twitter
    For Quick Alerts
    ALLOW NOTIFICATIONS  
    For Daily Alerts

    Exclusive - जोश एप पर Let's Play Antakshari चैलेंज से बेहतर ट्रिब्यूट नहीं हो सकता - ममता शर्मा

    |

    21 जून को वर्ल्ड म्यूज़िक डे पर जोश एप ने 21 जून से 27 जून दिन का अंताक्षरी चैलेंज शुरू किया है जिससे बड़े बड़े कलाकार जुड़ चुके हैं और लगातार फैन्स को इंटरटेन कर रहे हैं। ऐसी ही एक कलाकार हैं ममता शर्मा जिन्होंने मुन्नी बदनाम गाने से बॉलीवुड में तहलका मचा दिया था। ममता शर्मा एक गायिका हैं जिन्हें अपने गाने के लिए ढेरों अवार्ड्स और नॉमिनेशन मिले। पढ़िए सार्थक चौधरी के साथ जोश एप के अंताक्षरी चैलेंज खेलने के बाद उनकी ये खास बातचीत।

    आजकल आपकी ज़िंदगी में क्या चल रहा है और आप कैसे इंजॉय कर रही हैं?

    आजकल चीज़ें बहुत बदल चुकी हैं। बहुत सारे restrictions लग चुके हैं। और उन नए नियमों के अनुसार रहने की कोशिश कर रहे हैं। कभी कभी आपको बाहर जाना पड़ रहा है। शूट के लिए भी जाना पड़ता है इसलिए थोड़ी दिक्कतें हो जाती हैं। बार बार बहुत सारे कोविड टेस्ट करवाने पड़ रहे हैं। तो वो भी थोड़ा सा अजीब हो जाता है। लेकिन ये सारे protocols हैं और मैं इनका पालन कर रही हूं। मैं लोगों से भी गुज़ारिश करती हूं कि इनका पालन करें। ढंग से मास्क पहनिए। हमारे लिए तो बहुत ज़्यादा मुश्किल हो जाता है मेकअप के ऊपर वो मास्क पहनना। हमसे ज़्यादा मुश्किल ये किसी के लिए नहीं हो सकता है। इसलिए आम लोगों को तो मास्क पहनने की आदत ज़्यादा अच्छे से फॉलो करनी चाहिए।

    let-s-play-antakshari-challenge-by-josh-app-is-the-best-initiative-i-came-across-says-mamta-sharma

    आप म्यूज़िक इंडस्ट्री से हैं जो अपने आप में वृहद है। कोई यहां पर गायक है, कोई प्रोड्यूसर, कोई कंपोज़र, कोई अरेंजर। आपने तो कई बेहतरीन और धमाकेदार गाने प्रोड्यूस किए हैं। ऐसे में आपको आपका फेवरिट गाना कौन सा लगता है जो आपको लगे कि ये मेरे करियर में नहीं होता तो मेरा करियर कुछ और होता।

    जो बॉलीवुड फिल्मों का प्रोडक्शन होता है, उसमें हमारी कोई ज़रूरत नहीं होती है। हम उसमें दखलअंदाज़ी नहीं कर सकते हैं। हमें पूरा एक ढांचा तैयार करके दिया जाता है - ये गाने के बोल हैं, ये ट्यून हैं और हमें बस गाना होता है। हमें ये तक बताया जाता है कि आपको कैसे एक्सप्रेशन के साथ गाना है। वो बहुत आसान होता है। तो गाना कैसे बना उसमें हमारा योगदान बहुत ज़्यादा नहीं होता है। हां रिकॉर्डिंग में हमारा योगदान ज़रूर होता है। एक गाना था - आ रे प्रीतम प्यारे, वो मेरे लिए काफी खास है। उस गाने के लिए मुझे रात में 1 बजे, वाजिद भाई का कॉल आया। उन्होंने मुझसे मेरा हाल चाल पूछा और कहा कि आ जाओ हमें एक गाना डब करना है। एक कच्चा का खाका बना है अभी ट्यून है और लिरिक्स हैं। मेरा अगले दिन कोलकाता में एक शो था। मैंने उन्हें इस बारे में बताया। और मुझे सुबह 8 बजे की फ्लाईट से निकलना था। मैंने उनसे गुज़ारिश करते हुए कहा कि अगर आप कहें तो मैं अभी आकर डब कर दूं। लेकिन उस वक्त गाने में ट्रैक के नाम पर केवल basic chords थे और एक beat था। और कुछ भी नहीं था। लेकिन मैंने कहा कि मैं कर दूंगी डबिंग। तो रात के 3 - 4 बजे मैं स्टूडियो पहुंची और जब मैंने गाना सुना और उसे डब किया तो वहां पर जितने भी लोग थे - साजिद वाजिद सर, गीतकार समीर सर, रिकॉर्डिस्ट सबने उसकी तारीफ की। उन्होंने कहा (हंसते हुए) कि क्या 'रापचिक' गाना लग रहा है। और ये मैंने सुबह के 4 - 5 बजे ये सोचकर किया था कि अभी केवल कच्चा कच्चा, आईडिया के लिए डब किया है। लेकिन वही डबिंग, ओरिजिनल गाने में इस्तेमाल की गई। मैंने उस गाने को दोबारा डब नहीं किया। उसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ी। मैं आज तक सोचती हूं कि सुबह के पांच बजे इतना भयानक एनर्जी आया कहां से। मुझे सच में इस बारे में कोई आईडिया नहीं है। क्योंकि मैं देर से उठने वाली इंसान हूं। मैं जल्दी नहीं उठ सकती हूं। तो रात में उस समय जो एनर्जी थी वो आज तक मैं उस गाने में नहीं डाल पाई। कभी कभी स्टेज पर भी गाती हूं तो उससे कम ही एनर्जी लगती है जो मैंने उस समय गाया था। ये बस भगवान का आशीर्वाद है और साजिद - वाजिद भाई का मार्गदर्शन का कमाल था। उन्होंने मुझसे कहा कि बस तू सोच ले कि तू ये स्टेज पर गा रही है और धमाल कर दे। और वाकई मैं उसे आज भी सुनती हूं तो लगता है कि मैं स्टेज पर हूं और पूरे पावर के साथ ये गाना गाया। इसलिए ये गाना मेरे लिए बहुत स्पेशल है। क्योंकि मुझे लगा अभी कच्चा कच्चा रिकॉर्ड कर देती हूं बाद में फाईनल होगा लेकिन वही फाईनल रिकॉर्डिंग थी।

    मतलब एक ही बार में आपने पूरा सीन ही खत्म कर दिया।
    हां सच में और इस पूरे काम में मुश्किल से आधा घंटा लगा।

    अक्सर हम लोग सुनते हैं कि कॉमर्शियल गानों पर काफी पैसा खर्च होता है। लेकिन जब हम एकल गानों की बात करते हैं, तो कहीं ना कहीं, बजट टाईट हो जाता है। हमें लगता है कि क्या इस पर इतना पैसा लगाना सही होगा। दिमाग में कई चीज़ें चलने लगती हैं। आपने ये दोनों चीज़ें की हैं तो आपको ज़्यादा क्या पसंद है - कॉमर्शियल गाने या स्वतंत्र गाने।

    आप देखिए प्यार दोनों चीज़ों से हैं। आप समझने की कोशिश कीजिएगा। कॉमर्शियल या फिल्मों या बॉलीवुड गानों में क्या होता है ना कि किसी की सोच होती है जो वृहद होती है। स्वतंत्र म्यूज़िक में भी वही सोच है। उस पर किसी की पाबंदी नहीं होती है। वो तो पैसे के कारण वो पाबंदियां लगानी पड़ती हैं। इसलिए वो अमीर और गरीब गाना लगने लगता है लेकिन दोनों ही गानों की सोच समान होती है। हर कोई बड़ा ही सोचता है। अब मान लीजिए कि आपको खीर बनानी है। तो खीर में काजू पड़ेगा, मूंगफली पड़ेगी या कुछ भी नहीं पड़ेगा ये नहीं पता लेकिन मीठा तो डलेगा ही। चावल और दूध भी पड़ेगा ही। ये ज़रूरी है।
    (हंसते हुए) - मुझे खाने से बहुत प्यार है इसलिए आपको ऐसे ही उदाहरण दूंगी, माफ कीजिएगा। लेकिन मतलब यही है कि बॉलीवुड के पास सारे महंगे मेवे हैं, तो वो सब डालकर खीर जितनी गाढ़ी पकाई जाए, उतना बढ़िया पकती है। स्वतंत्र म्यूज़िक में क्या होता है कि हमारे पास थोड़ी सी पाबंदियां होती हैं लेकिन सब निर्भर करता है कि आप गाने को सजाते कैसे हैं। खीर केवल काजू से भी स्वादिष्ट बन सकती है और खीर बहुत सारे मेवे डालकर भी स्वादिष्ट लग सकती है। इसलिए ये आपकी चॉइस होती है और हम इसे बेहतरीन बनाने की कोशिश करते हैं। स्वतंत्र म्यूज़िक में भी मान लीजिए कि एक रूपये का बजट है तो 15 पैसा भी बचाने की कोशिश नहीं की जाती है, सब लगा दिया जाता है। मैं ऐसी ही इंसान हूं। मैं अपना दिल और जान लगा देती हूं अपने गानों पर। जो मैं स्वतंत्र गाने कर रही हूं उसमें भी बहुत मज़ा है। और बॉलीवुड का अपना मज़ा है क्योंकि वहां पर स्टार्स होते हैं, आपका गाना रातों रात, बहुत लोगों तक पहुंच पाता है। और ये सब एक सपने जैसा होता है। लोगों के सपने परदे पर दिखाई देते हैं। जो आप सच कर पाते हैं। स्वतंत्र म्यूज़िक के साथ क्या होता है कि थोड़ी सी पाबंदियों में काम करना पड़ता है लेकिन वो भी आपको सपने ही दिखाता है। हां, लेकिन मुझे दोनों ही पसंद है।

    तो जैसा कि आपने कहा कि कुछ पाबंदियां होती हैं, सब चीज़ें नहीं हो पाती हैं। लेकिन कभी कभी क्या म्यूज़िक लेबेल या डायरेक्टर भी इन पाबंदियों के ज़िम्मेदार होते हैं? जैसे आपको किसी एक तरह से गाने को कहा जाए कि मुझे ऐसे ही चाहिए, किसी और तरह से नहीं चाहिए। क्या ये चीज़ें मुश्किल बढ़ाती हैं? आप पर असर डालती हैं?

    ये कभी कभी होता है। हमेशा नहीं होता है। लेकिन ये इसलिए होता है कि जैसे बॉलीवुड में किसी डायरेक्टर ने एक फिल्म किसी एक तरह से सोची हुई है। उनकी एक पूरा सोच है। उस गाने के पीछे भी एक सोच है। गाने को जिस तरह से फिल्माया गया है वो उनकी फिल्म से जुड़ा हुआ है। इसलिए वो गाने में एक निश्चित भाव या इमोशन चाहते हैं। एक तरह की आवाज़ चाहते हैं। वो अपनी सोच में बैठा लेते हैं कि इस गाने पर इसी तरह की आवाज़ चाहिए। और जब गायक, गाना गाने के लिए आता है तो डायरेक्टर उन्हें अपना ब्रीफ दे देता है कि उन्हें गाना किस तरह से चाहिए। स्वतंत्र म्यूज़िक में इस तरह का कुछ नहीं होता है। यहां पर पहले से ही कोई visuals दिमाग में नहीं होते हैं। गाना होता है, गाने की डबिंग होती है और जब गाना बनकर तैयार हो जाता है, तब आप सोचते हैं कि अच्छा इसे कैसे फिल्माया जा सकता है। क्या कहानी होनी चाहिए। तो बॉलीवुड इसके एकदम उल्टा है। वो पहले सोचता है कि ये सिचुएशन है, ऐसे visuals होंगे, इसके लिए हमें एक गाना चाहिए। इसलिए वहां पर पाबंदियां ज़्यादा हो जाती हैं जो कि ठीक भी है क्योंकि उस फिल्म को उसके डायरेक्टर से ज़्यादा कोई नहीं समझ सकता है, क्योंकि वो अपने दिमाग में सोच चुके हैं उस चीज़ को कई बार। तो मेरा मानना है कि एक सिंगर का काम केवल इतना होता है कि वो सबकी सोच को अच्छे से समझ पाए। कंपोज़र, डायरेक्टर और अपने भावनाओं को समझ कर गाने को गाना। तीनों चीज़ें जब मिला कर आप गाने में डाल देते हैं तो वो लोगों के दिल को छू जाता है।

    तो वो फिर एक घंटे में ही हो जाता है। (आ रे प्रीतम प्यारे के जैसे)
    (खुश होते हुए) हां, बिल्कुल। वो तो सच में यादगार रहेगा। एक घंटे में ऐसा पावरफुल और एनर्जी वाला गाना गा देना बहुत मुश्किल होता है।

    हाल ही में आपने जोश एप पर - Let's Play Antakshri नाम का एक शो किया है। कुछ बताइए, उसके बारे में। वो कैसे खेला जाता है और आखिर में ये चैलेंज है क्या?

    पहली बात तो मुझे ये पहल बहुत ही ज़्यादा पसंद आई। जोश एप, जो मुझे लगा, कि शायद लोगों को समझने की कोशिश कर रहा है। मैंने कल ही अंताक्षरी खेली है और मैं बताऊं आपको कि मैंने ये पता नहीं कितने साल बाद खेली है और मुझे याद भी नहीं है। खेलते वक्त जो उत्साह था तो मुझे लगा कि बड़ा कम समय था। मुझे लगता है कि एक एक - दो दो घंटा देना चाहिए किसी को इसका पूरा मज़ा लेने के लिए। तो जोश एप ने अंताक्षरी के जोश को बरकरार रखा है। और हम सब कलाकारों को इस Let's Play Antakshari चैलेंज के ज़रिए, बचपन की याद दिला दी। और इतने कठिन दौर में लोगों को वो थोड़े से पल दिए जो उन्हें स्कूल और कॉलेज के दिनों की याद दिला सके। अंताक्षरी ऐसी चीज़ है जो कभी पुरानी हो ही नहीं सकती है। और इसे आप किसी चीज़ से बांध नहीं सकते हैं। जोश ने उस याद को तरोताज़ा कर दिया। और ऐसे तनाव भरे माहौल से लोगों को बाहर निकाल दिया जो कि वाकई शानदार है। और इस पर 21 से लेकर 27 तारीख तक ये चलने वाली है जोश एप पर अंताक्षरी जहां लोग इसमें भाग ले सकते हैं। लोग लिप सिंक भी कर सकते हैं अपना फेवरिट गाना, वो इसके सबसे अच्छा पहलू है कि अगर आपको नहीं गाना है, अपनी आवाज़ नहीं देनी है तो आप बस एक्टिंग कर दीजिए गाना गाने की। ये बड़ा ही मज़ेदार था। मैं सच में इस बात के लिए प्रशंसा करती हूं कि जोश ने वाकई अंताक्षरी का जोश बरकरार रखा है।

    लेकिन आमतौर पर होता क्या है कि शो का नाम है Let's Play Antakshari लेकिन जब अंताक्षरी शब्द जो है ना जब भी हमारे दिमाग में आता है तो हमें पता होता है कि म से गाना है या फिर य से गाना है तो ये तीन गाने हैं जो हम पक्का गा देंगे। तो आप जब अंताक्षरी खेलने वाली होती हैं तो आपके दिमाग में पहले तीन गाने कौन से आते हैं?

    वो तो अक्षरों पर ज़्यादा निर्भर करता है। लेकिन एक तो मैं ठ से बहुत डरती हूं क्योंकि इससे बड़े ही कम गाने हैं। अगर ठ आ गया तो तीन बार के बाद चौथा बार ठ आ गया तो लगता है कि अब क्या गाएंगे ठ से। और सबसे पहला गाना आता है ठ पे (गाते हुए) - ठंडे ठंडे पानी से नहाना चाहिए, गाना आए या ना आए गाना चाहिए। मुझे बड़ा पसंद है ये गाना। ठ से सबसे पहले यही गाना आता है मुझे। कुछ और गाना ही नहीं निकलता है मुंह से।

    एवरग्रीन गाना है ये।
    सच में! अभी कुछ सालों से म जब भी आता है तो मुन्नी बदनाम ही मेरा गाना होता। इसके बिना मेरी अंताक्षरी पूरी नहीं होती है भई। मैं इंतज़ार करती हूं कि कब मेरे ऊपर म अक्षर आए और मैं मुन्नी बदनाम हुई गाऊं। मुझे उस गाने से बहुत प्यार है। क्योंकि उस गाने ने तो मेरी ज़िंदगी ही बदल दी। इसलिए मैं इस गाने से बहुत प्यार करती हूं।

    लेकिन मैं एक बड़ा दिलचस्प सवाल पूछना चाहूंगा आपसे कि क्या कभी कोई मुन्नी आपसे टकराई है और उसने आपसे कहा हो कि ये क्या बोल दिया आपने मेरे बारे में!

    मुझसे तो नहीं टकराई है लेकिन हां मैंने ये खबर ज़रूर पढ़ी थी कि मुन्नी नाम की कुछ महिलाओं ने इस गाने के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था कि ऐसे क्यों हमारे नाम पर गाना बना दिया। लेकिन मेरा जो अनुभव रहा है कि मैं एक शादी में गई थी जहां एक नानी का नाम मुन्नी था और दादी का नाम मुन्नी था। और वो दोनों मेरे साथ स्टेज पर डांस कर रही थीं। वो इतना प्यारा सीन था। मतलब एक दादी और नानी, मुन्नी पर डांस कर रही हैं और बाकी सब लोग इतना मस्ती कर रहे थे। तो वो अनुभव मेरे लिए यादगार बन गया कि लोगों को सच में ये गाना बहुत पसंद है। वो इसे इंजॉय करते हैं। और मुझे लगता है कि बॉलीवुड गानों को इतना ज़्यादा सीरियस लेने का ज़रूरत नहीं है। क्योंकि देखा जाए तो वो मज़ाकिया गाना है। बिल्कुल तनाव दूर भगाने वाला। जैसे हमारे देश के folk songs होते हैं। ऐसा नहीं है कि किसी एक इंसान पर कोई इल्ज़ाम लगाना चाहते हैं। ऐसा कुछ नहीं है। ये केवल मज़ाक के लिए लिखा गया है। आप गाने के बोल देखिए। फिर ऐसे में तो सबसे ज़्यादा बुरा करीना को लगना चाहिए। शिल्पा सा फीगर - बेबो सी अदा। क्या क्या है उस गाने में। लेकिन कितना मज़ा आता है। आप इंजॉय करते हैं उस गाने को।

    मैंने कहीं कमेंट पढ़ा था। और वहां पर एक बड़ा दिलचस्प कमेंट था कि 80 और 90 के दशक में बड़े अच्छे गाने प्रोड्यूस होते थे लेकिन अब धीरे धीरे वो कला खो गई है और गानों का मतलब खो गया है। तो क्या आजकल के creators, लाईमलाईट में आने के लिए खराब कंटेंट परोस रहे हैं और गानों पर मेहनत नहीं कर रहे हैं? क्या बस इतनी कोशिश है कि कुछ ऐसा दिलचस्प परोस दिया जाए जो वायरल हो जाए?

    नहीं, मुझे लगता है कि 90 में माना गाने अच्छे थे लेकिन आज भी अच्छे गाने बन रहे हैं। कई ऐसे गाने हैं आज के जो बहुत ही ज़्यादा प्यारे हैं। आप कलंक का टाईटल सॉन्ग देखिए। ऐ दिल है मुश्किल देखिए। या आप मिथुन के गाने देखिए - (गाते हुए) - दिल का दरिया। ये सारे गाने। तो मुझे लगता है कि हर दशक में हर तरह के गाने हैं। और देखिए 90 के दशक के पहले भी, 80 के दशक में भी अलग स्टाईल के गाने थे। तो मुझे लगता है कि गाने का स्टाईल बदल गया है। और मुझे लगता है कि अभी जो गानों का स्टाईल चल रहा है वो शायरी टाईप स्टाईल चल रहा है। शायरी को ज़्यादा तवज्जो दी जा रही है मुझे लगता है। और ज़्यादातर लोगों से कनेक्ट करने वाले बोल चल रहे हैं जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी से कनेक्ट हो जाएं। जैसे पहले बहुत ही ज़्यादा शायराना होते थे, कवि की कल्पना जैसे जो रोज़ की ज़िंदगी से नहीं जोड़े जा सकते थे। लेकिन कल्पना से जुड़े थे जो लोगों को एक सपने जैसे लगते थे। आजकल जो शायरी का अंदाज़ चल रहा है वो रोज़ से जुड़ने वाला अंदाज़ है। जो आम आदमी आराम से समझ सके। बोलचाल के शब्द वाले। और इससे भी बड़ी बात ये है कि जितने भी लोग म्यूज़िक बना रहे हैं, ये सब उन 90 के दशक के म्यूज़िक बनाने वाले लोगों के फैन्स हैं। कोई नदीम - श्रवण फैन है, कोई ए आर रहमान फैन है, कोई कल्याण जी - आनंद जी के फैन हैं, कोई लक्ष्मीकांत जी के फैन हैं। तो उनके गाने को आगे रखकर जब आप गाना कंपोज़ कर रहे हैं और आज के फ्लेवर में उसको ढालने की कोशिश कर रहे हैं, तो वो थोड़ा सा अलग हो जाता है। लेकिन अगर हम कनेक्शन ढूंढना चाहें तो पहले भी ऐसे ही होता था। सारे गाने हिट नहीं होते थे। कुछ ही होते थे। मानिए, 10 गाने आए हैं तो उसमें से चार गाने हिट होंगे या छह गाने हिट होंगे और चार फ्लॉप हो जाएंगे। आज भी वही चीज़ हो रही है। 10 गाने आ रहे हैं तो चार हिट हैं, छह फ्लॉप हैं। ये सिलसिला हमेशा चलता ही रहेगा। और ये बहस भी हमेशा वाजिब रहेगी कि तब का अच्छा था। क्योंकि जो चीज़ जितनी पुरानी होती जाती है, उसकी कीमत बढ़ती जाती है। तो आज से जब आप चार साल बाद इस चीज़ पर बहस करेंगे तो कहेंगे कि नहीं 2021 में इससे अच्छे गाने बने थे। अब के अच्छे नहीं है।

    कोरोना के चलते इंडस्ट्री में कई बदलाव आए हैं। जैसे देखा जा रहा है कि गानों को बहुत ज़्यादा कम कर दिया गया है। और जिस तरह से OTT स्पेस बढ़ रहा है, वहां गानों की गुंजाइश काफी कम है। तो क्या ये आने वाले कलाकारों के लिए दिक्कत बढ़ाएगा? क्या लगता है आपको?

    ये बड़ी ही दिल तोड़ने वाली बात है। मैं बहुत ही फिल्मी इंसान हूं। मैं जब भी फिल्म देखती हूं, मुझे गानों का इंतज़ार रहता है। बैकग्राउंड म्यूज़िक का बड़ा इंतज़ार रहता है। क्योंकि मुझे गाने बहुत पसंद है। और जब फिल्म बहुत ही ज़्यादा realistic होने लगती है तो मुझे लगता है कि दो ही गाने अच्छे से डाल देते। जैसे पहले 8 गाने हुआ करते थे फिल्मों में। धीरे धीरे वो छह हुए। फिर धीरे धीरे वो चार हो गए। अभी धीरे धीरे दो हो गए थे और अब एक ही होता है जो केवल प्रमोशन के लिए इस्तेमाल किया जाता है। ये बड़ा ही दुखद है। खासतौर से हम कलाकारों के लिए। क्योंकि हम फिर अपना टैलेंट बॉलीवुड में कैसे दिखाएं? बड़े स्टार्स के साथ जुड़कर, हम अपना टैलेंट कैसे लोगों तक पहुंचाएं? क्योंकि उसका जो प्रभाव होता है वो बहुत ही अलग होता है। बहुत ही ज़्यादा शानदार होता है। आप स्वतंत्र म्यूज़िक से भी पहचान बना सकते हैं लेकिन अगर बॉलीवुड से तुलना करेंगे तो मुझे नहीं लगता कि एक स्वतंत्र कलाकार इतने अच्छे और बड़े स्तर पर इतनी जल्दी पहुंच पाएगा। उसे समय लगेगा। और गाने ही फिल्मों से कम हो जाएंगे तो गायकों के लिए बड़ी चुनौती होगी, खासतौर से उन गायकों के लिए जो खुद से कंपोज़ नहीं करते हैं। खुद से प्रोग्रामिंग नहीं जानते हैं। जो केवल गाना जानते हैं। तो उनकी तो रोज़ी - रोटी ही यही है। और अगर वो फिल्मों में नहीं गा रहे हैं तो जनता से कैसे कनेक्ट हो पाएंगे। स्टेज शो के लिए भी आपको आपके गाने चाहिए। तो ये वाकई थोड़ा चिंताजनक है। लेकिन मैं शुक्रगुज़ार हूं डिजिटल प्लेटफॉर्म और रियलिटी शो की जहां से ये सिंगर्स अपनी प्रतिभा, लोगों तक पहुंचा पा रहे हैं। और अपनी सिंगिंग की प्रतिभा दिखा पा रहा है। तो आर्टिस्ट एकदम से गायब नहीं हो गया है लेकिन फिर भी बॉलीवुड तो नंबर वन है।

    रीमेक गानों पर आपका रिएक्शन क्या रहता है। क्या लगता है कि पुराना वर्जन ज़्यादा अच्छा था, इसे रीमेक करके खराब कर दिया। कभी ऐसा आपके मन में आता है?

    कुछ गानों को सुनकर हां लगता है। लेकिन जो मुझे लगता है कि गानों को रीक्रिएट करना बहुत ही बड़ी ज़िम्मेदारी होती है। आप यूं ही किसी गाने को उठाकर, बीट बदलकर, दो लाईन बदल कर नहीं बना सकते हैं। क्योंकि गाने के साथ लोगों की भावनाएं जुड़ी होती हैं। आप उससे नहीं खेल सकते। आपकी फेवरिट पेंसिल, परफ्यूम, शर्ट भी अगर कोई पहनने लगे तो खराब लगने लगता है। दिमाग में लगता है कि ध्यान से रखना। वही वाला फील गानों के साथ होता है। कि ये मेरा फेवरिट है। तो जब आप रीक्रिएट कर रहे होते हैं तो आपके ऊपर दोगुनी ज़िम्मेदारी है। क्योंकि नए गाने से लोग जब जुड़ेंगे तब जुड़ेंगे। लेकिन जब वो पहले से किसी गाने से जुड़े हुए हैं तो उस गाने को दोबारा ऐसा बनाना कि लोग कहे वाह यार क्या कर दिया, वो ज़रूरी है। लेकिन आजकल कई गाने हैं जो केवल खानापूर्ति के लिए रीमिक्स हुए जा रहे हैं, तो वो दिल तोड़ता है। मैंने खुद अपने ऑफिशियल यूट्यूब चैनल पर ममता शर्मा पर कुछ गाने रीक्रिएट किए हैं। लेकिन मैंने ओरिजिनल गाने की खुश्बू बरकरार रखने की पूरी कोशिश की है। आप पूरे गाने का फील नहीं बदल सकते कि दाल में पास्ता का मसाला डाल दिया। तो फिर वो ना दाल रही ना पास्ता। ये नहीं होना चाहिए।

    तो आपके जो भी उदाहरण होते हैं वो खाने के इर्द - गिर्द ही होते हैं तो मैं आपसे पूछना चाहूंगा कि जब लॉकडाउन लगा था तो आपने कुछ एक्सपेरिमेंट किया?

    बिल्कुल। मैंने बहुत कुछ ट्राई किया और उसमें से कुछ तो बुरी तरह फेल भी हो गया। मैंने गार्लिक ब्रेड बनाया जो इतना कड़ा बना कि दांतों से चबाना मुश्किल था। उसे कूट कूट कर खाना पड़ा। हालांकि दो तीन रेसिपी बहुत हिट रहीं। और दो तीन बहुत ज़्यादा खराब। तो ये गानों जैसा ही था। लेकिन हां मैंने एक्सपेरिमेंट किया। जिसको गाना पसंद है ना, उसको खाना बहुत पसंद होता है। वरना वो अच्छा सिंगर नहीं हो सकता है। सारे अच्छे सिंगर बेहतरीन कुक होते हैं। आप आशा जी को देखिए, लता जी को देखिए।

    जोश फैन्स को आप क्या संदेश देना चाहेंगी जो संगीत से बहुत ज़्यादा प्रेम करते हैं?

    जोश फैन्स के लिए सबसे पहले कहना चाहूंगी कि आप ऐसे ही जोश में रहें और अच्छा कंटेंट बनाते रहें। क्योंकि जोश के जोश ने मुझे बड़ा जोश दिलाया। कल अंताक्षरी खेल कर मुझे बड़ा मज़ा आया। मैं हाल ही में जोश से जुड़ी हूं और मुझे इससे प्यार हो गया। क्योंकि ये लोगों के बारे में सोचता है। ये बहुत ही शानदार है। आपको मार्गदर्शन भी देता है कि आप ऐसे इंटरटेन हो सकते हैं और आपको प्लेटफॉर्म भी दे रहा है। जैसे सुगंधा अंताक्षरी होस्ट कर रही है। तो आपको ये सेलेब्स के साथ कनेक्ट भी कर रहा है कि आप उनके साथ खेल सकते हैं। तो आप लोग अपना जोश इसी तरह बरकरार रखिए और जोश पर कंटेंट बनाते रहिए। हमारे गाने सुनते रहिए।

    English summary
    Josh App is celebrating World Music Day from June 21 - 27 with Let’s Play Antakshari challenge. Mamta Sharma talks about the same.
    तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
    Enable
    x
    Notification Settings X
    Time Settings
    Done
    Clear Notification X
    Do you want to clear all the notifications from your inbox?
    Settings X
    X