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Exclusive Interview: "एक कलाकार के तौर पर हमारी जिम्मेदारी है कि हम इतिहास को जिंदा रखें"- विक्की कौशल
शूजित सरकार के निर्देशन में बनी फिल्म 'सरदार उधम' अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हो रही है। फिल्म में विक्की कौशल क्रांतिकारी सरदार उधम सिंह की भूमिका निभा रहे हैं। अपनी हर फिल्म के साथ दर्शकों के दिलों दिमाग पर छाप छोड़ने वाले अभिनेता विक्की कौशल इस किरदार को निभाने पर कहते हैं, "ये एक ऐसा मौका था, जो हर एक्टर की जिंदगी में एक बार ही आती है। मैं बहुत शुक्रगुजार हूं कि मुझे ये फिल्म मिली।"
अभिनेता कहते हैं, "ये एक कड़वा सच है कि बहुत लोगों को सरदार उधम की जानकारी नहीं है। बहुतों ने तो नाम भी नहीं सुना होगा। और इस पर मुझे हैरान भी नहीं होती है क्योंकि इनके बारे में हमारी इतिहास की किताबों में ज्यादा जानकारी ही नहीं है, तो लोगों को पता कैसे होगा। इसलिए भी हमारे लिए ये कहानी सबके सामने लाना बहुत खास और महत्वपूर्ण रहा।"
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'सरदार उधम' की रिलीज से पहले विक्की कौशल से फिल्मीबीट ने खास बातचीत की, जहां उन्होंने अपनी आगामी फिल्मों के साथ साथ अपने करियर, स्क्रिप्ट के चुनाव और शूजित सरकार के साथ काम करने के अनुभव को लेकर बातें की।
यहां पढ़ें इंटरव्यू से कुछ प्रमुख अंश-
फिल्म के ट्रेलर लॉन्च के दौरान आपने कहा था कि उधम सिंह की कहानी आप अपने घर में बचपन से सुनते आ रहे हैं। लेकिन स्क्रिप्ट के बारे में ऐसा क्या है जिससे आपको लगा कि आपको यह करना है?
मैं पंजाबी फैमिली से हूं तो जाहिर तौर पर एक कल्चरल जानकारी थी। मैं अपने मम्मी- पापा से उनकी कहानियां सुनता आया हूं, चाहे वो सरदार उधम हों या भगत सिंह हों.. और भी कई किस्से जो पंजाब से उठे हैं तो उनके बारे में मैं बचपन से सुनता आया है। तो जब ये मौका मेरे सामने आया, सरदार उधम का रोल निभाने का.. तो मैंने तुरंत ही हां कर दी थी। मैं पहले से ही एक ऐसी अवसर की तलाश में था। एक तो जबसे मैं इंडस्ट्री में आया हूं, मैं शूजित सरकार के साथ काम करना चाहता था। तो फाइनली मुझे वो मौका मिल रहा था। ऊपर से एक क्रांतिकारी का रोल निभाने का मौका मिल रहा था। मुझे लगता है कि ये एक ऐसा मौका था, जो हर एक्टर की जिंदगी में एक बार ही आती है। तो इस फिल्म को हां करने के लिए तो मुझे स्क्रिप्ट पढ़ने की भी जरूरत नहीं थी। लेकिन जब स्क्रिप्ट पढ़ने का मौका मिला, शूजित सरकार के साथ इस पर और बातचीत करने का मौका मिला तो बहुत सारी जानकारी मुझे मिली, जो मुझे भी नहीं पता थी। चाहे उनके एक्शंस को लेकर, या चाहे उनकी सोच को लेकर। मैं बहुत शुक्रगुजार हूं कि मुझे ये फिल्म मिली।
आपको लगता है कि स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारियों पर बनी फिल्में आज के समय में दर्शकों को प्रासंगिक लगती हैं? या एंटरटेनमेंट से अलग दर्शक इन फिल्मों से कुछ सीखने की चाहत रखते हैं?
मुझे लगता है कि ये हमारे लिए बहुत जरूरी है और कहीं ना कहीं एक कलाकार के तौर पर हम सबकी जिम्मेदारी बन जाती है कि हम अपने इतिहास को हमेशा जिंदा रखें। कई बार हमें जो आजादी मिली है, जैसे हम रह रहे हैं, हम उसका मूल्य नहीं समझते। कई बार हम सम्मान देना भूल जाते हैं कि ये जो आज हमारे पास एक फ्रीडम है वो कई लोगों के जान के बलिदान पर मिला है हमें। 15 अगस्त, 26 जनवरी को हम झंडा लहरा देते हैं और फिर पूरे दिन आराम करते हैं कि आज तो छुटी है। उससे ज्यादा 15 अगस्त का कोई मतलब नहीं होता लोगों के लिए। ये बहुत जरूरी है कि हम किताबों द्वारा, फिल्मों द्वारा, गीतों द्वारा उनको याद रखें, उन्हें सेलिब्रेट करें और उनके बलिदान को हमेशा जिंदा रखें अपने मन में। वहीं, एंटरटेनमेंट के अलावा बात प्रासंगिकता की है.. तो मुझे लगता है कि एक इंसान की प्रासंगिकता जा सकती है, लेकिन एक सोच की नहीं जा सकती। और ये फिल्म एक इंसान की बॉयोपिक नहीं है, ये उसकी सोच की बॉयोपिक है कि वो उस वक्त क्या कह रहे थे। जब वो freedom और equality की बात करते थे, तो उनके मायने क्या थे। तो वो हम इस फिल्म के द्वारा लोगों तक पहुंचाना चाहते हैं। और उसकी प्रासंगिकता कल थी, आज है और कल भी रहेगी।
क्या सरदार उधम के व्यक्तित्व का कोई ऐसा पहलू है जिसे आप अपने जीवन में अपनाना चाहते हैं? या आपके और किरदार के बीच संघर्ष रहा?
द्वंद्व की बात करें तो किरदार और मुझमें जो एक बात पूरी तरह से अलग थी.. या जो किसी भी आम इंसान से अलग है.. वो था एक इंसान का 21 सालों तक उस दर्द और गुस्से को ढ़ोना। और यह सुनिश्चित करना कि जो हत्याकांड उन्होंने देखा था उस हत्याकांड का बदला वो 21 साल बाद भी सात समंदर पार जाकर उसका बदला लें। आज हम एक डिजिटल दुनिया में रह रहे हैं, जहां हर दो- पांच मिनट में हमें नई जानकारी मिलती है, 24 घंटे में तो वो पुरानी भी हो जाती है। आज किसी से हमारा मनमुटाव होता है तो अगले मौसम वो हमारा बेस्ट फ्रैंड होता है। तो ये बहुत ही बदलते दौर में हम जी रहे हैं। अभी ऐसा है कि मैं एक्टर हूं, आप पत्रकार हैं, हमारे आपके निजी जीवन में कुछ भी चल रहा हो, कितना भी दर्द चल रहा हो, लेकिन जब हम काम पर आते हैं तो सबको उम्मीद होती है कि हम अपना बेस्ट दें। एक मास्क चढ़ा कर रखें कि हम खुश हैं, सही हैं। और ये एक इंसान थे, 100 साल पहले जो इमोशन को अपने अंदर बिल्कुल पाल कर रखा उन्होंने 21 सालों तक। तो उस भाव को पकड़ना मेरे लिए थोड़ा मुश्किल हो रहा था। उसे मैंने एक एक्टर के तौर पर जबरदस्ती अपने अंदर डालकर रखा था।
फिल्म में जलियांवाला बाग हत्याकांड भी दर्शाया गया है। क्या यह एक अभिनेता के रूप में आपके लिए भावनात्मक रूप से थका देने वाला या ट्रिगर करने वाला था?
बहुत ज्यादा था। एक एक्टर के तौर पर आप हमेशा तैयार रहते हो कि ये एक सीन है। आपको पता है कि आप आज जाकर यही सीन शूट करने वाले हो, इंटेंस सीन है। लेकिन जब वो जलियांवाला बाग के हिस्से की हम शूटिंग कर रहे थे और मैं हेयर- मेकअप- कॉस्ट्यूम में सेट पर आता था और जब सीन शुरु होता था.. जब उस दुनिया में मैं खड़ा होता था तो मेरे लिए वो बहुत अंदर से हिला देने वाला था। चाहे आपको पता है कि आप सिर्फ रिक्रिएट करने की कोशिश कर रहे हैं, आपको पता है कि आपके आस पास पड़ी लाशें रियल नहीं है। लेकिन फिर भी वो झंझोरकर रख देता है आपको। उससे ज्यादा जो बात आपको रात को साने नहीं देती है वो ये है कि यार लोगों ने तो ये सच में देखा है। 20 हजार की भीड़ एक मैदान में थी, जहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं था। सिर्फ एक रास्ता था, जहां पर फौज खड़ी होकर गोलियां चला रही थी। जब आप सोचो कि ये सच में कुछ लोगों जीया है, कुछ बच्चों ने देखा है ये.. तो बिल्कुल आपको रात को नींद नहीं आती ये सोचकर। तो हां, एक एक्टर के तौर पर वो सीन्स मेरे लिए अभी तक के मेरे फिल्मी जीवन के सबसे इंटेंस पार्ट थे।
फिल्म में आप अलग अलग लुक्स में भी नजर आ रहे हैं। साथ ही सरदार उधम के जिंदगी के अलग अलग पड़ांव को भी दिखाया है- 19 साल से लेकर 40 साल तक। लुक्स तो बदला जा सकता है, लेकिन बतौर एक्टर मानसिक तौर पर आपके लिए यह कैसी प्रक्रिया रही।
सच कहूं तो ये थोड़ा मुश्किल होता था.... और आपने सही कहा कि लुक्स तो आपके मैनेज हो जाते हैं क्योंकि आपके पास प्रोस्थेटिक्स की, कॉस्ट्यूम की, मेकअप की पूरी टीम है। जो आपको 18-19 साल का लड़का दिखा देते हैं। आप वजन की कम कर लेते हो 14- 15 किलो.. लेकिन अपने अंदर वो innocence ढूंढ़ना और उसे पकड़कर रखना आसान नहीं है। कोई 19 वर्षीय लड़का यदि वो जलियांवाला बाग घटना पूरा एक्सपीरियंस कर जाए और उसके बाद उसमें कुछ ऐसा बैठ जाए, जिसे वो 21 साल तक भूल नहीं पाए तो मुझे लगता है कि वो एक बहुत ही मासूम सोच वाला रहा होगा। तभी एक घटना का उस पर इतना प्रभाव पड़ा है। तो उस मासूमियत को लाना और उसे पूरी फिल्म के दौरान रखना आसान नहीं था। इसके लिए आपको थोड़ा अपने पास्ट में जाना पड़ता है कि आप 19 साल में कैसे थे और उस नोट को आपको जिंदा रखना पड़ता है। तो वो थोड़ा ट्रिकी होता है। कोशिश मैंने की है, उम्मीद है लोगों को वो कोशिश पसंद आए।
शूजित सरकार की फिल्मों का एक अलग अंदाज़ होता है। सरदार उधम को लेकर निर्देशक ने आपको क्या ब्रीफ दिया था?
मुझे एक ही बात उन्होंने कही थी.. और मुझे लगता है कि अपने टेक्नीशियंन्स को भी उन्होंने यही ब्रीफ दिया था कि मुझे सरदार उधम के स्टेट ऑफ माइंड को जानना है.. इस फिल्म के द्वारा। सिर्फ ये नहीं दिखाना है कि सरदार उधम ने लंदन में जाकर गोली मारी थी, उनको जेल हो गई थी, उन्हें फांसी हो गई थी। वो चाहते थे कि लोग इस फिल्म के द्वारा सरदार उधम की मानसिक स्थिति को जानें। यही एक ब्रीफ था उनका मेरे लिए। मेरे लिए इमोशंस को पकड़ना बहुत जरूरी हो गया था.. क्योंकि शूजित सरकार जिस तरह की फिल्में बनाते हैं उनमें बहुत साइलेंस भी होते हैं। वो डायलॉग्स के जरीए spoon feed नहीं करते हैं कि उस किरदार को कैसा महसूस हो रहा है। ऐसे में एक्टर के लिए थोड़ा चैलेंजिंग हो जाता है कि जब आपके पास शब्द नहीं हैं फिर भी लोगों तक वो इमोशन पहुंचाना है.. ऐसे में आपके पास ऑप्शन नहीं होता, आपको वो सच में फील ही करना पड़ता है। ये चैलेंजिंग होता है, लेकिन इससे बहुत सीखने को मिलता है। शूजित सरकार के साथ काम करने एक एक्टर के तौर पर आपकी ग्रोथ होती है।
आपके काम को हमेशा दर्शकों से प्यार मिला है। क्रिटिक द्वारा सराहा जाता रहा है, अब उम्मीदों का दवाब महसूस करते हैं?
नहीं नहीं, दबाव नहीं महसूस होता है। मैं तो चाहता हूं कि उम्मीदें बढ़ती रहें हर फिल्म के साथ। सच्चाई ये है कि जब आप एक्टर बनते हैं आपके सामने दो रास्ते होते हैं.. एक रास्ता आपको लेकर जाएगा, जहां ऑडियंस को आपके काम से कोई फर्क नहीं पड़ता, आपसे उनको कोई लगाव नहीं होता, आपका काम पसंद नहीं आता और इसीलिए आपसे उम्मीदें भी नहीं रहती हैं। दूसरा ये है कि ऑडियंस को आपका काम पसंद आएगा और वो बहुत उम्मीदें रखेंगे। तो मेरी च्वॉइस बहुत सिंपल है, मुझे इसी रास्ते पर रहना है। जहां पर लोगों को मेरा काम पसंद आता रहे है और वो मुझे उम्मीद करते रहें कि अच्छा विक्की ने कुछ किया है कि तो अच्छा काम किया होगा। क्योंकि जब मुझे पता होगा कि लोग उम्मीद कर रहे हैं तो मैं अपनी तरफ से मेहनत करता रहूंगा और एक एक्टर के तौर पर मेरी ग्रोथ होती रहेगी। तो मैं तो चाहता हूं कि उम्मीदें बढती रहें हर फिल्म के साथ।
फिल्म के स्क्रिप्ट के चुनाव के दौरान किन बातों का ख्याल रखते हैं?
फिल्म के डायरेक्टर कौन हैं, यह देखना बहुत जरूरी होता है क्योंकि सिनेमा एक डायरेक्टर्स मीडियम ही है। और मैं मानता हूं कि कोई भी स्क्रिप्ट हो उसे सौ अलग तरीके से बनाई जा सकती है, अलग अलग निर्देशकों द्वारा। तो उस स्क्रिप्ट पर किस डायरेक्टर का क्या विज़न है, यह जानना बहुत जरूरी हो जाता है.. कि वो किस तरह से कहानी पेश करना चाहते हैं। हालांकि, जो पहली चीज मैं देखता हूं कि वो होता है कि जब कभी मैं कहानी पढ़ता हूं या सुनता हूं तो मैं उसे एक ऑडियंस के तौर पर सुनता हूं। मैं ये सोचकर सुनता हूं कि मैं थियेटर में बैठकर ये पिक्चर देख रहा हूं। जब स्क्रिप्ट खत्म होती है, यदि मुझे खुशी होती है, कोई इमोशन फील हुआ.. तो ये मैं पहले फील करना चाहता हूं। यदि मुझे वो फील हो जाता है, तो फिर मैं ज्यादा कैलकुलेशन नहीं करता। फिर मैं उस प्रोसेस को एन्जॉय करने की कोशिश करता हूं।
अब जबकि कुछ ही दिनों में सिनेमा थियेटर्स खुलने वाले हैं। कई फिल्मों की रिलीज डेट की घोषणा भी की जा चुकी है। ऐसे में ओटीटी और थियेटर्स का भविष्य किस तरह देखते हैं?
मैं दिल से बताऊं तो सच में बहुत खुशी है कि ये बहुत एक्साइटिंग टाइम है.. ऑडियंस के लिए भी और जो फिल्में बनाते हैं उनके लिए भी। पिछले 18 महीनों में लोगों ने जिस तरह से ओटीटी को अपनाया है.. उससे अब बिल्कुल even playing ground हो गया है। दो साल पहले तक जो था कि थियेटर ही मुख्य मीडियम है, ओटीटी का उतना ज्यादा महत्व नहीं था। लेकिन पिछले 18 महीनों में यदि ओटीटी नहीं होता तो हमारे पास एंटरटेनमेंट ही नहीं होता। तो मुझे लगता है कि आने वाला समय बहुत एक्साइटिंग होने वाला है, ऑडियंस के पास थियेटर का रोमांच भी होगा और अपने घर में आराम से बैठकर भी कंटेंट देखने का भी ऑप्शन होगा, अपनी मर्जी के हिसाब से।
जाते जाते अपनी आने वाली फिल्मों की कुछ जानकारी देना चाहें तो? सरदार उधम के बाद किन फिल्मों की शूटिंग में व्यस्त हैं?
मैंने इस साल एक फिल्म धर्मा के साथ और एक यशराज फिल्म्स के साथ पूरी की है। इस बारे में ज्यादा नहीं बता पाउंगा क्योंकि अभी दोनों फिल्मों की ऑफिशियल घोषणा आने वाली है, दोनों स्टूडियोज से। इसके बाद अगले साल मैं मेघना गुलजार के साथ सैम मानेकशॉ की शूटिंग शुरु करने वाला हूं।