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    दिबाकर के सामने शर्त ऱखी और तब की बॉम्बे टॉकीज: नवाजुद्दीन

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    इंडियन फिल्म इंडस्ट्री के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में बॉलीवुड के चार बड़े निर्देशक एक साथ मिलकर बॉम्बे टॉकीज फिल्म बना रहे हैं। बॉम्बे टॉकीज फिल्म जोया अख्तर, करन जौहर, अनुराग कश्यप और दिबाकर बैनर्जी की खुद की लिखी गयी शॉर्ट स्टोरीज पर आधारित है। दिबाकर बैनर्जी की शॉर्ट स्टोरी में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं नवाजु्द्दीन सिद्दिकी। नवाजु्द्दीन सिद्दिकी खुद को बहुत ही भाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें बॉम्बे टॉकीज जैसी एतिहासिक फिल्म का हिस्सा बनने का अवसर मिला। नवाजुद्दीन सिद्दिकी पिछले कई सालों से बॉलीवुड में अपनी एक पहचान बनाने के लिए लगातार मेहनत कर रहे हैं और दो साल पहले रिलीज हुई फिल्म कहानी से नवाज को एक पहचान मिली। नवाज का कहना है कि उन्हें पहचान कहानी से मिली लेकिन स्टारडम अऩुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर से मिला। नवाजुद्दीन सिद्दिकी से वनइंडिया की रिपोर्टर सोनिका मिश्रा की खास बातचीत के कुछ अंश इस तरह हैं।

    किस मुकाम पर जाने के लिए नवाजुद्दीन सिद्दिकी इतने सालों से बॉलीवड में स्ट्रगल करते हुए डटे रहे। कभी वापस जाने का ख्याल नहीं आया?

    मैं किस मुकाम पर जाना चाहता हूं ये तो मुझे खुद भी अभी तक पता नहीं है। मैंने इतना काम किया है इंडस्ट्री में पहले को मेरे अंदर जो चीज थी वो लोगों को समझ में नहीं आती थी लेकिन आज लोग मुझे पहचानते हैं और मुझे इस बात की खुशी है।

    आपने कहानी से लेकर तलाश तक काफी अलग-अलग तरह की भूमिकाएं की हैं। तो कितना मुश्किल होता है एक अलग तरह के किरदार से निकलकर बिल्कुल ही विपरीत किरदार में खुद को ढ़ालना?

    बिल्कुल काफी मुश्किल होता है। काफी वक्त भी लगता है एक किरदार से दूसरे किरदार में खुद को ढ़ालने में। मैं इस तरह की एक्टिंग में विश्वास नहीं रखता जिसमें लोग एक ही तरह की बॉडी लैंग्वेज और एक ही तरह की एक्टिंग करते हैं। मैं जो भी सोचता हूं अपने कैरेक्टर्स को लेकर वो कभी भी फिल्मो से इंस्पायर नही होता। मैं अपने आस पास के लोगों से प्रेरित होकर अपने किरदार निभाता हूं। उन्हीं को ध्यान में रखकर ही अपने किरदार निभाता हूं। क्योंकि मैने एक्टिंग सीखी है एक्टिंग पढ़ी है और एक्टिंग में काफी स्ट्रगल किया है।

    कहानी फिल्म से पहले लोग आपका चेहरा पहचानते थे लेकिन कहानी के बाद लोग आपका नाम जानने लगे। कहानी के बाद ही आपको आत्मा, तलाश फिल्में मिली। तो क्या आप अपनी सफलता का श्रेय कहानी फिल्म को देगें?

    कहानी को नहीं गैंग्स ऑफ वासेपुर को। कहानी से एक बात हुई कि लोग मुझे जाने लगे। कहानी के बाद अगर गैंग्स ऑफ वासेपुर नहीं आती तो लोग मुझे सपोर्टिंग एक्टर बना कर रख देते। थैंक गॉड की उसके बाद गैंग्स ऑफ वासेपुर आई और लोगों ने मुझे मेन लीड में सोचना शुरु किया। कहानी काफी चली लेकिन गैंग्स ऑफ वासेपुर ने मुझे स्टारडम दिया है।

    बॉलीवुड में ग्लैमर के बारे में आप क्या कहेंगे?

    अगर इससे मेरी एक्टिंग में कोई फर्क पडे़गा तो मैं भी ग्लैमर की तरफ मुड़ जाउंगा। मैं ढ़ाई सौ रुपये का चश्मा भी पहनकर निकल जाता हूं और ढाई सौ रुपये की शर्ट, जींस भी पहन लेता हूं। हां अगर मुझे लगेगा कि 60 हजार के चश्मे से मेरी एक्टिंग में कोई फर्क पड़ेगा तो मैं जरुर उसे खरीदकर पहुनूंगा। लेकिन ग्लैमर से इन सब चीजों से कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं सिर्फ साफ दिल से काम करके आ जाता हूं और वही काफी है मेरे लिए। मैं ग्लैमर के बारे में नहीं सोचता।

    आपने अभी तक काफी ऑफ बीट फिल्में की हैं। तो आने वाले समय में क्या आप कमर्शियल सिनेमा की तरफ झुकेंगे?

    मैंने कौन सी कमर्शियल फिल्म नहीं की ये बताईये। आप लोगों के सोचने का ये तरीका बेहद गलत है। इंडस्ट्री ने फॉर्मूला फिल्मों के लिए ये शब्द यूज किया है जो कि बेहद गलत है। फॉर्मूला फिल्मों जो होती हैं जिनमें सिर्फ एक ही चीज दिखाई जाती है वो असल में फिल्में होती ही नहीं हैं। फिल्में तो ये होती हैं जो हम करते हैं। लोगों के दिमाग में ये सोच है कि जब तक मैं उस तरह की यानी फॉर्मूला फिल्में ना करुं तो मैं कमर्शियल एक्टर नहूीं हूं। मैं सब कमर्शियल फिल्में ही कर रहा हूं और मेरी सारी फिल्में चल भी रही हैं। ये बहुत ही अजीब सा स्टेटमेंट है जो लोग अधिकर मुझसे कहते है कि मैं कमर्शियल फिल्मे नहीं करता। कमर्शियल फिल्मों का मतलब क्या होता है। कमर्शियल का मतलब होता है जो प्रो़डक्ट बिक रहा हो और मेरी फिल्में बिक रही हैं। मेरे निर्देशकों और निर्माताओं को फायदा मिल रहा है तो इससे ज्यादा कमर्शियल क्या होगा। हां ये जो फॉर्मूला टाइप की फिल्में हैं वो ना तो मैंने पहली की हैं और ना अब करुंगा। इन फिल्मों में सिर्फ एक ही चीज दिखाई जाती है कि लड़की कैसे पटाई जाती है। हीरो हमारा लड़की के पीछे भाग रहा है। अगर आप लोग उसे ही सिनेमा मानते हैं तो मैं इस सिनेमा में विश्वास नहीं करता।

    बॉलीवुड कपूर, खान और बच्चन को ही मेन स्तंभ माना जाता है। इस बारे में आप क्या कहेंगे?

    मैं इस बारे में कुछ नहीं कहूंगा। वो हैं तो हैं। अगर रणबीर कपूर अच्छा काम कर रहे हैं तो मैं यही कहूंगा कि वो अच्छे एक्टर हैं अब वो फिल्मी बैकग्राउंड से हैं तो इससे क्या मतलब। उनके बारे में अच्छा बोलना ही होगा।

    दिबाकर ने कहा वो सात सालों से आपके साथ काम करने का इंतजार कर रहे थे। दिबाकर के साथ काम करके कैसा लगा आपको?

    दिबाकर बैनर्जी काफी काबिल निर्देशक हैं। वो हमारी इंडस्ट्री के यंग निर्देशकों में से एक हैं जब मैंने उनके साथ काम किया तो मुझे महसूस हुआ कि दिबाकर को किरदारों की स्क्रिप्ट की काफी अच्छी नॉलेज है। वो काफी जानकार हैं। उनके साथ आप बैठो तो वो आपको वीकिपीडिया जैसे लगेंगे जिन्हें हर एक जीत की नॉलेज है। दिबाकर की डिटेलिंग ने मुझे बहुत इप्रेस किया।

    कई लोग आपके बारे में काफी कुछ निगेटिव लिखते हैं कि आप भी शॉर्ट टेंपर्ड हैं। कई लोग तो आपको नाना पाटेकर से भी जोड़ते हैं। असलियत में नवाजुद्दीन कैसे हैं?

    मैं बिल्कुल भी शॉर्ट टैंपर्ड नहूीं हूं और ना ही मुझे गुस्सा आता है। मैं नाना की तरह तो बिल्कुल हूं ही नहीं। वो काफी कॉफिडेंस हैं। मेरे से ज्यादा मजाकिया आदमी आपको मिलेगा नहीं। मैं लोगों को काफी हंसाता था। मैं पहले कॉमेडियन था तो लोगों को अभी भी हंसाता हूं। मेरे अंदर दो निगिेटव प्वाइंट हैं वो पहला कि मेरे अंदर बिल्कुल कॉफिडेंस नहीं है और दूसरा कि मैं काफी कंफ्यूज्ड हूं।

    नवाजुद्दीन सिद्दिकी के इंटरव्यू के कुछ अंश

    English summary
    Nawazuddin Siddiqui is playing lead role in Dibakare Banerjee's short story in Bombay Talkies. Nawazuddin Siddiqui says that he is proud to be a part of Bombay Talkies as these 4 directors are the pillar of Film Industry.
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