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धोबी घाट की सबसे कमजोर कड़ी आमिर
यह फिल्म में मुंबई पर लिखे गए कुछ फुटकर नोट जैसी है। जिसे हर व्यक्ति अपने-अपने ढंग से लेने के लिए स्वतंत्र है। कहानी कुछ ऐसा है कि महानगर में मौजूद हर वर्ग का आदमी किसी ना किसी कहानी में अपना अक्स तलाश लेगा। फिल्म में मसाला, भावुकता, प्यार एक भी ऐसा तत्व नहीं है जो आपको फिल्म में रोके रखने के लिए या आपको अच्छा लगाने के लिए या सहज महसूस कराने के लिए डाला गया हो। पूरी की पूरी फिल्म ऐसा बेफिक्री के साथ बनाई गई है जो बॉलीवुड में सर्वाधिक नया प्रयोग है। ये सहजता, ईमानदारी और लयबद्धता फिल्म के एक नवोदित निर्देशक का प्रयोग है, ये विश्वास करना थोड़ा मुश्किल लगता है।
डाक्यूमेंट्री
मुंबई पर गढ़ी गयी ये फिल्म एक डाक्यूमेंट्री है। जिसमें हर वर्ग का प्रतिनिधित्व करता एक शख्स मौजूद है। फिल्म इन्ही प्रतिनिधियों के अंतर्संबंधों को विश्लेषित करती है। वह प्यार नहीं परोसती और जिंदगी जाने का कोई दर्शन भी नहीं देता लेकिन बेहद स्वाभाविक ढंग से दुनिया के सबसे कटु यथार्थ का एहसास कराती है। कड़वा सच कि दुनिया में जब तक सामाजिक ताने-बाने अलग हैं तब तक दुनिया के किसी भी शख्स के बीच सच्चा प्रेम नहीं पनप सकता है। हां एक कथित सद्भाव हर जगह के अच्छे लोगों के बीच मिल सकता है।
अच्छे
लोगों
की
सीमाएं
यह
फिल्म
अच्छे
लोगों
के
बीच
की
सीमाओं
की
कहानी
है।
कहानी
का
कोई
भी
किरदार
बुरा
नहीं
है।
यहां
तक
कि
मुन्ना
के
चाचा
का
लड़का
सलीम
भी
अंडरवर्ल्ड
का
बंदा
होने
और
घर
में
बूढ़ी
मां
के
सामने
ठाठ
से
शराब
पीने
के
बाद
भी
दुनिया
का
सबसे
अच्छा
इंसान
है।
क्योंकि
अब
भी
वह
अपने
घर
के
लोगों
के
प्रति
इमानदार
और
संवेदनशील
है।
इस
बेरहम
मुंबई
ने
उसकी
स्वाभाविकता
को
अब
तक
डकारा
नहीं
है।
यास्मीन
भी
दुनिया
के
उन
चंद
अच्छे
लोगों
मे
से
है
जो
अपनी
अपने
अंचिम
समय
तक
नहीं
समझ
पाते
कि
दुनिया
में
कोई
बुरा
भी
हो
सकता
है।
यहां
तक
कि
उसके
खुद
के
पति
की
दूसरी
पत्नी
भी।
आमिर सबसे कमजोर
कभी आगे, कभी पीछे दौड़ती इन कहानियों में सबसे कटा और सरफिरा किरदार है पेंटर अरुण। किरण का पेंटर के लिए आमिर को चुनना एक गलत निर्णय रहा। आमिर अपनी पिछली फिल्मों से एक सेंटीमीटर भी आगे नहीं निकलते। वह इस फिल्म का सबसे कमजोर किरदार हैं। एक ऐसा किरदार जिसके लिए किरण की उलझन भी कहानी में साफ नजर आती है कि वह उसके माध्यम से कहना क्या चाहती हैं? शाय और मुन्ना के बीच का सबसे नाजुक और कच्चा रिश्ता भी अपरोक्ष रूप से अरुण की वजह से ही टूटता है। और इधर अरुण दीन-दुनिया से बेखबर यास्मीन की आत्महत्या का मातम मना रहा है।
बेहतर शुरुआत
यह बेरहम दुनिया यास्मीन जैसे अच्छे लोगों को सिवाय मरने के कोई और विकल्प नहीं थमाती। इसकी बेचैनी और खौफ से लड़ता-डरता अरुण फिर से मकान बदल देता है। लेकिन यास्मीन की कहानी उसकी पेंटिंग की जुबानी दुनिया के सामने बाहर आ जाती है, बिकने के लिए, शाय के उद्योगपति मां-बाप जैसे लोगों के ड्राइंगरूम में सजने के लिए। पर उसके आगे क्या, बस यही यह फिल्म बता रही है, दुनिया के हर वर्ग का अंतर्संबंध। इन कहानियों के प्रतिनिधि सलीम, मुन्ना, शाय और इन सबके बीच फंसा अरुण जो हर जगह असहज है। पैसे की इस दुनिया में लोगों के बीच अंतर्संबंधों का ये ईमानदार कोलाज साल 2011 के लिए बॉलीवुड की एक बेहतर शुरुआत है।