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'ईश्वर से प्रार्थना है रहमान को ऑस्कर मिले'
ग्रैमी पुरस्कार मिलने के बाद मुंबई में बीबीसी संवाददाता दुर्गेश उपाध्याय ने ज़ाकिर हुसैन से बात की.
सबसे पहले तो आपको बधाई हो, ये बताइए कि ग्रैमी पुरस्कार हासिल करने के बाद कैसा महसूस कर रहे हैं?
इस ख़ास मौके पर मैं अपने पिता जी को याद कर रहा हूँ. वो आज होते तो कितना अच्छा होता. उनकी वजह से ही मेरी इस दुनिया में तबले पर शुरुआत हुई. उनकी ही वजह से मैं इस लायक बना कि दुनिया भर में जाकर इतने बड़े कलाकारों के साथ काम कर सकूं. ऐसे में जब कि ये पुरस्कार मुझे मिला है, मेरा मानना है कि ये मेरे पिता जी की तरफ से एक आशीर्वाद है.
मेरे हिसाब से पुरस्कार पाना एक स्टेशन से गुजरने जैसा होता है. जो आपके सफर में आता है,वहां कुछ लोग आपसे मिलते हैं, आपके काम की चर्चा करते हैं, सराहना करते हैं
बाकी सवाल रहा ग्रैमी का तो ऐसा है कि जो भी वहां के सदस्य होते हैं वो सभी कलाकार ही होते हैं चाहे वो गायक हों, लेखक हों, तंत्रवादक हों, और उन्हीं लोगों से वोट मिलता है. निश्चित रुप से मुझे खुशी हुई.
अच्छा ये बताइए कि सत्रह सालों बाद आप ये ग्रैमी पुरस्कार दोबारा हासिल कर रहे हैं, कितना महत्व है इस पुरस्कार का आपके लिए?
निश्चित रुप से पुरस्कार मेरे लिए मायने रखते हैं. मेरे हिसाब से पुरस्कार पाना एक स्टेशन से गुजरने जैसा होता है. जो आपके सफर में आता है,वहां कुछ लोग आपसे मिलते हैं, आपके काम की चर्चा करते हैं, सराहना करते हैं. ये पुरस्कार एक तरह की प्रेरणा है जो आपको सिखाती है कि जो आप कर रहे हैं वो सही कर रहे हैं और आप अपनी दिशा में आगे बढ़ते जाएं.
आजकल भारतीय संगीतज्ञों को विदेशों में काफी सराहा जा रहा है. अभी हाल ही में एआर रहमान को विश्व प्रसिद्ध गोल्डन ग्लोब पुरस्कार मिला है, कैसे देखते हैं आप इस बदलाव को?
ज़ाकिर हुसैन अपनी सफलता को पिता का आशीर्वाद मानते हैं
ये हिंदुस्तान के लिए बड़े फ़क्र की बात है कि आज हिंदुस्तानी कलाकारों को पूरी दुनिया में इज्ज़त मिल रही है और ये स्वीकार किया जा रहा है कि भारतीय संगीत सुना जाए, परखा जाए और उसकी तारीफ़ की जाए. तो मुझे ऐसा लगता है कि एआर रहमान को जो पुरस्कार मिला है वो एक बहुत अच्छा क़दम है क्योंकि मेरे हिसाब से वो एक उत्कृष्ट कलाकार हैं. ऐसे उत्कृष्ट कलाकार को ये पुरस्कार मिलना ही चाहिए. मैं तो भगवान से ये प्रार्थना कर रहा हूं कि उन्हें ऑस्कर भी हासिल हो.
गोल्डन ड्रम प्रोजेक्ट जिसके लिए आपको ये ग्रैमी पुरस्कार मिला है, उसके बारे में बताइए कैसा अनुभव रहा?
जो भी कलाकार मेरे साथ इस एलबम में काम कर रहे हैं ये वही कलाकार हैं जो सत्रह साल पहले भी थे. अनुभव काफी अच्छा रहा है. अब आप तबले को देखिए कहां से कहां पहुंच गया है. पहले एक ज़माने में ये केवल क्लासिकल संगीत में ही इस्तेमाल होता था, फिर फ़िल्मों में आया फिर ग़जल, पॉप म्यूजिक, रैप और अब पता नहीं कहाँ-कहाँ इस्तेमाल हो रहा है. तो इसका ये मतलब यही है कि इस साज को अलग-अलग शक्ल दी जा रही है. ठीक वैसे ही हम इस एलबम में यही कोशिश कर रहे हैं कि जो तंत्र वाद हैं उनमें समय के साथ कितनी उन्नति हुई है.
अच्छा ये बताइए कि आज चालीस साल बाद जब पीछे मुड़कर देखते हैं तो कैसा महसूस होता है, कैसी यात्रा रही है आपकी?
मेरे पिता जी कहा करते थे कि हमेशा शिष्य बने रहो कभी गुरु बनने की कोशिश मत करना. मुझे यही सही लगता है. आज भी मैं जब किसी शागिर्द को साज सिखाता हूं तो उसके साज बजाने के अंदाज़ से कुछ नया विचार मेरे दिमाग में आता है, तो हर रोज सीखने का दिन है और यही लगता है कि हर रोज एक नया दिन है.
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