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INTERVIEW: 'वही फिल्में करूंगी जो मुझे मेरा बेस्ट देने के लिए प्रेरित करे, वर्ना नहीं करूंगी'- शेफाली शाह
"ओटीटी मेरे लिए गेम चेंजर रहा है, फिल्मों में तो किसी ने चांस नहीं लिया", करियर में आए बदलाव और किरदारों के चुनाव पर बात करते हुए अभिनेत्री शेफाली शाह ने कहा। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार अपने नाम कर चुकीं अभिनेत्री अमेज़न प्राइम वीडियो की आगामी फिल्म 'जलसा' में विद्या बालन के साथ दिखने वाली हैं। फिल्म 18 मार्च को रिलीज होगी।
फिल्म 'रंगीला' से बॉलीवुड में कदम रखने वालीं प्रशंसित अभिनेत्री शेफाली शाह ने फिल्मों के साथ साथ टेलीविजन और वेब सीरीज की दुनिया भी खास जगह बनाई है। 90 के दशक में वो बनेगी अपनी बात (1993-97), हसरतें (1996-99), आरोहण (1996-97) और सी हॉक्स जैसे सफल टीवी शोज का हिस्सा रही थीं। वहीं, आज के समय में उनके आगामी प्रोजेक्ट्स की फेहरिस्त भी काफी लंबी है। अभिनेत्री कहती हैं- "अब मैं वही किरदार करना चाहती हूं, जो मुझे उत्साहित करे और मुझे मेरा बेस्ट देने के लिए प्रेरित करे।"
INTERVIEW: इंडस्ट्री में आए बदलाव, स्क्रिप्ट के चुनाव और सफलता पर बोलीं विद्या बालन
फिल्म जलसा की रिलीज से पहले शेफाली शाह ने मीडिया से खास बातचीत की, जहां उन्होंने ओटीटी पर अवसर मिलने, फिल्म उद्योग में आए बदलाव, विद्या बालन के साथ काम करने का अनुभव और रिजेक्शन का सामना करने पर खुलकर बातें की।
यहां पढ़ें इंटरव्यू से कुछ प्रमुख अंश-
'जलसा' में विद्या बालन के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
मैं विद्या के साथ काम करने को लेकर बहुत उत्साहित थीं। सबसे पहले तो इस फ़िल्म की स्क्रिप्ट ने मेरे दिल को छू लिया था.. दूसरी खुशी थी सुरेश त्रिवेणी के साथ काम करने की। और फिर जब उन्होंने बताया कि फिल्म में विद्या हैं, तो फिर मुझे और क्या ही चाहिए था। मैं विद्या की बहुत इज़्ज़त करती हूं और मुझे उनका काम बहुत पसंद है। उनकी सबसे खास बात है कि वह सच्ची और आत्मविश्वास से भरपूर हैं।
जलसा में आप एक हाउसहेल्प की भूमिका निभा रही हैं। किरदार की तैयारी करना कितना आसान या मुश्किल रहा?
हाउसहेल्प हम सबकी ज़िंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। हम बाहर निकलकर काम करते हैं, क्योंकि वो हैं। वो हमारे परिवार का हिस्सा हैं। लेकिन इस किरदार को निभाने के लिए मैंने किसी का रिफ्रेंस नहीं लिया है। रुखसाना (किरदार का नाम) का अपना एक व्यक्तित्व है। सच कहूं तो वो जैसे चलती है, उठती है- बैठती है, जैसे काम करती है, मैं भी वैसे ही करती हूं। मुझे कुकिंग करना, किचन में रहना बहुत पसंद है। तो ये किरदार मेरा ही विस्तार है। मुझे झाड़ू, पोछा, बरतन, कपड़ा करना अच्छा लगता है। मैं इसमें बहुत अच्छी हूं।
अपने करियर में आपने इतने मजबूत किरदार निभाए हैं। आपको लगता है कि इस वजह से इंडस्ट्री में आपको लेकर लोगों ने पहले ही धारणाएं बना रखी हैं?
हां, मुझे लेकर तो बहुत सारे स्टेरियोटाइप हैं। इसीलिए नहीं कि मैं मजबूत किरदार करती हूं, बल्कि मेरे कुछ चुनाव को लेकर हैं। मैं स्वीकार करना चाहूंगी कि मुझे इन धारणाओं को तोड़ने में काफी समय लगा। मैंने एक तरह से काम को ना ही कर दिया था। एक के बाद एक प्रोजेक्ट्स को मैंने करने से इंकार किया है। मुझे लगता है कि इंडस्ट्री में एक राय है मुझे लेकर.. मेरा काम देखकर सबको लगता है कि मैं बहुत गंभीर और दूसरों को दबाने वाली हूं.. या मुझसे बात करना बहुत मुश्किल होगा। मैंने ऐसी बहुत कहानियां सुनी हैं। लेकिन जब लोग मेरे साथ काम शुरु करते हैं, तो फिर उन्हें तुरंत समझ आ जाता है कि मैं कुछ और ही हूं।
प्रोजेक्ट्स के चुनाव को लेकर आपकी प्रक्रिया में कब बदलाव आया?
जिस तरह के रोल मुझे मिलने लगे, उससे मुझे पता चला कि लोगों के और निर्देशकों के ख्याल भी मेरे बारे में बदले हैं। जो कि बहुत महत्वपूर्ण है। पहले लोगों ने देखा कि एक फिल्म में मां का रोल किया है, तो फिर उन्होंने सोच लिया कि हर फिल्म में मैं वही करूंगी। सच कहूं तो मुझे मां के किरदार को करने में कोई परेशानी नहीं है। लेकिन जिस तरह से किरदार को आपके सामने रखा जा रहा है, मुझे उससे परेशानी होती थी। मुझे याद नहीं कि मैंने ऐसे कितने सारे रोल को ना किया है। अब मैं वही किरदार करना चाहती हूं, जो मुझे उत्साहित करे, मेरे दिल को छुए, जिससे मैं जुड़ाव महसूस करूं, खुशी महसूस करूं.. वर्ना फिर मैं नहीं करूंगी। मैं घर पर बैठूंगी।
ओटीटी के साथ आपके करियर को नई दिशा मिली है, इससे सहमत हैं?
बिल्कुल, मेरे लिए ओटीटी एक गेम चेंजर रहा है। फिल्म में तो किसी ने चांस नहीं लिया। लेकिन मैं ये भी बताना चाहूंगी कि जब 'दिल्ली क्राइम' बन रही थी कि तो हमें पता नहीं था कि ये कहां दिखाने वाले हैं। वो प्री- सोल्ड प्रोजेक्ट नहीं थी। Sundance फिल्म फेस्टिवल में स्क्रीनिंग के बाद ही इसका ओटीटी पर आना फाइनल हुआ। ओटीटी टैलेंट को सपोर्ट करता है, उन्हें शायद स्टार्स की जरूरत नहीं है। आज कई कलाकारों ने वहां अपनी जगह बनाई है। लेकिन हां, मेरे लिए यह हर तरह से गेम चेंजर रहा है, निसंदेह।
फिल्मों में रिजेक्शन का सामना करना पड़ा था?
रिजेक्शन तक तो मैं पहुंची ही नहीं; क्योंकि किसी ने कुछ महत्वपूर्ण ऑफर ही नहीं किया। लेकिन फिर भी याद करूं तो मुझे एक बार रिजेक्शन का सामना करना पड़ा था और ये एक बहुत बड़ी फिल्म थी। एक ऐसे डायरेक्टर, जिनके साथ मैं दिल से काम करना चाहती थी और उन्होंने मुझे कुछ ऐसा ऑफर किया था कि मैं बहुत ही उत्साहित थी। मैंने उस पर काम भी शुरु कर दिया था। लेकिन एक सुबह मैं उठी, और मैंने न्यूजपेपर में देखा कि वो रोल कोई एक्टर कर रही हैं। मैं मानती हूं कि अपनी फिल्म के लिए एक्टर का चुनाव करना हर डायरेक्टर का अधिकार है, लेकिन मुझे दुख इस बात था कि कम से कम एक कॉल करके मुझे जानकारी तो दे देते। उस पल मुझे दुख हुआ.. अपने लिए नहीं, उनके लिए। क्योंकि ये उनके व्यक्तित्व को बुरा दिखाता है।
पिछले कुछ सालों में आपने शॉर्ट फिल्मों का निर्देशन भी किया है। क्या इससे स्क्रिप्ट को अप्रोच करने के तरीके में बदलाव आया है?
मैंने दो शॉर्ट फिल्में डायरेक्ट की हैं और मुझे लगता है कि ये लत लगने जैसा है.. इसीलिए मैं ये जारी रखूंगी। वहीं, बतौर एक्टर मैं समझती हूं कि फिल्म एक निर्देशक का मीडियम है और जो भी स्क्रिप्ट मेरे पास आती है, उसे हां करने के पीछे एक बड़ा कारण फिल्म के निर्देशक ही होते हैं। हां, अपने रोल को लेकर मैं बहुत चर्चा करती हूं, बहुत सवाल जवाब करती हूं। लेकिन जैसे ही मैं सेट पर पहुंचती हूं तो मैं कभी डायरेक्टर के काम में अपने विचार नहीं थोपती। एक फिल्म उनका विजन होता है और मैं उस विजन का हिस्सा बनना चाहती हूं।
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