

    लोग कहते हैं कि 'लेडी किलर' हो तो अक्षय कुमार जैसा, यह टैग नाम के साथ जुड़ने से कैसे लगता है?

    यह सब शादी के पहले की बात है. शादी के बाद मुझे अपना यह क्राउन किसी दूसरे को देना पड़ा. अब मैं अपने परिवार के साथ ख़ुश हूँ और यह सब नहीं करना चाहता हूँ.

    अपना क्राउन किसको दिया?

    यह नहीं बताऊंगा. सीक्रेट है.

    वैसे तो यह सवाल मुझे किसी ऐसे व्यक्ति से पूछना चाहिए जो आपको बहुत पसंद करता हो लेकिन फ़िलहाल आपसे पूछता हूँ कि आप में ऐसा क्या है कि लड़कियाँ आप पर इतना मरती हैं?

    मैं लेडी किलर नहीं हूँ, मैं उन्हें आकर्षित करता हूँ. मैं उनका मनोरंजन करता हूँ और उन्हें अपना मुरीद बनाता हूँ. यह बात सिर्फ़ महिलाओं के साथ नहीं है, बच्चे और पुरुष भी मुझे पसंद करते हैं. मुझे लेडी किलर कहना सही नहीं है.

    शायद मेरी ईमानदारी. मैं हर काम को ईमानदारी से करने की कोशिश करता हूँ. चाहे एक्टिंग हो या आपके साथ इंटरव्यू हो, मैं हर चीज़ दिल से करता हूँ, जो कहना है कह देता हूँ और जोड़-तोड़ नहीं करता. कभी-कभी डिप्लोमैटिक भी होता हूँ ताकि दूसरों को कष्ट न पहुँचे. बड़े-बुज़ुर्गों की इज़्ज़त करता हूँ. मुझे लगता है कि इन सब चीज़ों से ही महिलाओं और दूसरों को आकर्षित कर पाता हूँ.

    मार्शल आर्ट में दिलचस्पी कैसे पैदा हुई?

    मेरे एक पड़ोसी की वजह से मार्शल आर्ट में दिलचस्पी पैदा हुई. मैंने देखा था कि वह मुझसे कमजोर हुआ करता था लेकिन मार्शल आर्ट शुरू करने के बाद मैंने उसमें कई बदलाव देखे. वह जीवन के प्रति काफ़ी सकारात्मक हो गया था. उससे प्रभावित होकर मैं भी करने लगा. मेरे पिताजी ने भी हमेशा समर्थन किया, वह सेना में थे.

    आपने कभी सेना में जाने के बारे में सोचा था?

    मैं मर्चेंट नेवी में जाने के बारे में सोचा था लेकिन जैसा कि मैंने पहले कहा कि ज़िंदगी ने कुछ और सोच रखा था.

    अच्छा ये बताइए कि फ़िल्म इंडस्ट्री ने आपको इतना कुछ दिया है लेकिन आपको इसके बारे में सबसे अच्छा क्या लगता है?

    हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री दुनिया में सबसे बड़ी है, हॉलीवुड से भी बड़ी. करोड़ों लोगों का मनोरंजन करती है. हिंदुस्तान में मनोरंजन का दो ही साधन है फ़िल्म और क्रिकेट. मुझे लगता है कि यह मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य है कि मेरे पास इतने लोगों के मनोरंजन करने का मौक़ा है.

    और फ़िल्म इंडस्ट्री के बारे में बुरा क्या लगता है?

    जब फ़िल्म किसी वजह से लटक जाती है और प्रोड्यूसर का पैसा बर्बाद होता है तो बुरा लगता है. इसके अलावा लोग कई बार टेबल वर्क और स्क्रिप्ट पर बराबर काम नहीं करते हैं और कहते हैं कि फिर से शूटिंग करनी पड़ेगी तो बहुत बुरा लगता है. इन बातों का अगर ध्यान रखें तो बहुत सारे पैसे बच सकते हैं.

    लोग कहते हैं कि आप यारों के यार है और कई बार बहुत कम पैसे पर भी काम कर लेते हैं.

    जहाँ तक फ़िल्मों का सवाल है तो मेरा कितना भी क़रीबी दोस्त हो अगर मुझे स्क्रिप्ट पसंद नहीं आती तो मैं नहीं करता हूँ. क्योंकि मेरे हिसाब से वह फ़िल्म नहीं चलेगी और मैं नहीं चाहता कि किसी का नुक़सान हो. यह अलग बात है कि कई बार फ़िल्म चल भी जाती है. जहाँ तक पैसे की बात है तो जब मुझे लगता है कि प्रोड्यूसर का काफ़ी नुकसान हो रहा है तो फिर वह मेरा दोस्त न भी हो तो भी मैं इस मामले में नरमी बरतता हूँ.

    आपकी अपनी पसंदीदा फ़िल्में कौन सी हैं?

    'संघर्ष', 'जानवर' और 'जानेमन'. ये अलग बात है कि संघर्ष चली नहीं लेकिन मैंने इसके लिए बहुत मेहनत की थी.

    कॉमेडी में टाइमिंग का बहुत बड़ा महत्व होता है. आप अपने भीतर इसको डेवलेप करते हैं या फिर ऐसे ही हैं?

    कॉमेडी करना बहुत कठिन काम है और यह रिस्की भी है. देखिए जब आप कोई गंभीर फ़िल्म देख रहे होते हैं तो बोर भी हो रहे होते हैं तो भी देखते हैं. लेकिन कॉमेडी फ़िल्म में अगर कोई हँस नहीं रहा होता है तो उसी वक़्त समझ में आ जाता है कोई गड़बड़ी हो गई है. गोविंदा, महमूद और संजीव कुमार इस मामले में ज़बरदस्त हैं. संजीव कुमार मेरे पसंदीदा हैं और सीरियस कॉमेडी किसे कहते हैं मैंने उनसे सीखी है. उनसे सीखा जा सकता है कि कैसे कोई कठिन दौर से गुज़रते हुए भी दूसरों को हँसा सकता है.

    मेरी फ़िल्म 'वेलकम' में कुछ-कुछ ऐसा ही है. मैं जिससे प्यार करता हूँ उससे शादी नहीं कर सकता क्योंकि मेरे ससुराल वाले अंडरवर्ल्ड से जुड़े हैं और मेरे घरवाले उस परिवार में शादी के लिए तैयार नहीं हैं. इस फ़िल्म में मैं एक एक्शन हीरो हूँ जो बहुत डरपोक होता है. मेरा रोल ऐसा है कि एक बार हीरोइन चारों तरफ से आग से घिर जाती है और महिलाएं मुझे उसे बचाने के लिए अंदर ढकेल देती हैं. लेकिन मैं बेहोश हो जाता हूँ और हीरोइन कैटरीन कैफ़ मुझे आग से बचाकर कंधे पर लेकर बाहर आती हैं.

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