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EXCLUSIVE INTERVIEW: जलसा, बॉक्स ऑफिस प्रेशर और विद्या बालन पर बोले निर्देशक सुरेश त्रिवेणी
विद्या बालन और शेफाली शाह अभिनीत फिल्म 'जलसा' 18 मार्च को अमेज़न प्राइम वीडियो पर रिलीज होने वाली है। फिल्म के निर्देशक हैं सुरेश त्रिवेणी, जो इससे पहले 'तुम्हारी सुलु' लेकर आए थे। विद्या बालन के साथ दो फिल्में कर चुके निर्देशक उन्हें अपनी 'हिम्मत' मानते हैं। सुरेश कहते हैं, "विद्या जानती है कि मैं उनके काम का फैन हूं। वह इतनी अनुभवी अभिनेत्री हैं, फिर भी हर किरदार को लेकर पूरी तरह से समर्पित रहती हैं। मैं उन्हें रॉकस्टार बुलाता हूं!"
सुरेश त्रिवेणी केरल में जन्मे हैं, लेकिन उनकी पढ़ाई- लिखाई रांची में हुई है। वह हमेशा से ही बॉलीवुड से प्रभावित थे। सुरेश खुद को राजू हिरानी, रोहित शेट्टी का फैन और मणिरत्नम का भक्त बताते हैं। एक दशक से भी लंबे अपने करियर में उन्होंने कई डॉक्यूमेंट्री और विज्ञापन फिल्में बनाईं। भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच पर बना उनका विज्ञापन "मौका मौका" बहुचर्चित रहा था। लेकिन उनका लक्ष्य हमेशा से फीचर फिल्में बनाने का रहा। सुरेश कहते हैं- "विज्ञापन बनाना मेरा प्रोफेशन है, फीचर फिल्में बनाना पैशन।"
फिल्म 'जलसा' की रिलीज से पहले निर्देशक सुरेश त्रिवेणी से फिल्मीबीट ने खास बातचीत की है, जहां उन्होंने अपनी आगामी फिल्म के साथ, विद्या बालन- शेफाली शाह के साथ काम करने के अनुभव और बॉक्स ऑफिस प्रेशर को लेकर खुलकर बातें कीं हैं।
यहां पढ़ें इंटरव्यू से कुछ प्रमुख अंश-

थ्रिलर फिल्मों की खास फैनडम होती है। जानना चाहूंगी कि एक निर्देशक और खासकर एक राइटर के तौर पर 'जलसा' जैसी स्क्रिप्ट पर काम करने का कैसा प्रोसेस होता है। यह कितना आसान या मुश्किल रहा?
जलसा एक ड्रामा है, जिसमें थ्रिल के कुछ एलिमेंट हैं। साथ ही इसमें एक इमोशनल टच है, जो पूरी फिल्म में है। मैं थ्रिलर फिल्मों की बात करूं तो इसमें सबसे बड़ी चुनौती यह होती है कि यदि आपको अंदाजा लग जाता कि आपका अगला सीन क्या होने वाला है, फिर दिलचस्पी मर जाती है। लिहाजा, बतौर राइटर जब आप एक ही स्क्रिप्ट पर लगातार काम करते रहते हैं.. तो लगता है कि कुछ भी काम नहीं कर रहा है। तो हां, ये एक चैलेंज है। आप इसी तलाश में रहते हैं कि कैसे आप सीन को दिलचस्प बनाएं। यदि कुछ अनुमानित है भी तो कैसे उससे लोगों को बांधे.. या तो अपने क्राफ्ट से, या अपने डायलॉग से, या एक सरप्राइज एलिमेंट से। वही कोशिश रहती है। जलसा की बात करें तो यह पूरी तरह से थ्रिलर नहीं है। थ्रिल इसका एक हिस्सा है।

फिल्म की कास्टिंग ने काफी हलचल मचाई हुई है। विद्या बालन, शेफाली शाह, मानव कौल को साथ लाने के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
मैं तो यही चाहता था। जिन लोगों को सिनेमा पसंद है, जो अच्छी फिल्में देखना पसंद करते हैं वो हमेशा अच्छे कलाकारों को साथ काम करते देखना चाहते हैं। एक फिल्ममेकर से अलग मैं एक ऑडियंस भी तो हूं। मैंने विद्या का काम देखा है, मैंने शेफाली का देखा है.. और मेरे मन में यही ख्याल आया कि कितना अच्छा होगा यदि ये दोनों स्क्रीन पर साथ आएं। एक फिल्ममेकर के तौर पर भी यह मेरे गर्व भरा अनुभव था। मानव कौल की बात करें तो वो मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं। हम साथ क्रिकेट भी खेलते हैं। उन्होंने मुझसे बहुत पहले कहा था कि कुछ भी रोल होगा मैं तो कर लूंगा, तो मैंने उस बात को पकड़ लिया। वो मेरे लकी चार्म भी हैं। इनके अलावा भी फिल्म में कई शानदार कलाकार हैं, रोहिणी हट्टंगड़ी, इकबाल खान, विधात्री बंदी, श्रीकांत मोहन यादव, शफीन पटेल, सभी बेहतरीन हैं।

विद्या बालन ने इस फिल्म को करने से पहले इंकार कर दिया था। फिर आपने उन्हें कैसे तैयार किया?
हमने ये स्क्रीनप्ले उनको काफी पहले सुनाई थी। उनको बहुत अच्छी लगी थी कहानी, लेकिन वो उस वक्त इस किरदार को निभाने के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं थीं। उन्होंने मुझे यही कहा था कि मुझे स्क्रिप्ट बहुत पसंद आई है लेकिन मैं इस तरह का रोल मैं अभी करने को तैयार नहीं हूं। लेकिन मुझे कहीं ना कहीं एक उम्मीद थी कि शायद वो कर लेंगी। उस वक्त हम अपने स्क्रिप्ट पर लगातार काम करते रहे थे। फिर लॉकडाउन हो गया था, तो उसी बीच विद्या जी का कॉल आया कि मैं स्क्रिप्ट एक बार फिर पढना चाहूंगी। तो मैंने भेज दी। उसके बाद उन्होंने कह दिया कि हां मैं कर रही हूं फिल्म। फिर क्या था.. फिर मैंने वो टॉपिक कभी छेड़ा ही नहीं कि पहले उन्होंने क्यों मना किया था!
आपने विद्या बालन के साथ दो फिल्में की हैं (तुम्हारी सुलु और जलसा)। इन दो फिल्मों के बाद आप उन्हें एक अभिनेत्री के रूप में कैसे परिभाषित करेंगे?
विद्या बालन के साथ काम करना शानदार अनुभव है। वह पूरे यूनिट, पूरी टीम को उत्साहित रखती हैं। बतौर अभिनेत्री अपने काम को लेकर वो इतनी भूखी हैं, जबकि उन्हें किसी को कुछ प्रूव नहीं करना है। आज वो जिस जगह पर हैं, वो कुछ भी ना करें तो भी वो सिनेमा के इतिहास में जगह बना चुकी हैं। लेकिन वो आज भी हर किरदार को निभाने के लिए उतनी ही उत्साहित रहती हैं। मैं उनको रॉकस्टार बुलाता हूं। मैं उनको मेरी हिम्मत बोलता हूं। उनसे मुझे अच्छा काम करने की हिम्मत और प्रेरणा मिलती है।

जलसा की शुरुआत कब और कैसे हुई थी?
हम अलग अलग कहानियों पर काम कर रहे थे और ये उनमें से एक कहानी थी। मैंने इसकी चंद लाइनें ही लिखी हुई थी। मेरे दिमाग में सिर्फ इतना था कि यदि एक हादसा बहुत सारे लोगों को साथ लेकर आए तो कैसा रहेगा! उस वक्त मुझसे मिलने आए थे प्रज्जवल चंद्रशेखर, उन्हें मैंने ये कहानी सुनाई तो वो इसे लेकर काफी उत्साहित हो गए। उन्होंने कहा कि वो इसे डेवलप करेंगे। फिर दो- तीन महीने में वो पूरी स्क्रिप्ट लेकर आए। मैंने कहानी जैसी सोच रखी थी, उससे उनकी स्क्रिप्ट कुछ अलग थी लेकिन मुझे इसमें स्कोप दिखा। मुझे लगा कि मैं ये स्क्रिप्ट लेकर विद्या और शेफाली के पास जा सकता हूं। तो वहां से इस फिल्म की शुरुआत हुई थी। 2019 में इसकी पहली ड्राफ्ट लिखी गई, उसी साल के अंत में हमने एक्टर्स को कहानी सुनाई। 2020 तो यूं ही लॉकडाउन में निकल गया। फिर 2021 में हमने प्री- प्रोडक्शन पर काम शुरु किया।
बतौर निर्देशक किस तरह की कहानियां आपको आकर्षित करती हैं?
जब मैं अंधाधुन देखता हूं तो मैं सोच में पड़ जाता हूं कि इतनी अच्छी फिल्म कोई कैसे बना सकता है। जब मैंने कपूर एंड सन्स देखी थी, तो मैंने सोचा कि इतनी अच्छी फिल्म तो मैं कभी नहीं बना पाउंगा। मैं दंगल देखकर चौंक गया था। राजू हिरानी, रोहित शेट्टी की फिल्मों का फैन हूं मैं। जब विक्रमादित्य मोटवाने की उड़ान देखी थी मैंने तो दंग रह गया। लेकिन मणिरत्नम का भक्त हूं मैं। तो बिल्कुल अलग अलग शैली की फिल्में मुझे पसंद हैं। मुझे लगता है कि हमें साइंस फिक्शन भी बनानी चाहिए। मैं भी किसी एक शैली में बंधना नहीं चाहता, वर्ना मैं बोर हो जाउंगा।

विद्या बालन ने इंटरव्यू में कहा कि 'मेल एक्टर्स की तुलना में फीमेल एक्टर्स के लिए यह बेस्ट समय है'। बतौर फिल्ममेकर आप इस टिप्पणी से कितने सहमत हैं?
मुझे लगता है कि मेल एक्टर्स को केंद्र में रखकर बहुत फिल्में बन चुकी हैं। जबकि पिछले महिला किरदारों के साथ फिल्में बनाने का लगातार प्रयास 10-15 सालों से ही किया गया है। और वो फिल्में पसंद भी की जा रही हैं। मैं यहां तुलना नहीं करना चाहूंगा। बल्कि मुझे लगता है कि ओवरऑल सिनेमा बदल रहा है। कोविड के दौरान भी कुछ मलयालम फिल्में आई थीं, जो बेहद शानदार थीं। तेलुगु सिनेमा, मराठी सिनेमा सभी के कंटेंट में बदलाव आ रहा है। मैं इसे सकारात्मक तरीके से देखता हूं। जैसे जैसे नए फॉरमेट आ रहे हैं, बदलाव आएगा। आज लोगों के पास दुनियाभर की फिल्में या बाकी कंटेंट देखने का एक्सेस है। तो जैसे जैसे दर्शकों का एक्सपोजर बढे़गा, आपको नई नई कहानियां कहने का मौका मिलेगा।
एक्सपोज़र की बात करें, तो ओटीटी और थियेटर्स के भविष्य को कैसे देखते हैं?
मैं ओटीटी और थियेटर को अलग नहीं, बल्कि ओटीटी प्लस थियेटर देखता हूं। थियेटर एक कम्यूनिटी एक्सपीरियंस है, वो कभी खत्म नहीं होना वाला। लेकिन ओटीटी भी एक अलग नया अनुभव देती है। मेरी फिल्म एक साथ 240 देशों में रिलीज होगी, वो मेरे लिए बहुत बड़ी बात है। हम किसी भी मीडियम को नजरअंदाज़ नहीं कर सकते। तो मैं दोनों माध्यम को साथ देखता हूं.. ना कि अलग अलग। एक स्टोरीटेलर के तौर पर मेरे पास कहानियां कहने का जितने ज्यादा माध्यम हों, अच्छी बात है।

ओटीटी पर फिल्म की रिलीज से कहीं ना कहीं खुद को बॉक्स ऑफिस के प्रेशर से फ्री महसूस करते हैं?
नहीं, नहीं.. प्रोड्यूसर को प्रेशर होता है पैसे का। लेकिन एक डायरेक्टर को प्रेशर होता है reputation का। आप जानबूझकर खुद को जज करवाने के लिए ही फिल्म बनाते हैं। आप एक फिल्म बनाकर घर के चार लोगों को दिखा सकते हो.. लेकिन आप यहां 240 देशों तक पहुंच रहे हैं। आपने अपना दायरा और बढ़ा लिया है, तो लोग आपको और जज करेंगे। तो वो घबराहट तो रहेगी ही रहेगी। एक निर्देशक को बॉक्स ऑफिस की घबराहट नहीं होती है, उन्हें इस बात की चिंता होती है कि लोग आपकी फिल्म के बारे में क्या सोच रहे हैं! जो मुझे अभी हो रही है।
जलसा के बाद आपने किसी अन्य प्रोजेक्ट पर काम शुरु किया है?
मैं अभी दो- तीन स्क्रिप्ट पर काम कर रहा हूं विक्रम मल्होत्रा के साथ। फिलहाल कास्टिंग या बाकी बातों पर अभी फैसला नहीं लिया गया है। आने वाले समय में देखते हैं फिल्में क्या शेप लेती हैं।