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'एकता कपूर बहुत प्रतिभाशाली हैं'
'चाणक्य" में 'कौटिल्य के रूप में नज़र आए द्विवेदी जी ने अपना एक दर्शक वर्ग तैयार तो किया मगर अफसोस अपने इस दर्शक वर्ग से न्याय नहीं कर पाए. 1990 में 'चाणक्य" बनाने के बाद उन्होंने 'एक और महाभारत" का निर्माण किया मगर इसमें वह असफल रहे. फिलहाल टेलीविजन पर एक बार फिर वह बॉबी बेदी के महाभारत के साथ नज़र आने वाले है. उन्हें उम्मीद है कि इस बार वह अपने दर्शकों को देश, काल, परिस्थितियों के अलावा उस समाज से भी परिचित कराएंगे जो अब तक मात्र उपनिषदों में समाया था.
महाभारत
ही
क्यों
?
मेरे
अनुसार
यदि
पराक्रम
बडा
करना
है
तो
उसके
लिए
बडी
चुनौतियां
होना
बहुत
ज़रूरी
है.
और
महाभारत
से
बडी
चुनौती
मुझे
कोई
दिखाई
नहीं
दी.
महाभारत
के
समाज
को
फिर
से
जीना
उसे
फिर
से
रचना
बहुत
बडी
चुनौती
है.
ऐसा
नहीं
है
कि
यह
चुनौती
मैंने
पहली
बार
ली
है.
इससे
पहले
भी
'एक
और
महाभारत"
के
माध्यम
से
मैंने
यह
चुनौती
ली
और
उसमें
असफल
हुआ.
वो
एक
ऐसा
अनुभव
था
जिससे
हमें
यह
सबक
मिला
कि
हम
दर्शकों
के
साथ
खेलवाड
नहीं
कर
सकते.
उस
अनुभव
से
हमनें
लाभ
ही
लिया
है.
सो
सत्य
का
निर्वाह
करते
हुए
लोगों
के
मन
में
बसी
छवि
के
नज़दिक
पहुंचने
की
कोहिश
में
हम
लगे
हैं.
क्या
वजह
है
कि
'महाभारत"
को
हिदी
की
बजाय
अंग्रेज़ी
में
'महाभारता"
लिखा
गया
है
?
यह
भाषा
का
दोष
है.
मैं
खुश
हू
कि
मैं
अपना
नाम
हमेशा
हिंदी
में
लिखता
हूं
क्योंकि
हिंदी
में
लिखे
हुए
को
आप
कितनी
भी
कोशिश
कीजिए
बदल
नहीं
सकते.
मगर
अंग्रेज़ी
भाषा
के
साथ
यह
सुविधा
है
कि
इसके
साथ
आप
चाहे
जितने
'ए"
लगाइए
या
'ओ"
लगाइए.
जहां
तक
हिंदी
में
'महाभारत"
के
न
लिखे
होने
का
कारण
है
कि
हम
एक
ऐसे
समाज
में
जी
रहे
हैं
जहां
हिंदी
वॉचमैन,
धोबी
तथा
अपने
नौकर
से
बोली
जाने
वाली
भाषा
समझी
जाती
है.
बावजूद
इसके
कि
हम
मीडिया
के
क्षेत्र
में
हैं
जहां
अधिकतर
लोगों
की
भाषा
हिंदी
है.
यदि
देखा
जाए
तो
इसके
लिए
असली
ज़िम्मेदार
हमारे
हिंदी
तथा
स्थानीय
भाषा
के
अखबार
हैं.
मैं
आपसे
पूछता
हूं
कितने
हिंदी
अखबार
हैं
जो
हिंदी
पुस्तकों
की
समीक्षा
लिखते
है.
अंग्रेज़ी
अखबारों
में
मैंने
यह
देखा
है.
हमारे
यहां
जब
तक
किसी
को
ज्ञानपीठ
पुरस्कार
न
मिल
जाए
तब
तक
हम
उसके
बारे
में
जानने
की
जहमत
नहीं
उठाते.
आप
बौद्धिक
निर्देशकों
में
से
एक
है
सो
आप
अपनी
बौद्धिकता
के
साथ
अपने
दर्शकों
को
कैसे
जोडेंगे
क्योंकि
टेलीविजन
दर्शक
ज़रूरी
नहीं
है
कि
आपकी
तरह
प्रबुद्ध
हो
?
देखिए
सबसे
पहली
बात
तो
मैं
आपको
बता
दूं
कि
मैं
नहीं
चाहता
कि
मेरे
मरने
के
बाद
मुझे
याद
किया
जाए.
और
यदि
याद
भी
रखा
जाए
तो
इसलिए
कि
मैंने
टेलीविजन
को
कुछ
बौद्धिक
कार्यक्रम
प्रदान
किए
हैं.
मेरा
मानना
है
कि
जब
मैं
कुछ
निर्माण
करूं
तो
उस
बारे
में
दर्शकों
को
अवगत
कराने
से
पहले
मैं
खुद
अच्छी
तरह
से
अवगत
हो
जाऊं.
श्याम
बेनेगल
(डिस्कवरी
ऑफ
इंडिया)
के
अलावा
मैंने
किसी
और
शख्स
को
नहीं
देखा
जिन्होंने
टेलीविजन
में
इसे
लाने
की
कोशिश
की
है.हमारे
यहां
ऐतिहासिक
कार्यक्रमों
का
निर्माण
हो
जाता
है
मगर
कोई
यह
नहीं
सोचता
कि
मौर्यकालीन
भवन
कैसे
रहे
होंगे.
उनकी
सभ्यता
कैसी
रही
होगी.
महाभारत
का
निर्माण
भी
इससे
पहले
हो
चुका
है
मगर
तब
भी
किसी
ने
यह
सोचने
की
कोशिश
नहीं
की
उनका
वास्तुशास्त्र
कैसा
रहा
होगा.
उनका
आधार
क्या
रहा
होगा.
हमनें
उपलब्ध
साहित्य
के
आधार
पर
उनकी
कल्पना
करने
की
कोशिश
की
है.
मैने
अक्सर
देखा
है
जब
साहित्य
मैजूद
नहीं
होता
है
तो
लोग
कल्पना
कर
लेते
हैं.
मेरे
अनुसार
कल्पना
भी
सत्य
का
एक
रूप
है.
'चाणक्य"
की
तरह
इस
कार्यक्रम
में
क्या
आप
नज़र
आएंगे
?
किसी
सूत्रधार
की
तरह
?
जी
नहीं
न
मैं
इसमें
नज़र
आऊंगा
और
न
कोई
और
सूत्रधार
के
रूप
में
नज़र
आने
वाला
है.
कहानी
बिल्कुल
सीधे
चलेगी,
जहां
जहां
ज़रूरत
पडी
है
वहां
कुछ
पात्रों
का
इतिहास
बताने
के
लिए
हम
फ्लैश
बैक
में
चले
गए
हैं.
आज
के
रिएलिटी
शो
के
दौर
में
माइथोलोजिकल
कार्यक्रमों
के
लिए
क्या
यह
सही
समय
है
?
देखिए
मैं
हमेशा
जब
भी
टेलीविजन
देखता
हूं
तो
मुझे
सब
कुछ
माइथोलोजिकल
ही
लगता
है
फर्क
सिर्फ
वेश
भूषा
में
होता
है.
सवाल
यह
है
कि
सत्य
के
हम
कितने
नज़दिक
है.
जब
तक
हम
सत्य
के
करीब
रहते
हैं
वह
हमारे
लिए
सत्य
होता
है
मगर
जैसे
ही
हम
सत्य
से
दूर
होते
जाते
हैं
वैसे
ही
वह
सत्य
मिथक
में
परिवर्तित
होता
चला
जाता
है.
अब
जैसे
कृष्ण
की
बात
लीजिए.
कृष्ण
सत्य
थे
या
मिथक.
आपको
यकीन
है
हमारे
बुजुर्गों
के
अलावा
हमारी
नई
पीढी
इस
'महाभारत"
से
खुद
को
जोडकर
देखेंगे
?
देखिए
पीढी
हमेशा
से
बदलती
रही
है
क्या
आपको
लगता
है
कि
हमें
कभी
अपने
महाकाव्यों
में
कोई
त्रुटि
नज़र
आई
हो.
मेरे
अनुसार
भाषा
अवरोध
नहीं
होनी
चाहिए.
मुझे
यकीन
है
हमारी
नई
पीढी
के
साथ
ऐसी
कोई
समस्या
नहीं
आएगी.
एकता
कपूर
भी
'महाभारत"
बनाने
जा
रही
हैं.
उस
संदर्भ
में
क्या
कहना
चाहेंगे
?
उनके
बारे
में
मैं
यही
कहूंगा
कि
वह
बहुत
प्रतिभाशाली
हैं.
उनके
पास
सफलता
का
पूरा
इतिहास
है.
मैं
उनके
अनुभवों
से
सीखना
चाहूंगा.
मुख्यत:
महाभारत
को
धर्म
और
अधर्म
से
जोडकर
देखा
जाता
है
आप
इसमें
कुछ
नए
दृष्टिकोण
लाना
चाहते
हैं.
यदि
इसे
लेकर
कोई
विवाद
होता
है
तो
आप
इसके
लिए
कितना
तैयार
हैं
?
मुझे
नहीं
लगता
कि
इसके
कारण
कोई
विवाद
होगा
क्योंकि
अब
तक
जिन्होंने
भी
'महाभारत"
का
निर्माण
किया
है
उनका
आधार
वेद
व्यास
ही
रहे
हैं.
हर
इंसान
का
अपना
सोचने
का
नज़रिया
होता
है.
मैं
समझता
हूं
जहां
भी
महाभारत
चुप
है
वहां
हम
कोई
बात
कह
सकते
हैं
मगर
यह
ज़रूरी
है
कि
वह
बात
सामाजिक
मर्यादा
को
ध्यान
में
रखकर
कही
गई
हो.
और
हम
पूरी
तरह
से
समाज
की
मर्यादा
का
निर्वाह
कर
रहे
हैं.
आपके
महाभारत
में
सारे
नए
कलाकार
होंगे
आपको
लगता
है
वह
दर्शकों
को
बांधे
रखने
में
सक्षम
साबित
होंगे
?
देखिए
हर
कलाकार
कभी
न
कभी
नया
ही
रहा
है.
उसने
किसी
न
किसी
कार्यक्रम
से
अपनी
शुरूआत
की
ही
होगी.
ऐसे
में
नए
पूराने
कलाकरों
की
बात
बेमानी
होगी.
वैसे
भी
'महाभारत"
में
मेरे
लिए
किरदार
महत्वपूर्ण
है
कलाकार
नहीं.
आप
एक
विज्ञान
के
विद्यार्थी
रहे
हैं.
फिर
भी
'महाभारत"
के
बारे
में
आपकी
व्यक्तिगत
राय
क्ता
है
?
आपके
सवाल
के
जवाब
में
मैं
सिर्फ
यही
कहना
चाहूगा
'अद्भूत".
आपने
कहा
था
कालिदास
ने
सात
महाकाव्य
रचे
हैं
मैं
भी
सात
महाकाव्यों
की
रचना
करूंगा.
उनके
बारे
में
बताइए
?
जी
ज़रूर
करूंगा.
'चाणक्य",
फिल्म
'पिंजर"
और
महाभारत
को
लेकर
तीन
हो
चुके
हैं
चार
बाकि
है.
वह
भी
जल्द
ही
कर
लूंगा.
फिलहाल
मैं
अभी
ईसा
से
300
वर्ष
पूर्व
की
एक
कहानी
पर
काम
कर
रहा
हूं
जिसके
बारे
में
मैं
बहुत
जल्द
घोषणा
करूंगा.
आप
पृथ्वीराज
चौहान
पर
फिल्म
बनाने
वाले
थे
उसका
क्या
हुआ
?
जी
हां
एक
समय
यह
फिल्म
बनाने
के
लिए
हम
काफी
उत्सुक
थे
मगर
कुछ
ऐसे
विवाद
हुए
कि
हमें
इस
फिल्म
को
ठंडे
बस्ते
में
डालना
पडा.
मज़े
की
बात
यह
है
कि
जब
मैंने
यह
फिल्म
बनाने
की
घोषणा
की
थी
तभी
हमारे
देश
के
एक
प्रतिष्ठित
निर्देशक
राजकुमार
संतोषी
जी
भी
इस
फिल्म
को
बनाना
चाहते
थे
मगर
अब
न
वो
बना
रहे
है
और
न
मैं.
इसके
अलावा
'अशोका"
भी
आप
बनाने
वाले
थे
उसका
क्या
हुआ
?
आपको
याद
होगा
'चाणक्य"
के
तुरंत
बाद
प्रकाश
मेहरा
ने
इस
सीरियल
को
बनाना
चाहा
था.
इसके
निर्देशन
के
लिए
उन्होंने
मुझे
ही
बुलाया
था
मगर
तब
तक
नए
चैनलों
के
साथ
दूरदर्शन
के
समीकरण
बदल
गए
थे.
साथ
ही
इस
कार्यक्रम
को
बनाने
के
लिए
जितनी
राशि
का
प्रावधान
उन्होंने
रखा
था
उसमें
यह
कार्यक्रम
बनना
नामुमकिन
था
सो
मैंने
उससे
इंकार
कर
दिया.
फिलहाल
प्रयास
जारी
है.
क्या
वजह
है
कि
ऐतिहासिक
चीज़ें
आपको
इतनी
प्रभावित
करती
हैं
?
(हंसते
हुए)
यह
तो
मैं
खुद
भी
नहीं
जानता.
मेरे
मित्र
कहते
हैं
लगता
है
पिछले
जन्म
में
तुम्हें
मोक्ष
नहीं
मिला
है
इसलिए
तुम
इतने
ऐतिहासिक
हो.
आज
युद्ध
का
स्वरूप
बदल
गया
है.
पहले
देश
के
लिए
युद्ध
होते
थे,
उसके
बाद
राज्य
के
लिए
होने
लगे
और
अब
जातिवाद
को
लेकर
कई
गुट
बन
गए
हैं.
इस
संदर्भ
में
आप
क्या
कहना
चाहेंगे
?
देखिए
इन्हीं
बातों
के
मद्देनज़र
मैं
महाभारत
के
माध्यम
से
यही
कहना
चाहूंगा
कि
क्या
लडाई
के
बाद
हमें
उन
सवालों
के
जवाब
मिल
जाते
हैं
जिनके
लिए
हम
युद्ध
करते
हैं.
यह
वाकई
बहुत
बडा
सवाल
है
जिस
पर
हम
सभी
को
सोचना
चाहिए.